उच्चतम न्यायालय ने हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले की स्वतंत्र जांच के लिये दायर याचिका पर सुनवाई आज अगले सप्ताह के लिये स्थगित कर दी।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया जिसमे गवाहों को दिये गये संरक्षण का विवरण हो और क्या पीड़ित के परिवार ने अपना प्रतिनिधित्व करने के किसी वकील का चुनाव किया है।
न्यायालय ने इस बारे में भी सुझाव मांगे कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही दायरा किस तरह से बढ़ाया जा सका है।
उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह इस याचिका के खिलाफ नहीं हैं। उन्होंने कहा,
‘‘इसमें सिर्फ बयान ही हैं, लेकिन दुखद सच्चाई यह है कि एक लड़की की जान चली गयी है।’’
मेहता ने कहा कि इस मामले की निष्पक्ष और स्वतंत्र सुनवाई होनी चाहिए और शीर्ष अदालत को जांच की निगरानी करनी चाहिए।
वरिष्ठ अधिवक्ता इन्दिरा जयसिंह ने तब न्यायालय से अनुरोध किया कि पीड़ित के परिवार को गवाह संरक्षण प्रदान किया जाये और इसकी सुनवाई स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाये। उन्होंने कहा कि किसी भी वकील को इस मामले में आने की अनुमति नही दी जानी चाहिए।
इस पर मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने जानना चाहा,
‘‘क्या आप सुनवाई स्थानांतरित करने का अनुरोध कर रही हैं या जांच हस्तांतरित करने का अनुरोध कर रही हैं? यह घटना बहुत ही अभूतपूर्व है और हतप्रभ करने वाली है जिस वजह से हम आपको सुन रहे है, अन्यथा हम आश्वस्त नहीं है कि इस आपराधिक मामले में आपकी कोई स्थिति है।’’
जयसिंह के सहयोग की सराहना के बाद न्यायालय ने कहा कि वह अधिकार के सवाल पर याचिकाकर्ता को सुनना चाहता है।
याचिकाकर्ता, जो एक सेवानिवृत्त जज है, की ओर से अधिवक्ता प्रदीप कुमार यादव ने कहा,
‘‘मैं एक महिला भी हूं और इस घटना ने हम सभी को झकझोर दिया है।’’
अधिवक्ता कीर्ति सिंह ने इसमें हस्तक्षेप करते हुये न्यायालय को सूचित किया कि कई महिलाओं ने पीड़ित परिवार की सुरक्षा के लिये एक पत्र लिखा है।
इस पर मुख्य न्यायाधीश ने वकीलों से अनुरोध किया,
"अपनी चिंताओं को दोहरायें’ नहीं। उन्होंने कहा, ‘‘इसका मतलब यह नहीं है कि हम किसी भी तरह से इस घटना को माफ कर रहे हैं। यह हृदयविदारक धटना है लेकिन हम सिर्फ यही कह रहे हैं कि न्यायालय को हर पक्ष से एक ही दलील सुनने की जरूरत नहीं है। यह घटना पर टिप्पणी नहीं है। कृपया हमारा दृष्टिकोण समझिये।’’
सिंह ने इस पर जवाब दिया कि वह चाहती थीं कि यह पत्र भी न्यायालय के समक्ष सूचीद्ध हो जब प्रधान न्यायाधीश ने उनसे यह सवाल किया कि वह इलाहाबाद उच्च न्यायालय क्यों नहीं गयीं, जिसने स्वत: ही इसका संज्ञान लिया है, सिंह ने जवाब दिया कि इसकी जांच सीबीआई को सौंपी जा चुकी है। इस पर मुख्य न्यायाधीश ने कहा,
‘‘हां, हम समझते हैं लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय एक संवैधानिक न्यायालय है और इस घटना पर ही एक अन्य मामले की सुनवाई कर रहा है।’’
जयसिंह ने जब गवाह संरक्षण पर जोर दिया तो सालिसीटर जनरल मेहता ने जवाब दिया कि गवाह पहले से ही संरक्षण में हैं।
इसके बाद न्यायालय ने मेहता से गवाह को दिये गये संरक्षण का विवरण पेश करने और यह बताने का निर्देश दिया कि क्या पीड़ित के परिवार ने अपना वकील चुन लिया है।
मुख्य न्यायाधीश ने कहा,
‘‘हम आप सभी से जानना चाहते है कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय की कार्यवाही का क्या दायरा है और आप सभी से सुझाव चाहते हैं कि उच्च न्यायालय में लंबित कार्यवाही का दायर हम कैसे बढ़ा सकते हैं।’
इस मामले को परस्पर विरोधी मामला नही मानने संबंधी सालिसीटर जनरल के कथन का संज्ञान लेते हुये न्यायालय ने कहा कि सभी पक्ष इस बारे में विधि अधिकारी को अपने सुझाव दें।
मेहता ने कहा ,
‘‘और मैं इससे सरोकार रखने वाले सभी से उम्मीद करता हूं कि न्यायालय के बाहर इस दुर्भाग्यपूर्ण घटना को सनसनीखेज नहीं बनायें। मैं सिर्फ यही अनुरोध कर रहा हूं कि न्यायालय के बाहर भी शिष्टता बनाये रखी जाये।’’
न्यायालय ने कहा कि वह सुचारू ढंग से जांच सुनिश्चित करेगा और इसके साथ ही उसने इस मामले की सुनवाई अगले सप्ताह के लिये स्थगित कर दी।
हाथरस की हृदयविदारक घटना के बाद एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी ने भी उच्चतम न्यायलाय में याचिका दायर कर दलित पीड़ित का जबरन अंतिम संस्कार करने के लिेये जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारी के खिलाफ जांच का अनुरोध किया है।
याचिककर्ता, चंद्र भान सिंह, एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी हैं जिनहोंने 25 साल से भी अधिक समय तक न्यायिक व्यवस्था की सेवा की है।
याचिका में इस मामले की राज्य पुलिस से इतर किसी अन्य एजेन्सी से जांच कराने का अनुरोध किया गया है। याचिका में यह भी अनुरोध किया गया है अगर पीड़ित की मृत देह के साथ कथित रूप से अमर्यादित और अमानवीय व्यवहार के आरोप सही पाये जाते हैं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।
सिंह ने यह भी दावा किया है कि संविधान के अनुच्छेद 25 में प्रदत्त अपनी परंपरा के अनुसार पीड़ित की देह का अंतिम संस्कार करने के परिवार के अधिकार का हनन हुआ है।
याचिका में संविधान के अनुच्छेद 21 का भी सहारा लिया गया है और यह सवाल उठाया गया है कि क्या एक व्यक्ति को प्राप्त जीवन के अधिकार में उसकी मृत्यु के मामले में गरिमा का अधिकार भी शामिल है।
हाथरस के गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की गयी थी। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। पीड़ित का पार्थिव शरीर जब उसके पैतृक गांव ले जाया जा रहा था तो उप्र पुलिस और प्रशासन ने परिवार की सहमति या उनकी उपस्थिति के बगैर ही रात के अंधरे में उसके शव की कथित रूप से जबरन अंत्येष्टि कर दी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने स्वत: ही इस घटना का संज्ञान लिया है और मामला 12 अक्टूबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है।
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