इस वर्ष 7 अक्टूबर को होने वाली 31 वीं बिहार न्यायिक सेवा प्रतियोगी परीक्षा को स्थगित करने के लिए बिहार न्यायिक सेवा के 13 अभ्यर्थियों के एक समूह ने सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया है।
अधिवक्ता अरविंद गुप्ता द्वारा दायर की गई याचिका ने बिहार लोक सेवा आयोग द्वारा 9 सितंबर और 22 सितंबर को दो अधिसूचनाओं को यह कहते हुए चुनौती दी कि ये बिना प्रशासनिक विचार के जारी की गयी हैं तथा इसके अंतर्गत परीक्षा 7 अक्टूबर को इस आधार पर आयोजित की जानी है।
ऐसा प्रतीत होता है कि कोविड -19 संक्रमण की वृद्धि दर के बावजूद उक्त अधिसूचना जारी की गयी हैं। इस तथ्य को नजरअंदाज किया है कि परीक्षा केंद्र बिहार राज्य के भीतर दूर दराज के स्थानों पर तय किए जाने की संभावना है। वर्तमान परिस्थितियों में ऐसी जगहों पर पहुँचना अभ्यर्थियों को एक अनुचित, जोखिम है जिससे स्वच्छता और सामाजिक भेद मानदंडों के संदिग्ध पालन के कारण कोरोना वायरस के संक्रमण की संभावना है।
याचिका में कहा गया है कि अधिसूचनाएं भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 19 के तहत रोजगार में अवसर की समानता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन करती हैं।
अन्य परीक्षाओं को भी स्थगित करने के उदाहरणों का हवाला देते हुए, याचिका में कहा गया है कि मलिक मज़हर सुल्तान और अन्य बनाम यू.पी. लोक सेवा आयोग और अन्य मे शीर्ष अदालत ने 22 सितंबर को अपने आदेश के माध्यम से, कोरोना वायरस के प्रकोप के कारण सिविल न्यायाधीश (जूनियर डिवीजन) और जिला न्यायाधीश परीक्षा 2020 के स्थगन के लिए निर्देशित / अनुमति दी गई है।
याचिका मे यह भी कहा गया कि मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय ने उसी के आधार पर जिला न्यायाधीश परीक्षा 2020 को स्थगित कर दिया है।
"इस तरह की प्रवेश परीक्षाओं की प्रकृति अकादमिक होती है और अभ्यर्थियों के पास अपने होम-टाउन या राज्य के भीतर देने का विकल्प होता है। भले ही इन परीक्षाओं में अखिल भारतीय स्वरूप हो, लेकिन परीक्षार्थियों को अपने घर-शहर या राज्य से बाहर यात्रा करनी पड़ती है।"
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