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भारतीय संविधान की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी सहजता है जिसकी वजह से हम इसमें संशोधन कर सकते हैं: न्यायमूर्ति दामा सिशाद्री नायडू

बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ने कहा संविधान के मूलभूत प्रावधानों के संबंध में भी संशोधन की संभावना बहुत सख्त होनी चाहिए।

Bar & Bench

न्यायमूर्ति दामा शेशाद्री नायडू ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनके विचार से हमारे संविधान की सबसे बड़ी कमजोरी इसकी सहजता है जिसकी वजह से हम इसमें संशोधन कर लेते हैं।

न्यायमूर्ति नायडू ने कहा कि मूलभूत प्रावधानों में भी संशोधन की संभावना को और ज्यादा सख्त बनाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति नायडू ने कहा, ‘‘हमारा सबसे बड़ी कमजोरी इसकी सहजता है जिसकी वजह से हम संविधान में संशोधन कर लेते हैं। जब यह मौलिक कानून में संशोधनका सवाल हो तो यह संशोधन के संबंध में अधिक कठोर होना चाहिए और प्रक्रिया संबंधी पहलू की गुंजाइश देनी चाहिए। जहां तक अनुच्छेद 368 का संबंध है तो संविधान के बुनियादी ढांचे के बावजूद मैं इसके मौलिक भाव में संशोधन के लिये कठोर विकल्प रखना चाहूंगा।’’

हमारी सबसे बड़ी कमजोरी सहजता है जिस वजह से हम संविधान में संशोधन करते हैं।
न्यायमूर्ति दामा शेशाद्री नायडू

न्यायमूर्ति नायडू यहां ‘सार्वजनिक जीवन में सांविधानिक संस्कृति‘ विषय पर विधि सेन्टर ऑफ लीगल पालिसी द्वारा आयोजित चौथे वार्षिक सार्वजिक व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे।

विरोध प्रदशन के अधिकार के सवाल पर न्यायमूर्ति नायडू ने कहा कि सार्वजनिक जीवन को बाधित करने के हथियार के रूप में इसका इस्तेमाल नहीं किया जा सकता लेकिन इसकी बजाये निर्धारित स्थानों पर ही इसका आयोजन होना चाहिए, उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून के विरोध में शाहीन बाग में धरना प्रदर्शन से संबंधित मामले में अपने फैसले में यही विचार व्यक्त किये थे।

न्यायमूर्ति नायडू ने कहा, ‘‘विरोध प्रदर्शन करने का अधिकार निर्बाध तरीके से सार्वजनिक जीवन में व्यवधान डालने के लिये नहीं हो सकता। विरोध प्रदर्शन का मकसद यह सुनिश्चित करना है कि लोग एक स्थान पर बैठकर सुनेंगे और आपकी बातों पर ध्यान देंगे। इसका (विरोध प्रदर्शन का अधिकार) मतलब यह नहीं है कि आपको व्यवधान डालना जरूरी है ताकि आपको सुना जाये। इसकी बजाये, जैसा कि अमेरिका के संविधान में है, एक निश्चित स्थान होना चाहिए जां आप सार्वजनिक जीवन कोप्रभावित किये बगैर खड़े होकर विरोध प्रकट कर सकते हैं, अपना विरोध दर्ज करायें और आगे चलें।’’

उन्होंने कहा कि विरोध प्रदर्शन और हड़ताल को नियंत्रित करने के लिये कुछ न कुछ नियम होने चाहिए।

‘‘विरोध प्रकट करने के अधिकार का मतलब आपको सुनने के लिये सार्वजनिक जीवन में व्यवधान डालने की जरूरत नहीं है। ’’

न्यायमूर्ति नायडू ने यह भी कहा कि भारतीय संविधान व्यक्तिगत और समाज के परस्पर विरोधी मूल्यों के साथ सामन्जस्य स्थापित करने वाला दस्तावेज है।

उन्होंने कहा, ‘‘भारतीय संविधान सतत विकसित और विस्तारित होने वाला संविधान है।’’

इस अवसर पर न्यायमूर्ति नायडू ने डा बीआर आम्बेडकर को भी उद्धृत किया जिन्होंने एकबार कहा था कि भारत में लोकतंत्र सिर्फ ‘बाहरी दिखावा’ है।

उन्होंने कहा, ‘‘डा आम्बेडकर ने हमे आगाह किया था कि भारत में लोकतंत्र भारतीय भूमि का सिर्फ ऊपरी सौन्दर्य है और यह कि भारतीय समाज अलोकतांत्रिक है।’’

अपने संबोधन के अंत में न्यायमूर्ति नायडू ने कहा कि वह छात्रों के लाभ के लिये स्कूली पाठ्यक्रम में मौलिक कर्तव्य और संवैधानिक शिक्षा जैसे विषय शामिल करने के पक्ष में हैं।

न्यायमूर्ति नायडू ने कहा, ‘‘मौलिक दस्तवेज (भारतीय संविधान) के बारे में सभी का जानकारी होनी चाहिए। यह (संविधान) वकीलों के लिये ही सिर्फ उत्कृष्ठ दस्तावेज नहीं है, यह आम आदमी के लिये भी है।’’

हालांकि, उन्होंने कहा कि ऐसे विषयों को शामिल करते समय इसे छात्रों के समय पेश करने के लिये अरूचिकर विषय की बजाये रोचक बनाया जाना चाहिए।

न्यायमूर्ति नायडू ने अपने संबोधन में अमेरिकी संविधान के विभिन्न पहलुओं के साथ ही रोय बनाम वेड प्रकरण में गर्भपात के अधिकार के चर्चित फैसले का भी जिक्र किया।

व्याख्यान कार्यक्रम प्रश्नोत्तर सत्र के बाद धन्यवाद प्रस्ताव के साथ सम्पन्न हुआ।

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