दिल्ली उच्च न्यायालय ने मंगलवार को पिछले साल जुलाई में पद खाली होने के बावजूद, दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग (डीसीपीसीआर) के लिए अध्यक्ष नियुक्त करने में दिल्ली सरकार की विफलता पर गंभीर संज्ञान लिया।
कोर्ट को बताया गया कि नियुक्ति के लिए फाइल अगस्त 2023 में दिल्ली के संबंधित मंत्री को भेजी गई थी, लेकिन अब तक आगे कुछ नहीं हुआ है।
कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति मनमीत प्रीतम सिंह अरोड़ा की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी।
अदालत को बताया गया कि इस साल 27 मार्च को संबंधित मंत्री ने फाइल पर लिखा था कि मौजूदा चुनावी मौसम के दौरान आदर्श आचार संहिता (एमसीसी) लागू होने के कारण डीसीपीसीआर अध्यक्ष की नियुक्ति अब नहीं की जा सकती है।
इस बीच, केंद्र सरकार की ओर से पेश वकील ने कहा कि भले ही एमसीसी लागू है, लेकिन यह डीसीपीसीआर अध्यक्ष की नियुक्ति को प्रभावित नहीं करता है।
जवाब में कोर्ट ने टिप्पणी की, "अगर चाह है, तो राह है। चाहत होनी चाहिए। जरा सोचिए, अगस्त से अब तक कुछ नहीं हुआ है।"
दिल्ली के उपराज्यपाल (एलजी) की ओर से पेश वकील ने कोर्ट को बताया कि एलजी ने एक अंतरिम व्यवस्था बनाई है।
अदालत को बताया गया कि संबंधित विभाग के सचिव डीसीपीसीआर अध्यक्ष के रूप में भी कार्य कर रहे हैं।
अदालत उस याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें सरकार को डीसीपीसीआर में तुरंत अध्यक्ष नियुक्त करने का निर्देश देने की मांग की गई थी। यह पद जुलाई 2023 में खाली हो गया।
राष्ट्रीय बाल विकास परिषद नामक संगठन द्वारा दायर याचिका में कहा गया है कि डीसीपीसीआर सदस्यों के पद भी अब खाली हो गए हैं।
डीसीपीसीआर की ओर से पेश वकील ने सुझाव दिया कि मामले को जुलाई तक के लिए स्थगित किया जा सकता है, जब लोकसभा चुनाव खत्म हो जाएंगे और रिक्ति को भरने के लिए कदम उठाए जा सकते हैं।
कोर्ट ने मामले पर विचार किया और मामले पर नोटिस जारी किए।
इसने मामले को 16 जुलाई को आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है।
याचिका वकील रॉबिन राजू के माध्यम से दायर की गई है।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें
"If there is a will, there is a way": Delhi High Court on delay in appointing DCPCR Chairperson