उच्चतम न्यायालय ने आईसीआईसीआई बैंक की पूर्व मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक की 2019 में सेवा समाप्त करने के मामले में बंबई उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप करने से आज इंकार कर दिया। उच्च न्यायालय ने बर्खास्तगी को चुनौती देने वाली चंदा कोछड़ की याचिका खारिज कर दी थी।
वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति ऋषिकेष रॉय की पीठ से इस मामले को सुनने का पुरजोर अनुरोध किया। पीठ ने कहा,
‘‘हम उच्च न्यायालय के आदेश में हस्तक्षेप नही करना चाहते। यह मामला बैक और कर्मचारी के निजी करार के दायरे में आता है, हमें खेद है रोहतगी जी, हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते।’’
कोचर की ओर से रोहतगी ने दलील दी कि आईसीआईसीआई बैंक के लिये यह उपयुक्त नही था कि वह पूर्व सीईओ और एमडी को सेवानिवृत्त करे। उन्होंने कोछड़ की सेवा समाप्त करने के फैसले पर सवाल उठाते हुये कहा कि ऐसा भारतीय रिजर्व बैंक की पूर्व अनुमति के बगैर किया गया था।
उन्होंने कहा,
‘‘उन्होंने मेरे त्यागपत्र को सेवा समाप्ति में तब्दील कर दिया। सवाल यह है कि क्या त्यागपत्र को मंजूर किये बगैर ही सेवा समाप्त की जा सकती है।’’
न्यायमूर्ति कौल ने जब यह कहा कि रिजर्व बैंक ने कोछड़ की सेवा समाप्त करने को मंजूरी दी थी, रोहतगी ने इसका जवाब देते हुये कहा,
‘‘कर्मचारी धारा 35बी (बैंकिंग रेग्यूलेशन अधिनियम) के दायरे में नहीं है। मेरा त्याग पत्र सेवा समाप्त करने में कैसे तब्दील किया जा सकता है।रिजर्व बैंक को ऐसा करने का कोई अधिकार नही था।’’
आपने स्वंय ही बाहर जाने का निर्णय किया लेकिन अब आप कह रहे हैं कि वे आपकी सेवायें समाप्त कर रहे हैं। बैंक आपको निकाल नही रही है।उच्चतम न्यायालय
रोहतगी ने इस मामले को अगले सप्ताह सूचीबद्ध करने का बार बार अनुरोध किया लेकिन पीठ ने इसकी सुनवाई करने से इंकार कर दिया।
चंदा कोचर ने आईसीआईसीआई बैंक द्वारा पिछले साल जनवरी में उनकी सेवायें समाप्त करने की संदेश को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
आईसीआईसीआई बैंक द्वारा वीडियोकॉन इंडस्ट्रीज को लाभ की एवज में कर्ज देने के आरोपों की जांच के लिये उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश न्यायमूर्ति बीएन श्रीकृष्णा की अध्यक्षता वाली समिति गठित की गयी थी। वीडियोकॉन ने चंदा कोछड़ के पति दीपक कोचर की कंपनी न्यूपावर रिन्यूवेबलल्स में निवेश किया था।
न्यायमूर्ति श्रीकृष्णा समिति ने पिछले साल अपनी रिपोर्ट में चंदा कोचर को दोषी पाया। इसके बाद आईसीआईसीआई बैंक के निदेशक मंडल ने जांच रिपोर्ट पर विचार के बाद उनकी सेवायें समाप्त कर दीं। इसके परिणामस्वरूप, 30 जनवरी, 2019 को बोर्ड ने कोछड़ को सूचित किया कि बैंक से उनके अलग होने को ‘टर्मिनेशन फॉर कॉज मानने का फैसला किया है।
बैंक ने बाद में कोचर के सेवानिवृत्ति के लाभ भी रोक लिये। बैंक ने कोचर के वर्तमान और भावी लाभों का भुगतान करने से भी इंकार कर दिया। इसमे उनकी बकाया राशि, स्टॉक विकल्प और मेडिकल संबंधी लाभ शामिल थे।
अत: कोचर ने प्रबंध निदेशक और मुख्य कार्यकारी अधिकारी के रूप में देय वेतन से इंकार करने और सेवा समाप्त करने के बैंक के निर्णय को बंबई उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।
उच्च न्यायालय ने इस साल मार्च में कोचर की याचिका खारिज करते हुये कहा कि आईसीआईसीआई बैंक एक निजी संस्था है और कोछड़ की सेवा शर्ते किसी कानून से शासित नहीं हैं।
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