सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को केंद्र सरकार को कैप्टन सुमित सभरवाल के पिता द्वारा दायर याचिका पर नोटिस जारी किया। सभरवाल इस वर्ष जून में अहमदाबाद में दुर्घटनाग्रस्त हुए एयर इंडिया के विमान के पायलट थे।
याचिका में 260 लोगों की मौत का कारण बनी इस दुर्घटना की स्वतंत्र न्यायिक जाँच की माँग की गई है।
आज सुनवाई के दौरान, केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दलील दी कि विमान दुर्घटना के लिए किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा रहा है। उन्होंने यह भी कहा कि इस मामले में किसी भी तरह का हस्तक्षेप केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय और नागरिक उड्डयन महानिदेशालय (DGCA) द्वारा चल रही जाँच के लिए प्रतिकूल हो सकता है।
मेहता ने अदालत को बताया, "एक अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन है। एक अंतरराष्ट्रीय नागरिक उड्डयन संगठन है। उन्होंने हवाई दुर्घटनाओं की जाँच के लिए अनिवार्य कदम उठाए हैं। एक व्यवस्था है। कुछ विदेशी भी पीड़ित हैं। वे देश भी जाँच में अपने प्रतिनिधि भेजते हैं। मैं पीड़ित के पिता की भावनाओं को समझता हूँ। किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा रहा है। नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एक प्रेस नोट जारी किया है कि किसी को भी दोषी नहीं ठहराया जा रहा है।"
पुष्करराज सभरवाल द्वारा दायर याचिका में एयर इंडिया बोइंग 787-8 ड्रीमलाइनर विमान दुर्घटना की निष्पक्ष, पारदर्शी और तकनीकी रूप से सुदृढ़ जाँच के लिए सर्वोच्च न्यायालय के एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में न्यायिक निगरानी वाली एक समिति के गठन की माँग की गई है, जिसमें विमानन क्षेत्र के स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्य हों।
सभरवाल और फेडरेशन ऑफ इंडियन पायलट्स द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका के अनुसार, केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्रालय और डीजीसीए द्वारा वर्तमान में की जा रही जाँच और उस जाँच के अनुसरण में प्रस्तुत 15 जून की प्रारंभिक रिपोर्ट त्रुटिपूर्ण है और इसमें गंभीर कमियाँ और विकृतियाँ हैं।
याचिकाकर्ता ने तर्क दिया है कि रिपोर्ट में दुर्घटना का कारण पायलट की गलती को बताया गया है, जबकि अन्य स्पष्ट और प्रशंसनीय प्रणालीगत कारणों को नज़रअंदाज़ किया गया है, जिनकी स्वतंत्र जाँच और घटना की जाँच की आवश्यकता है।
एक गैर-सरकारी संगठन, सेफ्टी मैटर्स फाउंडेशन द्वारा दायर एक संबंधित याचिका भी आज शीर्ष अदालत के समक्ष सूचीबद्ध की गई।
आज सुनवाई के दौरान, न्यायमूर्ति बागची ने कहा कि विमान दुर्घटना जाँच ब्यूरो (एएआईबी) की जाँच ज़िम्मेदारी का बंटवारा करने के लिए नहीं, बल्कि कारण स्पष्ट करने और भविष्य में ऐसे मामलों से बचने के लिए सुझाव देने के लिए थी।
न्यायाधीश ने आगे कहा, "केंद्र सरकार की पूरक जाँच में ज़िम्मेदारी के बंटवारे का सवाल उठ सकता है।"
कैप्टन के पिता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने कहा कि निष्पक्ष जाँच के नियमों का पालन नहीं किया जा रहा है।
शंकरनारायणन ने कहा, "श्री मेहता ने जिस व्यवस्था का ज़िक्र किया है, उसका पालन नहीं किया गया है। यही समस्या है। इसका ठीक से पालन नहीं किया गया है।"
एनजीओ की ओर से पेश अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने तर्क दिया कि गंभीर दुर्घटनाएँ, जिनमें जान-माल का नुकसान होता है, उनके लिए कोर्ट ऑफ़ इन्क्वायरी की आवश्यकता होती है, न कि केवल एएआईबी द्वारा जाँच की। उन्होंने बोइंग 787 ड्रीमलाइनर से जुड़ी कथित समस्याओं की ओर भी इशारा किया।
उन्होंने कहा, "यह बेहद चिंताजनक है। इन 787 विमानों में कई सिस्टम फेल हो चुके हैं। इन विमानों में उड़ान भरने वाले सभी लोग जोखिम में हैं। पायलट एसोसिएशन ने कहा है कि इन विमानों को तुरंत उड़ान भरने से रोकना होगा।"
हालांकि, अदालत ने इस संबंध में चेतावनी भी दी।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "ऐसा न लगे कि यह एयरलाइनों के बीच लड़ाई जैसा लगेगा।"
इस बीच, अदालत ने एक छात्र की याचिका पर विचार करने से इनकार कर दिया।
न्यायमूर्ति कांत ने कहा, "छात्रों को यहाँ आने के लिए न कहें। छात्रों को शिक्षा पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। पिछले दिनों एक कानून के छात्र ने 1950 के संवैधानिक आदेश को चुनौती दी थी। हम इस सब पर विचार नहीं करेंगे।"
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