प्रशांत भूषण ने ट्वीट पर अवमानना मामले में माफी मांगने से इनकार किया; और कहा माफी विवेकहीनता और अंतःकरण की अवमानना होगी

भूषण ने आज एक बयान में कहा, "इन धारणाओ की अभिव्यक्ति के लिए माफी, शर्त या बिना शर्त, निष्ठाहीन होगी"।
Prashant bhushan, Twitter, Supreme Court
Prashant bhushan, Twitter, Supreme Court

अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने सर्वोच्च न्यायालय के समक्ष एक बयान पेश करते हुए दोहराया कि वह न्यायपालिका की आलोचना करने वाले अपने ट्वीट के लिए माफी नहीं मांगेंगे, जिस पर उन्हें 14 अगस्त को अदालत की आपराधिक अवमानना का दोषी ठहराया गया था।

अधिवक्ता कामिनी जायसवाल के माध्यम से आज एक अतिरिक्त बयान दायर किया गया, जिसमे कहा गया कि,

एक नागरिक और इस अदालत के एक वफादार अधिकारी के रूप में मेरे उच्च दायित्वों के अनुरूप मुझे इन मतों की सार्वजनिक अभिव्यक्ति का विश्वास था। इसलिए इन मान्यताओं की अभिव्यक्ति के लिए माफी सशर्त या बिना शर्त, निष्ठाहीन होगी। माफी महज एक अभिचार नहीं हो सकती है और किसी भी माफी को, जैसा कि अदालत ने खुद रखा है, ईमानदारी से किया जाना चाहिए। यह विशेष रूप से ऐसा है जब मैंने वास्तविक बयानों को रखा है और पूरे विवरण के साथ सत्यता की गुहार लगाई है, जो कि न्यायालय द्वारा द्वारा निस्तारित नहीं किया गया है”

मै इस न्यायालय से जिसकी मै सच्चे मन से इज्जत करता हू तथा इसे सम्मान मै सर्वोपरि रखता हूं, से अपना बयान वापिस लेने पर माफी मांगता हूं यद्यपि मुझे ऐसा लगता कि ऐसा करने मै इस संस्था कि अवमानना होगी।
प्रशांत भूषण

अपने बयान में, एडवोकेट भूषण ने कहा है कि उन्हे बहुत अफसोस हुआ जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के 20 अगस्त के आदेश को पढ़ा, जिसमें यह कहा गया कि भूषण को बिना शर्त माफी मांगने का समय दिया जा रहा है, यदि वह ऐसा चाहते हैं।

इसके जवाब में, भूषण ने कहा,

“मुझे कभी भी ऐसे अवसर में उपस्थित नहीं होना पड़ा, जहां मेरी ओर से की गयी गलती या दुराचार के लिए माफी की पेशकश करने की बात आती है। यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मैंने इस संस्था के साथ काम किया है और इससे पहले कई महत्वपूर्ण जनहितकारी कार्य किए हैं। मैं इस भावना के साथ रहता हूं कि मुझे इस संस्था से जितना मिला है, उससे ज्यादा मुझे इसे देने का अवसर मिले हैं। मेरे लिए उच्चतम न्यायालय की संस्था के लिए सर्वोच्च सम्मान है।"

भूषण कहते हैं कि उनका मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय मौलिक अधिकारों की रक्षा और संवैधानिक लोकतंत्र के संरक्षण की अंतिम उम्मीद है।

"आज इस परेशानी के समय में, भारत के लोगों की उम्मीदें इस अदालत में कानून और संविधान के शासन को सुनिश्चित करने मे निहित हैं, न कि कार्यकारिणी के एक अनछुए नियम से।"

इस पृष्ठभूमि में, भूषण ने दावा किया कि सुप्रीम कोर्ट के वास्तविक रिकॉर्ड से विचलन होने पर अदालत के अधिकारियों का स्वयं बोलने के लिए एक कर्तव्य है।

"इसलिए मेरे द्वारा नेक विचार व्यक्त किए गए, मेरा मकसद सर्वोच्च न्यायालय या किसी विशेष मुख्य न्यायाधीश को बदनाम करने के लिए नहीं था, बल्कि तर्कसाध्य आलोचना करने का था जिससे कि माननीय न्यायालय अपने संविधान व लोगों के अधिकारों के संरक्षक दीर्घकालिक भूमिका से अभिप्राय ना करे ”

इन टिप्पणियों के साथ, भूषण ने अब प्रभावी रूप से सूचित किया है कि वह अपने पहले के बयान के खड़े हैं, जिसे 20 अगस्त की सुनवाई के दौरान अदालत में प्रस्तुत किया गया था।

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