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दिल्ली हाईकोर्ट ने रूटीन स्थगन की संस्कृति की निंदा की

कोर्ट ने कहा कि रूटीन और बार-बार स्थगन अनुरोधों का चलन एक बड़ा पैटर्न बन गया है, जिससे केस का समय पर निपटारा हो रहा है।

Bar & Bench

दिल्ली हाईकोर्ट ने बुधवार को "एडजर्नमेंट का कल्चर" पर आपत्ति जताई और कहा कि केस टालने की बार-बार की रिक्वेस्ट से केस की प्रोग्रेस में रुकावट आ रही है।

जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने यह बात एक अर्जी पर सुनवाई करते हुए कही। अर्जी में एक केस करने वाले पर कई बार सुनवाई टालने की मांग करने पर ₹20,000 का खर्च माफ करने की मांग की गई थी।

यह खर्च तब लगाया गया जब पिटीशनर ने 2021 के एक मामले में कई बार सुनवाई टालने की मांग की थी। यह मामला एक मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के सामने पेंडिंग एक कंप्लेंट केस को रद्द करने से जुड़ा था।

जस्टिस कृष्णा के मुताबिक, कई मामलों में बिना किसी सही वजह के अक्सर सुनवाई टालने की रिक्वेस्ट की जाती थी। कोर्ट ने देखा कि समय के साथ सुनवाई टालने की रिक्वेस्ट और बढ़ गई हैं।

जस्टिस कृष्णा ने कहा, "बदकिस्मती से, कोर्ट में समय के साथ सुनवाई टालने का एक कल्चर बन गया है, चाहे मामला कुछ भी हो, सुनवाई टालते ही दे दी जाती है।"

Justice Neena Bansal Krishna

पिटीशनर के वकील ने पहले लगाई गई कॉस्ट माफ करने की मांग की, यह कहते हुए कि कई तारीखों पर उनकी गैरहाजिरी पर्सनल मुश्किल की वजह से थी।

कोर्ट ने एक्सप्लेनेशन की जांच की और कहा कि रिकॉर्ड से पता चलता है कि वकील की गैरहाजिरी किसी पर्सनल मुश्किल की वजह से नहीं, बल्कि किसी दूसरे मामले में प्रोफेशनल कमिटमेंट की वजह से थी, जैसा कि दावा किया गया है।

जस्टिस कृष्णा ने कहा कि वकील ने यह भी कहा था कि वह दो बच्चों की सिंगल पेरेंट हैं और उन पर कई जिम्मेदारियां हैं।

कोर्ट ने कहा कि ऐसे आधार 2021 से पहले से पेंडिंग केस में बार-बार एडजर्नमेंट को सही नहीं ठहरा सकते।

जस्टिस कृष्णा ने रिकॉर्ड किया कि इस तरह से एडजर्नमेंट के इस्तेमाल से केस की प्रोग्रेस पर असर पड़ा और देरी और पेंडेंसी बढ़ी। जज ने कहा कि वकील को बार-बार गैरहाजिरी को समझाने के लिए प्रोफेशनल कमिटमेंट को पर्सनल मुश्किल के तौर पर पेश करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए।

इन बातों के बावजूद, कोर्ट इस मामले में कॉस्ट माफ करने पर सहमत हो गया।

जस्टिस कृष्णा ने कहा कि बिना किसी सही वजह के एडजर्नमेंट मांगने का तरीका मंज़ूर नहीं है, लेकिन उन्होंने कहा कि कोर्ट के सामने रखे गए हालात को देखते हुए कॉस्ट लागू नहीं की जाएगी।

जज ने कहा, "ऐसा दोबारा मत करना, और कीमत चुकाने की तमीज़ दिखाओ।"

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Delhi High Court deprecates culture of routine adjournments