दिल्ली की एक अदालत ने हाल ही में कोयला घोटाला मामले में पूर्व कोयला सचिव एचसी गुप्ता और पूर्व सिविल सेवक केएस क्रोफा को बरी कर दिया। [सीबीआई बनाम कोहिनूर स्टील प्राइवेट लिमिटेड और अन्य]
राउज एवेन्यू कोर्ट के विशेष न्यायाधीश (पीसी एक्ट) संजय बंसल ने कहा कि गुप्ता या क्रोफा द्वारा अवैध रिश्वत की कोई मांग नहीं की गई थी और उन्हें कोयला ब्लॉकों के आवंटन के लिए गठित स्क्रीनिंग कमेटी द्वारा लिए गए निर्णयों के लिए अलग नहीं किया जा सकता।
न्यायाधीश ने कहा, "यदि अभियोजन पक्ष यह सुझाव देना चाहता है कि केवल ए-3 और ए-4 [गुप्ता और क्रोफा] ही सिफारिशें करने के लिए उत्तरदायी थे और अन्य सदस्य इसमें शामिल नहीं थे, तो यह कहा जाना चाहिए कि यह स्क्रीनिंग कमेटी थी जिसने यह कार्य किया था। सिफारिशें करने के लिए ए-3 और ए-4 को अलग नहीं किया जा सकता है।"
न्यायालय ने इस बात पर जोर दिया कि हो सकता है कि चूक, कमियां या गलत निर्णय हुए हों, लेकिन उन्हें आपराधिक कृत्यों के बराबर नहीं माना जा सकता।
न्यायालय ने कहा, "सार्वजनिक कर्तव्य का अनुचित निष्पादन पीसी अधिनियम की धारा 13(1)(डी) के तहत अपराध नहीं है, जब तक कि यह किसी पुरस्कार के लिए न किया गया हो। ऐसा कोई आरोप नहीं है कि ए-3 और ए-4 को कोई पुरस्कार दिया गया या उनकी ओर से कोई पुरस्कार मांगा गया।"
इसके अलावा, न्यायालय ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि गुप्ता और क्रोफा ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को गुमराह किया।
यह मामला झारखंड में स्थित मेदनीराय कोल ब्लॉक को कोहिनूर स्टील प्राइवेट लिमिटेड (केएसपीएल) नामक कंपनी को आवंटित करने से संबंधित है। आवंटन के समय गुप्ता कोयला सचिव थे, जबकि क्रोफा मंत्रालय में संयुक्त सचिव के पद पर तैनात थे।
केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) ने तर्क दिया था कि गुप्ता और क्रोफा ने जानबूझकर केएसपीएल के पक्ष में आवेदन प्रारूप में स्पष्ट विसंगतियों और बदलाव को नजरअंदाज किया और मेदनीराय कोल ब्लॉक की सिफारिश की।
यह तर्क दिया गया कि दोनों सिविल सेवकों ने केएसपीएल, इसके निदेशक विजय बोथरा और महाप्रबंधक राकेश खरे के साथ मिलकर इस्पात मंत्रालय (एमओएस), कोयला मंत्रालय (एमओसी) और झारखंड राज्य को गलत जानकारी/दस्तावेज देकर धोखा देने की साजिश रची।
अभियोजन पक्ष ने मांग की कि उन पर भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के साथ धारा 420 (धोखाधड़ी) और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13 (2) के साथ धारा 13 (1) (डी) (आपराधिक कदाचार) के तहत मुकदमा चलाया जाए।
मामले पर विचार करने के बाद न्यायालय ने फैसला सुनाया कि कोयला मंत्रालय को आवेदक कंपनियों द्वारा दी गई जानकारी/डेटा का सत्यापन नहीं करना चाहिए, क्योंकि यह कार्य प्रशासनिक मंत्रालयों और संबंधित राज्य सरकारों के लिए अनिवार्य है।
इसलिए, इसने गुप्ता और क्रोफा को आरोपमुक्त कर दिया।
हालांकि, न्यायालय ने केएसपीएल और उसके दो अधिकारियों के खिलाफ धोखाधड़ी और आपराधिक साजिश के आरोप तय किए।
न्यायालय ने आदेश दिया, "ऐसा माना जाता है कि प्रथम दृष्टया धारा 120-बी के साथ 420 आईपीसी के तहत दंडनीय अपराध के लिए आरोप तय करने का मामला ए-1, ए-2 और ए-5 के खिलाफ बनता है। इसके अलावा प्रथम दृष्टया धारा 420 आईपीसी के तहत दंडनीय मूल अपराध के लिए आरोप तय करने का मामला ए-1, ए-2 और ए-5 के खिलाफ बनता है।"
अधिवक्ता राहुल त्यागी ने एचसी गुप्ता और केएस क्रोफा के लिए मामले पर बहस की।
अधिवक्ता ध्रुव कामरा राकेश खरे की ओर से पेश हुए।
अधिवक्ता श्री सिंह विजय बोथरा की ओर से पेश हुए।
केएसपीएल का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता रूपाली फ्रांसेस्का सैमुअल ने किया।
सीबीआई का प्रतिनिधित्व अधिवक्ता संजय कुमार ने किया।
[निर्णय पढ़ें]
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