गुजरात उच्च न्यायालय ने हाल ही में राज्य में अनधिकृत धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई पर अपनी स्थिति रिपोर्ट में स्पष्टता की कमी के लिए गुजरात सरकार को फटकार लगाई और राज्य के गृह सचिव को बेहतर हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया।
मुख्य न्यायाधीश सुनीता अग्रवाल और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध पी मेय की खंडपीठ ने कहा कि 30 सितंबर, 2022 तक पहचाने गए कुल अनधिकृत निर्माणों में से केवल 23.33 प्रतिशत के संबंध में कार्रवाई शुरू की गई थी।
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है कि क्या कार्रवाई केवल विचार की गई थी या ऐसी संरचनाओं के खिलाफ कोई वास्तविक कार्रवाई की गई थी।
अदालत ने कहा, ''इसके अलावा, हम गृह विभाग के सचिव द्वारा हलफनामे में कोई विवरण दिए बिना हलफनामे दायर करने के तरीके पर कड़ी आपत्ति दर्ज कर सकते हैं, जिसमें शीर्ष अदालत द्वारा जारी निर्देशों के अनुपालन में अनधिकृत निर्माणों को हटाने के मामले में की गई कार्रवाई की प्रकृति के बारे में बताया गया है।
उच्च न्यायालय ने 2006 में एक समाचार रिपोर्ट का स्वत: संज्ञान लिया था जिसमें कहा गया था कि 1,200 मंदिरों और 260 मुस्लिम धर्मस्थलों ने सार्वजनिक भूमि पर अतिक्रमण किया था। इसके बाद सार्वजनिक स्थल पर धार्मिक स्थलों पर बिना किसी भेदभाव के अतिक्रमण हटाने का निर्देश दिया गया।
जब मामला अपील में सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, तो 2010 में शीर्ष अदालत ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को धार्मिक संरचनाओं को हटाने के संबंध में एक व्यापक नीति तैयार करने का निर्देश दिया।
शीर्ष अदालत के निर्देशों को ध्यान में रखते हुए, उच्च न्यायालय ने दिसंबर 2022 में राज्य को अवैध धार्मिक संरचनाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई पर स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश अग्रवाल की अध्यक्षता वाली पीठ ने राज्य द्वारा दायर हलफनामे को अस्पष्ट पाया और मामले के निपटारे के लिए राज्य की दलीलों पर भी आपत्ति जताई।
पीठ ने कहा, ''हलफनामे में यह बयान कि याचिका का निपटारा इस न्यायालय द्वारा किया जाए क्योंकि राज्य सरकार द्वारा बनाई गई कार्य योजना किसी भी और अतिक्रमण से निपटने की होगी, पूरी तरह से अवांछित है।
न्यायालय ने टिप्पणी की कि हालांकि 2022 में सरकार द्वारा जारी नीतिगत निर्णय को हलफनामे के साथ जोड़ दिया गया है, लेकिन उक्त संकल्प के अनुपालन को रिकॉर्ड पर नहीं लाया गया है।
इसलिए, अदालत ने सरकारी वकील को निर्देश दिया कि वह शीर्ष अदालत के 2010 के आदेश के मद्देनजर पहले पारित निर्देशों के सख्त अनुपालन में गृह विभाग के सचिव का हलफनामा दायर करे।
मामले की अगली सुनवाई 27 फरवरी को होगी।
[आदेश पढ़ें]
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें