न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि देश में सांसदों और विधायकों के खिलाफ कुल 4,442 मामले लंबित हैं जिनमें से 2,556 मौजूदा विधि निर्माताओं को अभी मुकदमों का सामना करना है।
अश्विनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका पर उच्चतम न्यायालय द्वारा दिये गये निर्देश पर न्याय मित्र ने अधिवक्ता स्नेहा कलिता के माध्यम से यह रिपोर्ट दाखिल की है। उपाध्याय ने अपनी याचिका में पूर्व और वर्तमान सांसदों-विधायकों के खिलाफ अदालतों में लंबित आपराधिक मामलों की तेजी से सुनवाई कर उनका निष्पादन करने का अनुरोध किया है। सभी उच्च न्यायालयों को निर्देश दिया गया था कि पूर्व और वर्तमान सांसदों-विधायकों के खिलाफ लंबित आपराधिक मामलों की सूची तैयार की जाये।
‘‘ सांसदों और विधायकों के लिये बनी विशेष अदालतों सहित विभिन्न अदालतों में वर्तमान ओर पूर्व सांसदो-विधायकों के खिलाफ 4,442 मामले लंबित हैं। 2,556 मामलों में वर्तमान विधि निर्माता आरोपी हैं। कुल मामलों की संख्या से ज्यादा विधि निर्माताओं की संख्या है क्योंकि एक मामले में एक से अधिक आरोपी हैं और वही विधि निर्माता एक से अधिक मामले में आरोपी है।’’शपथ पत्र के अनुसार
शपथ पत्र में कहा गया है कि शीर्ष अदालत ने 5 मार्च, 2020 के आदेश में निर्देश दिया था कि सभी उच्च न्यायालयों के रजिस्ट्रार जनरल को सांसदो-विधायकों के खिलाफ लंबित मामलों के बारे मे जानकारी देनी है। इस आदेश के अनुरूप सभी उच्च न्यायालयों ने निर्धारित प्रारूप में जानकारी भेजी है।
न्याय मित्र द्वारा दाखिल शपथ पत्र में 413 ऐसे मामलों में ऐसे अपराधों की संलिप्तता का जिक्र है जिसके लिये उम्र कैद की सजा हो सकती है। इनमें से 174 मामलों में वर्तमान सांसद-विधायक आरोपी हैं।
रिपोर्ट में अनुसार, ‘‘अन्य मामलों में भ्रष्टाचार निरोधक कानून, 1988, धन शोधन रोकथाम कानून, 2002, शस्त्र कानून, 1959, सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान से रोकथाम कानून, 1984 के तहत अपराधों के साथ ही भारतीय दंड संहिता की धारा 500 के अंतर्गत मानहानि के मामले शामिल हैं।’’
रिपोर्ट के अनुसार उत्तर प्रदेश मे सांसदों-विधायकों के खिलाफ 1,217 मामले लंबित हैं। इनमें से 446 मामलों में मौजूदा सांसद-विधायक आरोपी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि ऊपरी अदालतों के स्थगन आदेश की वजह से 85 मामलों में मुकदमे की सुनवाई आगे नहीं बढ़ सकी है। मौजूदा प्रकरा मे जारी निर्देशों के अनुसार इलाहाबाद में एक विशेष अदालत गठित की गयी है। इस समय, इस विशेष अदालत में 12 जिलों में हुयी घटनाओं से संबंधित मुकदमों की सुनवाई हो रही है।
इस मामले में बिहार दूसरे स्थान पर है जहां 531 आपराधिक मामले लंबित हैं। इनमें 256 मामलों में वर्तमान सांसद-विधायक आरोपी हैं।
रिपोर्ट में कहा गया है कि उच्च न्यायालय ने सत्र अदालत और मजिस्ट्रेट की अदालत में सुनवाई वाले मुकदमों के लिये प्रत्येक जिले के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश III और वरिष्ठतम एसीजेएम को विशेष अदालत मनोनीत किया है।
बिहार में 73 मामलों के अपराध में उम्र कैद की सजा हो सकती है। इनमे से 30 मामले वर्तमान सांसद-विधायकों के खिलाफ हैं जबकि 43 में पूर्व विधि निर्माता आरोपी हैं।
इसी तरह ओडीसा तीसरे स्थान पर है जहां 331 मामले लंबित हैं जिनमें से 220 मामलों में वर्तमान सांसद-विधायक आरोपी हैं। इनमें से 32 मामले ऐसे अपराधों से संबंधित हैं जिनमें उम्र कैद की सजा हो सकती है। वर्तमान सांसद-विधायकों के खिलाफ 10 मामले हैं जबकि 22 मामलों में पूर्व सांसद-विधायक आरोपी हैं।
रिपोर्ट में सांसदों या विधायकों से संबंधित मुकदमों की तेजी से सुनवाई सुनिश्चित करने के लिये प्रत्येक जिले में विशेष अदालत गठित करने सहित अनेक सुझाव दिये गये हैं।
न्याय मित्र ने सुझाव दिया है कि इन विशेष अदालतों को मौत या उम्र कैद की सजा वाले अपराधों के मुकदमों को प्राथमिकता देनी चाहिए, इसके बाद सात साल या इससे अधिक की सजा के दंडनीय अपराध के मुकदमों और दूसरे मुकदमों की सुनवाई करनी चाहिए।
‘‘अप्रत्याशित परिस्थितियों के अलावा किसी भी हालत में मुकदमे की सुनवाई स्थगित नहीं की जानी चाहिए और ऐसा करने की वजह रिकार्ड में दर्ज की जानी चाहिए। संबंधित जिले के पुलिस अधीक्षक की यह जिम्मेदारी होगी कि वह निर्धारित तारीख पर संबंधित अदालत में आरोपी व्यक्तियों की पेशी और अदालत द्वारा जारी गैर जमानती वारंट पर तामील सुनिश्चित करें।"रिपोर्ट में सुझाव दिया गया
रिपोर्ट में ऐसे सभी मामलों में गवाह संरक्षण की आवश्यकता पर जोर दिया गया है जिनमें आपराधिक मुकदमे का सामना कर रहे सांसद-विधायक द्वारा गवाहों को प्रभावित करने की संभावना हो।
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