उच्चतम न्यायालय ने अमरावती भूमि घोटाला मामले में दर्ज प्राथमिकी से संबंधित प्रकरण में आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा मीडिया की रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध लगाने के आदेश पर रोक लगा दी।
न्यायालय ने इसके साथ ही इस मामले से संबंधित प्राथमिकी में जांच पर प्रतिबंध लगाने उच्च न्यायालय के निर्देश को चुनौती देने वाली आंध्र प्रदेश सरकार की याचिका पर नोटिस भी जारी किये।
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एमआर शाह की तीन सदस्यीय पीठ आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय के गैग आदेश के खिलाफ राज्य की वाईएसआर कांग्रेस सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। उच्च न्यायालय ने राज्य के पूर्व महाधिवक्ता और अन्य के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी के संबंध में यह आदेश पारित किया था।
उच्च न्यायालय ने अमरावती भूमि घोटाला मामले के संबंध में जांच पर भी रोक लगा दी थी। इस मामले में राज्य के भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो ने प्राथमिकी दर्ज की थी जिसमे शीर्ष अदालत के एक न्यायाधीश की पुत्रियां भी नामजद थीं।
राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने कहा कि उच्च न्यायालय का पूरा आदेश ही राज्य द्वारा इस साल 23 मार्च को केन्द्रीय जांच ब्यूरो को भेजे गये पत्र पर आधारित है।
‘‘क्या 23 मार्च का पत्र राहत प्रदान करने का आधार हो सकता है? यह रिट है जिसमें राजनीतिक विद्वेष का आरोप है। मैं खुद से सवाल करता हूं कि क्या यह अग्रिम जमानत है? जांच भी रोक दी गयी है।’’
अमरावती भूमि घोटाले के विवरण से न्यायालय को अवगत कराते हुये धवन ने कहा कि इस मामले में आठ सितंबर को जांच का आदेश दिया गया था। इसे चुनौती देते हुये 15 सितंबर को एक याचिका दायर की गयी।
उन्होंने कहा, ‘‘जांच का आदेश दिये जाते ही एक याचिका दायर की गयी और इस पर उसी दिन निर्णय कर दिया गया। सवाल यह है कि क्या ऐसा करा जा सकता है?’’
धवन ने कहा कि अंतरिम राहत उस वक्त प्रदान की गयी जब यह दलील दी गयी कि ‘‘सरकार संविधान की पूरी तरह अनदेखी करके राज्य चला रही है।’’ उन्होंने सवाल किया कि क्या आपराधिक मामले में यह राहत देने का आधार हो सकता है।
‘‘यह पूरी तरह से मुख्यमंत्री के खिलाफ राजनीतिक याचिका है। याचिका तथ्यों पर नहीं बल्कि भरोसेमंद सूत्रों पर आधारित है जिसका खुलासा नहीं किया गया है।’’राजीव धवन
धवन ने न्यायालय से सवाल किया,
‘‘क्या इस तरह की शिकायत की जांच होनी चाहिए या नहीं? क्या दुर्भावना के यह आरोप सही हैं कि उन्हें महाधिवक्ता होने के नाते मुख्यमंत्री की ओर से पेश होने के लिये निशाना बनाया गया? मुझे ऐसी कोई शिकायत नहीं मिली है जिसमे अपराध होने का खुलासा नहीं हो। क्या कोई गोरखधंधा हुआ था या कई लेनदेन हुये थे? क्या ऐसा कुछ है जिसकी जांच की आवश्यकता है? इस याचिका की तात्कालिकता के वजह से शाम साढ़े छह बजे सुनवाई की गयी थी।’’
इस पर न्यायमूर्ति भूषण ने कहा कि इस मामले में विचार करने की आवश्यकता है और न्यायालय इस पर नोटिस जारी करेगा।
इस मामले में पूर्व महाधिवक्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी पेश हुये और उन्होंने इतनी तत्परता से उच्च न्यायालय जाने के कारणों को न्यायोचित ठहराने का प्रयास किया।
रोहतगी ने कहा, ‘‘महाधिवक्ता के खिलाफ सीबीआई को यह पत्र भेजा गया जबकि वह भ्रष्टाचार के उन 25 मामलों में पेश हुये थे जिनमें मुख्यमंत्री पर आरोप लगाये गये थे। मैंने उच्च न्यायालय से अनुरोध किया था कि इस पर तुरंत सुनवाई की जाये क्योंकि यह 30 साल से वकालत कर रहे वकील की प्रतिष्ठा को चोट पहुंचा रहा है।’’
‘‘मेरे मुवक्किल को निशाना बनाया जा रहा है क्येाकि वह (पूर्व) मुख्यमत्री की ओर से पेश हो रहा था। यह मामला दुर्भावना का है। यह आपातकाल से भी बद्तर स्थिति है। सीबीआई ने कुछ नहीं किया। मेरी प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचाया जा रहा है।’’वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी
वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने उच्चतम न्यायालय में दायर याचिका को ‘‘उच्च न्यायालय के खिलाफ विश्वास मत’ बताया। उन्होंने उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के खिलाफ जगन मोहन रेड्डी के आरोपों का भी उल्लेख किया।
साल्वे ने न्यायालय से अनुरोध किया कि वह संविधान के अनुच्छेद 136 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल नही करे क्योंकि उच्च न्यायालय इस मसले से निबट सकता है। साल्वे ने कहा,
‘‘उच्च न्यायलाय को मालूम है कि राज्य में क्या कुछ हो रहा है। इस पूर्व महाधिवक्ता ने अपनी याचिका में इंगित किया है कि वर्तमान मुख्यमंत्री के खिलाफ वह कहां पेश हुआ था और इसी वजह से उन्हें निशाना बनाया जा रहा है।’’
धवन ने इसका प्रतिवाद करते हुये कहा कि सरकार का उच्च न्यायालय के खिलाफ कुछ नहीं है। उन्होंने कहा,
‘‘यह कहा जा रहा है कि बदले की सरकार है। इस वाक्य का इस्तेमाल मैंने किया था जब मैं 1996-1997 में तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता का बचाव कर रहा था। ऐसा प्रतिशोध होता है लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं है कि अगली सरकार जांच नहीं करा सकती जबकि यह एक अपराध से संबंधित आपराधिक मामला हो?’’
संबंधित पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने इस मामले में नोटिस जारी किया और इस प्राथमिकी की रिपोर्टिंग पर बंदिश लगाने संबंधी उच्च न्यायालय के आदेश पर रोक लगा दी। इस मामले में अब अगले साल जनवरी में सुनवाई होगी।
जगन मोहन रेड्डी सरकार ने उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती देते हुये कहा था कि यह एक ऐसी प्राथमिकी के बारे में पारित किया गया है जिस पर पर कोई सवाल नहीं उठाया गया है।
वैसे भी, उच्च न्यायालय में दंडात्मक कार्रवाई से संरक्षण और मीडिया को रिपोर्टिग से प्रतिबंधित करने के लिये सिर्फ एक ही याचिका दायर की गयी थी, उच्च न्यायालय के आदेश में यह राहत सभी अन् आरोपी व्यक्तियों को भी प्रदान कर दी गयी थी।
‘‘पूरे सम्मान के साथ यह कहा जाता है कि उच्च न्यायालय ने आदेश उस याचिका पर दिया है जिसमें प्राथमिकी पर सवाल नहीं उठाया गया है। इसके अलावा, ये आदेश सिर्फ याचिका दायर करने वाले प्रतिवादी के बारे में ही नहीं है बल्कि यह सभी अन्य आरोपी व्यक्तियों के लिये भी है।’’
राज्य के पूर्व महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय में 14 सितंबर को याचिका दायर करते हुये आशंका व्यक्त की थी कि सरकारी मशीनरी उसके साथ दंडात्मक रवैया अपना सकती है। हालांकि, वह प्राथमिकी, जिसके आधार पर महाधिवक्ता ने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी, एक दिन बाद 15 सितंबर को दर्ज हुयी थी
राज्य सरकार की दलील थी कि वास्तव में यह याचिका निरर्थक हो गयी थी।
वाईएसआर कांग्रेस सरकार की याचिका में कहा गया है कि उच्च न्यायालय द्वारा दी गयी राहत ‘पूरी तरह से विकृत’ है।
इसमें कहा गया है कि उच्च न्यायालय को इस याचिका पर ऐसे समय विचार नही करना चाहिए था जब प्राथमिकी भी दर्ज नही हुयी थी। उचच न्यायालय ने प्राथमिकी, ‘‘जिसके सरसरी तौर पर अवलोकन से ही बड़ा घोटाला होने का संकेत मिलता है,’’ के विवरण को देखे बगैर ही निेर्देश दे दिये।
याचिका में यह दलील भी दी गयी कि इस मामले में उच्च न्यायालय को जांच पर रोक नहीं लगानी चाहिए थी और यह आदेश उच्चतम न्यायालय के इम्तियाज अहमद बनाम उत्तर प्रदेश प्रकरण में 2012 में दिये गये फैसले के खिलाफ है।
याचिका में कहा गया है कि जांच अभी प्रारंभिक चरण में थी और इसलिए इस पर रोक लगाने की आवश्यकता नहीं थी। इस मामले में प्राथमिकी दर्ज होने के चंद घंटे बाद ही उच्च न्यायालय ने इस पर रोक लगा दी। याचिका में इस बिन्दु पर जोर देते हुये कहा गया है,
‘‘इस न्यायालय ने अनेक फैसलों में दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 82 के तहत दायर याचिका पर सुनवाई करते हुये आरोपियों के खिला किसी तरह की दंडात्मक कार्रवाई करने या कदम उठाने से जांच एजेन्सियों को रोकने या जांच पर रोक लाने की प्रवत्ति की साफ तौर पर निन्दा की है।’’
राज्य सरकार ने दावा किया है कि जिस कथित घोटाले के बारे में उच्च न्यायालय ने आदेश पारित किया है उसमे राज्य की बड़ी बड़ी हस्तियों के नाम हैं। जांच पर रोक लगाये जाने से आरोपी व्यक्तियों के पास मौजूद दस्तावेजी सबूतों को नष्ट किये जाने, सतों के साथ छेड़छाड़ करने और गवाहों को प्रभावित करने तथा आरोपी व्यक्तियों के जाचं प्रक्रिया से बचने की आशंका बढ़ गयी है।
यह याचिका अधिवक्ता महफूज नजकी ने तैयार करके दाखिल की।
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