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अर्नब गोस्वामी V महाराष्ट्र विधानसभा: सचिव- उन्होंने स्पीकर के निर्देश पर काम किया, SC:क्या स्पीकर को नोटिस दिया जा सकता है

Bar & Bench

उच्चतम न्यायालय ने महाराष्ट्र विधान सभा के विशेषाधिकार हनन प्रस्ताव की नोटिस के खिलाफ रिपब्लिक टीवी के प्रधान संपादक अर्नब गोस्वमी की याचिका पर आज सुनवाई दो सप्ताह के लिये स्थगित कर दी।

न्यायालय ने कहा कि उसे विधान सभा के सहायक सचिव विलास अठावले द्वारा कल शाम दाखिल किये गये जवाब के अवलोकन के लिये समय चाहिए।

प्रधान न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने इस मामले की सुनवाई की।

CJI Bobde, Justices AS Bopanna and V Ramasubramanian

इस मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर न्यायालय ने शीर्ष अदालत जाने से रोकने के मकसद से गोस्वामी को कथित रूप से धमकी देने के कारण महाराष्ट्र विधान मंडल सचिवालय के सहायक सचिव अठावले को तलब किया था।

इस मामले की सुनवाई की पिछली तारीख पर न्यायालय ने शीर्ष अदालत जाने से रोकने के मकसद से गोस्वामी को कथित रूप से धमकी देने के कारण महाराष्ट्र विधान मंडल सचिवालय के सहायक सचिव अठावले को तलब किया था।

अठावले ने न्यायालय में दाखिल अपने जवाब में कहा कि उन्होंने विधानसभा के अध्यक्ष के निर्देश पर यह कार्यवाही की थी।

गोस्वामी की ओर से पेश हुये वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने आज कहा कि अध्यक्ष को नोटिस भेजी जानी चाहिए।

इस पर न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अरविन्द दातार ने जवाब हलफनामा कहता है कि अठावले एक ‘एजेन्ट’ थे और उन्होंने अध्यक्ष के निर्देशानुसार काम किया है, अध्यक्ष को नोटिस भेजे जाने की आवश्यकता है।

सीजेआई बोबडे ने भी कहा कि नोटिस भेजने की आवश्यकता होगी, उन्होंने कहा कि अध्यक्ष को यह कहने का अवसर नहीं मिलना चाहिए कि उन्हें सूचित किये बगैर ही यह कार्यवाही की गयी।

हालांकि, वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने जोर देकर कहा कि सहायक सचिव के खिलाफ अवमानना का कोई मामला नहीं बनता है। उन्होंने कहा,

‘‘प्रवर्तन निदेशालय ने अर्नब गोस्वामी के खिलाफ शिकायत करने वाले विधायक के कार्यालय पर छापा मारा है। क्या यह न्यायालय की अवमानना होगा?’’
वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे

न्यायालय ने दातार से कहा कि वह इस बिन्दु पर भी विचार करें कि क्या इस मामले में अध्यक्ष को नोटिस भेजा जाना चाहिए।

न्यायालय ने सभी पक्षों से कहा है कि सुनवाई की अगली तारीख पर वे अपना संक्षिप्त वक्तव्य दाखिल करें।

इस मामले में सुनवाई की पिछली तारीख पर सीजेआई बोबडे ने सचिव द्वारा 13 अक्टूबर को अर्नब गोस्वामी को पत्र लिखे गय पत्र पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की थी जिसमें अध्यक्ष और महाराष्ट्र विधानसभा की विशेषाधिकार समिति द्वारा उन्हें भेजा गया कार्यवाही का विवरण उच्चतम न्यायालय में पेश करने के लिये कथित रूप से धमकाया गया था।

सचिव ने 13 अक्टूबर के पत्र में गोस्वामी से कहा था, ‘‘आपने जानबूझकर विधान सभा के नोटिस का हनन किया है और यह गोपनीयता के हनन जैसा है।’’

पीठ ने यह टिप्पणी भी की थी कि यह पत्र अनुच्छेद 32 को चुनौती है और यह गोस्वामी को शीर्ष अदालत जाने से रोकने की धमकी समान है।

सीजेआई बोबडे ने कहा था कि नागरिकों को अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल करने से रोकने का इस तरह का प्रयास न्याय के प्रशासन में गंभीर हस्तक्षेप है। सचिव को व्यक्तिगत रूप से सुनवाई की अगली तारीख पर न्यायालय में पेश होने और यह जवाब देने का निर्देश दिया गया था कि 13 अक्टूबर के पत्र की वजह से क्यों नहीं उनके खिलाफ न्यायालय की अवमानना की कार्रवाई की जानी चाहिए।

गोस्वमी ने सुशांत सिंह राजपूत के आत्महत्या के मामले में निष्क्रियता के लिये सरकार की आलोचना करने के मामले में महाराष्ट्र विधान सभा द्वारा उन्हें 16 सितंबर को भेजे गये विशेषाधिकार नोटिस के खिलाफ उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर की थी।

महाराष्ट्र विधान मंडल में दोनों सदनों में शिव सेना द्वारा गोस्वामी के खिलाफ प्रस्ताव पेश किये जाने के बाद उन्हें 60 पेज का विशेषाधिकार का नोटिस भेजा गया था।

सदन या सदन की किसी समिति के सदस्य के किसी विशेषाधिकार, अधिकार और छूट का कोई व्यक्ति या प्राधिकारी हनन करत है तो उसके बारे में विशेषाधिकार का प्रस्ताव लाया जा सकता है। यह फैसला सदन करता है कि क्या यह विशेषाधिकार हनन है और सदन ही इसकी सजा के बारे में भी निर्णय करता है।

विशेषाधिकार नोटिस के जवाब में गोस्वामी ने अपने चैनल पर एक बयान जारी किया था जिसमे उन्होंने कहा था कि वह उद्धव ठाकरे और निर्वाचित प्रतिनिधियों से सवाल पूछना जारी रखेंगे और उन्होंने इस नोटिस को चुनौती देने का निश्चय किया था।

न्यायालय ने इस मामले में गोस्वामी को संरक्षण प्रदान करते हुये सहायक सचिव को कारण बताओ नोटिस जारी किया था।

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Arnab Goswami v Maharashtra Assembly: Assistant Secy says he acted on Speaker's direction, SC mulls on whether Speaker should be served notice