Supreme Court of India  
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यूपी प्रशासन में जातिगत गतिशीलता पर स्टोरी करने पर एफआईआर रद्द करने के लिए पत्रकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया

पत्रकार की यह कहानी 'यादव राज बनाम ठाकुर राज (या सिंह राज)' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी और इसमें उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक तंत्र में जातिगत गतिशीलता पर चर्चा की गई थी।

Bar & Bench

पत्रकार अभिषेक उपाध्याय ने उत्तर प्रदेश राज्य के सामान्य प्रशासन में जातिगत पूर्वाग्रह से संबंधित एक कहानी के लिए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी (एफआईआर) को रद्द करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया है।

पत्रकार की यह कहानी 'यादव राज बनाम ठाकुर राज (या सिंह राज)' शीर्षक से प्रकाशित हुई थी और इसमें उत्तर प्रदेश में प्रशासनिक तंत्र में जातिगत गतिशीलता पर चर्चा की गई थी।

पंकज कुमार नामक व्यक्ति की शिकायत पर याचिकाकर्ता के खिलाफ भारतीय न्याय संहिता अधिनियम की धारा 353(2) [घृणास्पद भाषण], 197(1)(सी) [राष्ट्रीय एकता के विरुद्ध बयान], 302 (धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाना), 356 (मानहानि) और आईटी (संशोधन) अधिनियम, 2008 की धारा 66 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी।

एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अनूप अवस्थी के माध्यम से उपाध्याय की याचिका के अनुसार, जिस शिकायत के कारण एफआईआर दर्ज की गई, उसमें कहा गया है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री भगवान के अवतार की तरह हैं।

याचिका में शिकायत के हवाले से कहा गया है, "माननीय योगी आदित्यनाथ महाराज जी भगवान के अवतार की तरह हैं। भारत के विभिन्न राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों में से कोई भी लोकप्रियता के मामले में महाराज जी के करीब भी नहीं आता है। भारत में किसी भी अन्य मुख्यमंत्री की तुलना में महाराज जी के सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर सबसे ज्यादा फॉलोअर्स हैं।"

उपाध्याय ने अपनी याचिका में कहा है कि उन्हें उत्तर प्रदेश पुलिस के आधिकारिक एक्स हैंडल से कानूनी कार्रवाई की धमकियां भी मिली हैं। यह धमकियां उन्हें प्राप्त होने वाली धमकी भरे कॉलों के बारे में कार्यवाहक डीजीपी को भेजी गई उनकी पोस्ट के जवाब में मिली हैं।

याचिकाकर्ता की कहानी कानून के किसी भी प्रावधान के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का खुलासा नहीं करती है।

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Journalist moves Supreme Court to quash FIR for story on caste dynamics in UP administration