दिल्ली उच्च न्यायालय ने हाल ही में भारत द्वारा 'सुपर बासमती' चावल के निर्यात के खिलाफ तीन पाकिस्तानी संस्थाओं (वादी) द्वारा दायर 15 साल पुराने मुकदमे को खारिज कर दिया [ट्रेडिंग कॉर्पोरेशन ऑफ पाकिस्तान प्राइवेट लिमिटेड बनाम भारत सरकार, वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय]
न्यायमूर्ति प्रतिभा एम सिंह ने कहा कि वादी की ओर से 2020 से मामले में कोई पेशी नहीं हुई है और तब से मुकदमे पर प्रभावी तरीके से मुकदमा नहीं चलाया गया है।
पीठ ने कहा, ''प्रतिवादी के उपरोक्त रुख को ध्यान में रखते हुए मौजूदा मुकदमे में आगे कोई आदेश नहीं मांगा जाता। तदनुसार, मुकदमा गैर-अभियोजन के लिए खारिज कर दिया जाता है। सभी लंबित आवेदनों का भी निपटारा किया जाता है। "
याचिकाकर्ताओं ने कहा कि उसके पास पहले से ही 'सुपर बासमती' ब्रांड है और भारत द्वारा इस नाम का इस्तेमाल करने से उसकी सीमापार प्रतिष्ठा, लेबल, गुणवत्ता, किस्म और विकसित बासमती चावल का वर्गीकरण कम होगा।
उन्होंने भारतीय अधिकारियों को 'सुपर बासमती' के नाम/किस्म/वर्गीकरण/व्यापार नाम के तहत भारत से विकसित बासमती चावल या किसी भी चावल के निर्यात की अनुमति देने से रोकने की मांग की।
उच्च न्यायालय ने 28 नवंबर को सुनाए गए एक आदेश में कहा कि बासमती भारत में वस्तुओं के भौगोलिक संकेतक (पंजीकरण और संरक्षण) अधिनियम, 1999 के प्रावधानों के तहत भौगोलिक संकेतक (जीआई) के रूप में पंजीकृत है।
अदालत ने आगे कहा कि कृषि मंत्रालय द्वारा 18 सितंबर, 2017 को जारी एक अधिसूचना के अनुसार, 1966 के बीज अधिनियम की धारा 5 के तहत अधिसूचित बासमती चावल की सभी किस्मों का बीज उत्पादन दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, यूपी के कुछ हिस्सों और जम्मू और कश्मीर राज्य के जीआई पंजीकृत चावल उत्पादक क्षेत्रों तक ही सीमित है।
अदालत ने अंतत: मुकदमा खारिज कर दिया क्योंकि मुकदमा नहीं चलाया गया।
भारत सरकार की ओर से अधिवक्ता अक्षय अमृतांशु, राजेंद्र कुमार, जितिन जॉर्ज, आशुतोष जैन और अंजलि कुमारी पेश हुए।
वादी की ओर से कोई पेश नहीं हुआ।
[आदेश पढ़ें]
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