सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि एक अभियुक्त इस आधार पर दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत का हकदार नहीं है कि समय अवधि के भीतर दायर चार्जशीट में प्राधिकरण की वैध मंजूरी नहीं है। [जसबीर सिंह बनाम राष्ट्रीय जांच एजेंसी]
भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला की खंडपीठ ने कहा कि अपराध का संज्ञान लेने के चरण के दौरान मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए, और यह नहीं कहा जा सकता है कि प्राधिकरण से मंजूरी लेना अभियोजन प्रक्रिया का हिस्सा है।
इसलिए, इस तर्क में कोई दम नहीं पाया गया कि मंजूरी के बिना चार्जशीट वैध चार्जशीट नहीं है।
अदालत ने कहा, "अपराध का संज्ञान लेने के दौरान मंजूरी की आवश्यकता है या नहीं, इस पर विचार किया जाना चाहिए। अभियोजन तब शुरू होता है जब अपराध का संज्ञान लिया जाता है और यह नहीं कहा जा सकता है कि प्राधिकरण से मंजूरी लेना अभियोजन का हिस्सा है।"
न्यायमूर्ति परदीवाला ने स्पष्ट किया, "हमने माना है कि मंजूरी चार्जशीट का हिस्सा नहीं है और जांच एजेंसी का मंजूरी से कोई लेना-देना नहीं है।"
अपील पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय के एक आदेश के खिलाफ थी जिसने उन्हें सीआरपीसी की धारा 167 (2) के तहत डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा करने से इनकार कर दिया था।
यह अपीलकर्ताओं का तर्क था कि मंजूरी के बिना दायर की गई चार्जशीट एक अधूरी चार्जशीट है और सीआरपीसी की धारा 173(2) के अर्थ में पुलिस रिपोर्ट की आवश्यकता को पूरा नहीं करती है। उन्होंने तर्क दिया कि इस तरह की चार्जशीट सीआरपीसी की धारा 173 की उप धारा (5) के अनुरूप भी नहीं होगी।
अदालत ने सुरेश कुमार भीकमचंद जैन बनाम महाराष्ट्र राज्य और अन्य मामले में अपने फैसले के आधार पर कहा कि एक बार चार्जशीट निर्धारित समय के भीतर दाखिल हो जाने के बाद, डिफ़ॉल्ट जमानत देने का सवाल ही नहीं उठता।
कोर्ट ने स्पष्ट किया, "संज्ञान लिया गया है या नहीं लिया गया है, यह सीआरपीसी की धारा 167 के अनुपालन के उद्देश्य से प्रासंगिक नहीं है। चार्जशीट दाखिल करना ही पर्याप्त है।"
कोर्ट ने कहा कि चार्जशीट पूरी जांच पूरी होने के बाद दायर की गई थी।
इस प्रकार, यह माना चार्जशीट दाखिल करना सीआरपीसी की धारा 167 के प्रावधानों का पर्याप्त अनुपालन था और आरोपी इस आधार पर डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा होने के किसी भी अपरिहार्य अधिकार का दावा नहीं कर सकता था कि चार्जशीट दाखिल करने की समय सीमा समाप्त होने से पहले संज्ञान नहीं लिया गया था।
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