Bihar Elections
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[बिहार चुनाव] राजनीतिक पार्टियां मालिक की सहमति से निजी संपत्ति पर होर्डिंग्स लगा सकती हैं: पटना एचसी [आदेश पढ़ें]

Bar & Bench

पटना उच्च न्यायालय ने बिहार विधान सभा चुनाव के दौरान राजनीतिक दलों को निजी संपत्ति पर होर्डिंग और बैनर लगाने की अनुमति दे दी है लेकिन इसके लिये इन संपत्तियों के मालिकों/ कब्जाधारकों से लिखित सहमति लेनी होगी।

न्यायालय सेन्चुरी बिजनेस की याचिका पर विचार कर रहा था जिसे भाजपा ने बिहार में अपनी संपत्तियों पर 950 होर्डिंग लगाने का काम सौंपा है।

यह मामला बिहार विरूपण की रोकथाम कानून, 1987 की धारा 3 की व्याख्या से संबंधित है। यह प्रावधान चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति या व्यक्तियों को निजी संपत्ति के मालिको की लिखी सहमति से उनकी संपत्ति का इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान करता है। अब सवाल यह उठा है कि क्या इस संपत्ति में रहने वाला व्यक्ति राजनीतिक दलों को अपनी संपत्ति के इस्तेमाल की अनुमति दे सकता है।

न्यायमूर्ति आशुतोष कुमार की एकल पीठ की राय है कि राजनीतिक दलों की बजाये सिर्फ किसी प्रत्याशी को होर्डिंग लगाने की अनुमति देने से 1987 का कानून बनाने की विधायिका की मंशा असल में प्रभावहीन होगी।

पीठ ने जन प्रतिनिधित्व कानून और राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह का जिक्र करते हुये कहा कि इनसे संकेत मिलता है कि राजनीतिक दल होर्डिंग लगा सकते हैं। पीठ ने कहा,

‘‘ कोई भी राजनीतिक दल हवा में नहीं रहता है और न ही यह अमूर्त इकाई है। इसमें लोग होते हैं।’’

सेन्चुरी ने इससे पहले मुख्य निर्वाचन अधिकारी से होर्डिंग लगाने की अनुमति मांगी थी।निर्वाचन अधिकारी ने यह अनुरोध ठुकराते हुये कहा था कि 1987 के कानून की धारा 3(3) में स्पष्ट रूप से सिर्फ चुनाव लड़ने वाले व्यक्तियों को ही संपत्ति के कब्जाधारक की लिखित अनुमति से ही प्रचार होर्डिंग लगाने क अनुमति दी गयी है।


उच्च न्यायालय में सुनवाई के दौरान निर्वाचन अधिकारी के अधिवक्ता ने अपना पहले का दृष्टिकोण ही दोहराया। यह दलील दी गयी कि विधायिका ने जानबूझ कर होर्डिंग लगाने के अवसर से राजनीतिक दलों को बतौर वर्ग बाहर रखा था क्योंकि प्रत्याशियों की अपने बजट की सीमा होती है और वे जरूरत से ज्यादा खर्च नहीं करेंगे।

निर्वाचन अधिकारी की ओर से यह दलील दी थी गयी कि अगर राजनीतिक दलों को निजी संपत्तियों पर होर्डिंग लगाने की अनुमति दी गयी तो ‘‘समूचा राज्य ही विरूपित हो जायेगा और इसके बाद, इसे जनता की भारी भरकम रकम खर्च किये बगैर पहले वाले रूप में लाना बहुत ही मुश्किल होगा।

याचिकाकर्ता की दलील थी कि अधिकांश प्रत्याशी राजनीतिक दल के प्रत्याशी के रूप में चुनाव लड़ते हैं और ऐसी स्थिति में ऐसे व्यक्तियों और उनके दलों के बीच विभाजन नहीं किया जा सकता जिसके वे सदस्य हैं।

याचिकाकर्ता ने संपत्ति विरूपण के विरूद्ध झारखंड में लागू इसी तरह के कानून की ओर न्यायालय का ध्यान आकर्षित किया और कहा कि झारखंड में मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राजनीतिक दलों को होर्डिंग लगाने की अनुमति दी थी।

याचिकाकर्ता ने यह भी दलील दी कि इस तरह के होर्डिंग लगाने की अनुमति कोविड-19 महामारी के दौरान प्रचार और भीड़ को नियंत्रित करने मे भी मदद मिलेगी।

न्यायालय ने कहा कि राजनीतिक दलों को होर्डिंग लगाने की अनुमति टुकड़ों टुकड़ों में यहां वहां होर्डिंग लगाने को रोकेगा और इससे सार्वजनिक तथा निजी संपत्तियों का एक सीमा से आगे विरूपण होने की संभावना कम होगी।

यही नहीं, न्यायालय ने झारखंड में इस संबंध में कानून के प्रावधान के याचिकाकर्ता के संदर्भ को स्वीकार करते हुये कहा कि ‘‘दो अलग अलग राज्यों में कानून या उनके नियमों की व्याख्या करके दोहरे मानदंड नहीं अपनाये जा सकते।’’

इसलिए याचिका स्वीकार की गयी।

याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एस डी संजय और एडवोकेट ऑन रिकार्ड राजू गिरि पेश पेश हुये जबकि मुख्य निर्वाचन अधिकारी की ओर से अधिवक्ता सिद्धार्थ प्रसाद ने दलीलें पेश कीं।

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[Bihar Elections] Political parties can erect hoardings on private property with consent of owner: Patna HC [Read Order]