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इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने न्यायाधीश को निर्णय लिखने में अक्षम पाया, तीन महीने का प्रशिक्षण देने का आदेश दिया

न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें तथा एडीजे वर्मा को प्रशिक्षण पर भेजने के लिए आवश्यक आदेश प्राप्त करें।

Bar & Bench

इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में निर्देश दिया कि एक अतिरिक्त जिला न्यायाधीश (एडीजे) को निर्णय लेखन में तीन महीने के प्रशिक्षण के लिए लखनऊ स्थित न्यायिक प्रशिक्षण एवं अनुसंधान संस्थान भेजा जाए।

न्यायमूर्ति नीरज तिवारी ने यह आदेश इस आधार पर पारित किया कि एडीजे डॉ. अमित वर्मा ने कम से कम दो मामलों में अनुचित आदेश पारित किए हैं।

न्यायालय ने कहा, "इस न्यायालय के दिनांक 17.12.2024 के आदेश तथा दिनांक 1.3.2025 के विवादित आदेश के अवलोकन से यह न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि अपर जिला न्यायाधीश, कानपुर नगर डॉ. अमित वर्मा निर्णय लिखने के लिए सक्षम नहीं हैं, इसलिए उन्हें न्यायिक प्रशिक्षण एवं शोध संस्थान, लखनऊ में कम से कम तीन महीने के प्रशिक्षण के लिए भेजा जाना चाहिए।"

Justice Neeraj Tiwari

न्यायालय ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के रजिस्ट्रार जनरल को निर्देश दिया कि वे मामले को मुख्य न्यायाधीश के समक्ष रखें तथा एडीजे वर्मा को प्रशिक्षण पर भेजने के लिए आवश्यक आदेश प्राप्त करें।

यह निर्देश एक याचिका पर पारित किया गया, जिसमें मकान मालिक-किराएदार विवाद मामले में एडीजे वर्मा द्वारा पारित आदेश को चुनौती दी गई थी।

जिला न्यायालय के समक्ष याचिकाकर्ता मुन्नी देवी ने वहां लंबित अपने मामले में नए आधार जोड़ने के लिए आवेदन दायर किया था। हालांकि, एडीजे वर्मा ने एक संक्षिप्त आदेश के माध्यम से आवेदन को खारिज कर दिया, जिसके कारण वर्तमान चुनौती सामने आई।

ADJ Amit Verma

उनके वकील ने न्यायालय के समक्ष तर्क दिया कि जिला न्यायाधीश ने संशोधन आवेदन को खारिज करने के कारणों को स्पष्ट करने के लिए एक भी पंक्ति नहीं लिखी।

उन्होंने यह भी बताया कि एडीजे वर्मा ने पिछले वर्ष भी ऐसी ही गलती की थी और उस आदेश को बाद में रद्द कर दिया गया था।

वकील ने कहा, "एक बार फिर डॉ. अमित वर्मा, अतिरिक्त जिला न्यायाधीश, कानपुर नगर ने वही गलती की है और बिना किसी निष्कर्ष को दर्ज किए ही विवादित आदेश पारित कर दिया गया है, इसलिए यह गलत है और इसे रद्द किया जाना चाहिए।"

वर्तमान मामले में एडीजे वर्मा के आदेश को पढ़ने के बाद न्यायालय ने पाया कि इसमें सात पैराग्राफ और ऑपरेटिव भाग शामिल हैं।

इसमें आगे कहा गया, "सभी सात पैराग्राफ में केवल दोनों पक्षों के तथ्य और तर्क दर्ज किए गए हैं और बिना किसी निष्कर्ष को दर्ज किए ही विद्वान न्यायाधीश ने तीन-लाइन के आदेश द्वारा आवेदन को खारिज कर दिया है।"

इस प्रकार न्यायालय याचिकाकर्ता के इस कथन से सहमत हुआ कि एडीजे वर्मा ने पिछले वर्ष एक अन्य मामले में की गई गलती को दोहराया है।

इसलिए न्यायालय ने चुनौती दिए गए आदेश को निरस्त कर दिया और सक्षम न्यायालय को मामले पर नए सिरे से निर्णय लेने का निर्देश दिया। इसके अलावा, इसने मामले को कानपुर नगर के किसी अन्य न्यायाधीश को हस्तांतरित करने का आदेश दिया।

याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता प्रखर टंडन पेश हुए।

प्रतिवादी की ओर से अधिवक्ता शिव कुमार यादव पेश हुए।

[आदेश पढ़ें]

Munni_Devi_v_Shashikala_Pandey.pdf
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