दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक वकील पर 25,000 रुपए का जुर्माना लगाया, जिसने बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा को राज्यसभा से अयोग्य ठहराने की मांग की थी [अमित कुमार दिवाकर बनाम भारत संघ ]।
अधिवक्ता अमित कुमार दिवाकर ने रिट याचिका के माध्यम से न्यायालय में याचिका दायर की, जिसमें तर्क दिया गया कि मिश्रा, बीसीआई अध्यक्ष के पद पर रहते हुए, राज्य सभा के वर्तमान सदस्य के रूप में कार्य नहीं कर सकते, क्योंकि पूर्व पद ‘लाभ के अधिकारी’ के रूप में योग्य है।
न्यायमूर्ति संजीव नरूला ने फैसला सुनाया कि संविधान अनुच्छेद 102(1) के तहत अयोग्यता के प्रश्नों को संबोधित करने के लिए स्पष्ट रूप से एक प्रक्रियात्मक रूपरेखा की रूपरेखा तैयार करता है।
न्यायालय ने कहा, "अनुच्छेद 103 के अनुसार, जब किसी संसद सदस्य की अयोग्यता के बारे में कोई प्रश्न उठता है, तो ऐसे मामले को निर्णय के लिए भारत के राष्ट्रपति के पास भेजा जाना चाहिए। महत्वपूर्ण बात यह है कि कोई भी निर्णय देने से पहले राष्ट्रपति को संवैधानिक रूप से चुनाव आयोग की राय प्राप्त करने और उसके अनुसार कार्य करने का अधिकार है। इसलिए, चुनाव आयोग की राय ही काफी महत्वपूर्ण है और यह निर्धारित करने में निर्णायक है कि अयोग्यता के आधार पूरे होते हैं या नहीं।"
इसमें कहा गया है कि इस तरह की संरचित प्रक्रिया अयोग्यता के मुद्दे की गहन और निष्पक्ष जांच के महत्व को उजागर करती है।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि एक स्वतंत्र संवैधानिक प्राधिकरण के रूप में चुनाव आयोग की भूमिका यह सुनिश्चित करती है कि ऐसे मामलों का मूल्यांकन उचित जांच के साथ किया जाए, बाहरी प्रभावों से मुक्त हो।
इस प्रकार, न्यायालय ने फैसला सुनाया कि मिश्रा को अयोग्य ठहराने के लिए कदम उठाने के लिए विधि और न्याय मंत्रालय को परमादेश की रिट मांगने का दिवाकर का प्रयास गलत था।
न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 102(1) के तहत अयोग्यता केवल कुछ आरोपों या अनुमानों के आधार पर स्वतः नहीं हो सकती।
ऐसे निर्णय के लिए संविधान द्वारा निर्धारित औपचारिक जांच और तर्कसंगत निर्धारण की आवश्यकता होती है।
न्यायालय ने यह भी कहा कि मिश्रा पर ‘लाभ का पद’ रखने का अस्पष्ट आरोप संवैधानिक प्रक्रिया की अवहेलना करते हुए मंत्रालय को निर्देश जारी करने का आधार नहीं बन सकता।
अदालत ने कहा, ‘‘इसलिए, विधि एवं न्याय मंत्रालय तथा भारत के चुनाव आयोग को आदेश देने का याचिकाकर्ता का अनुरोध अस्वीकार्य है और इस पर इस अदालत द्वारा विचार नहीं किया जा सकता।’’
न्यायालय ने यह भी कहा कि जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 80 में स्पष्ट रूप से प्रावधान है कि किसी चुनाव को केवल अधिनियम के अनुसार प्रस्तुत चुनाव याचिका के माध्यम से ही चुनौती दी जा सकती है।
न्यायालय ने कहा कि अनुच्छेद 226 के तहत रिट याचिका चुनाव विवाद को संबोधित करने के लिए उपयुक्त मंच नहीं है।
न्यायालय ने आगे कहा कि दिवाकर द्वारा रिट अधिकार क्षेत्र का आह्वान करने का निर्णय कानूनी सिद्धांतों के दुरुपयोग के समान है और याचिका को खारिज कर दिया।
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Delhi High Court rejects plea against election of BCI Chairman Manan Kumar Mishra to Rajya Sabha