इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक व्यक्ति के खिलाफ बलात्कार के आरोप में दर्ज प्राथमिकी रद्द कर दी थी। न्यायालय ने इससे पहले संबंधित पक्षों के यह बयान दर्ज किये कि एक समझौते के बाद दोनों ने शादी कर ली है और महिला के पिता ने फर्जी और मिथ्यापूर्ण आरोपों पर यह शिकायत दर्ज करायी थी।
न्यायमूर्ति मंजू रानी चौहान ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 482 के तहत दायर इस आवेदन को स्वीकार करते हुये अपने आदेश में कहा,
‘‘इस मामले के तथ्य और परिस्थितियों और पक्षों की ओर से वकीलों द्वारा दिये गये बयानों को ध्यान में रखते हुये न्यायालय की यह सुविचारित राय है कि इस आपराधिक मामले में कार्यवाही को आगे बढ़ाने से कोई लाभ नहीं होगा क्योंकि दोनों पक्षों के बीच पहले ही समझौता हो चुका है।’’इलाहाबाद उच्च न्यायालय
आवेदकों ने आरोपी और शिकायतकर्ता के बीच समझौते के बीच हुये समझौते के आधार पर हाथरस के मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट के आदेश और भारतीय दंड संहिता की धारा 363, 366 और 376 के तहत मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में लंबित कार्यवाही को यह कहते हुये चुनौती दी थी।
इसमें कहा गया था कि दोनों आवेदकों ने शादी कर ली है ओर वे अब पति पत्नी के रूप से खुशी खुशी रह रहे हैं। महिला के पिता द्वारा दर्ज कराई गयी प्राथमिकी कथित रूप से झूठी और मिथ्यापूर्ण थी।
इस मामले में समझौता हो जाने के बाद संबंधित निचली अदालत में एक आवेदन दायर कर प्राथमिकी निरस्त करने का अनुरोध किया गया था। यह आवेदन अदालत ने इस आधार पर खारिज कर दिया था कि गैर संज्ञेय अपराध होने की स्थिति में उसे ऐसा आदेश पारित करने का अधिकार नहीं है।
हालांकि, उच्च न्यायालय ने ज्ञान सिंह बनाम पंजाब फैसले का उल्लेख किया जिसमे उच्चतम न्यायालय ने कहा था कि प्रकरण के तथ्य और परिस्थितियों के आलोक में कतिपय संज्ञेय और अशमनीय अपराधों में भी समझौता हो सकता है।
साथ ही शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया था कि हत्या, बलात्कार, डाकेजनी जैसे जघंय अपराध, जिनका समाज पर असर पड़ता है, जैसे मामलों को निरस्त नहीं किया जा सका है भले ही पीड़ित और अपराध करने वाले व्यक्ति के बीच विवाद सुलझ गया हो।
‘‘उच्च न्यायालय को इस तथ्य पर भी विचार करना चाहिए कि क्या पीड़ित और आरोपी के बीच सुलह और समझौता हो जाने के बावजूद आपराधिक कार्यवाही जारी रखना न्याय हित के विपरीत या अनुचित होगा या आपराधिक कार्यवाही जारी रखना कानूनी प्रक्रिया के दुरूपयोग समान होगा और क्या यह न्याय होगा कि आपराधिक मामले को खत्म किया जाये और अगर इन सवालों का जवाब सकारात्मक है तो ऐसी आपराधिक कार्यवाही निरस्त कर उच्च न्यायालय पूरी तरह से अपने अधिकार क्षेत्र में होगा।’’
उच्च न्यायालय ने कहा कि यह एक ऐसा मामला है जहां आपराधिक कार्यवाही निरस्त करना उचित होगा। उच्च न्यायालय ने इसके साथ ही आवेदन स्वीकार करते हुये बलात्कार के आरोप की प्राथमिकी निरस्त कर दी।
आदेश यहाँ पढ़ें:
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें