सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को कहा कि कर्ज लेने वाले के खाते को धोखाधड़ी की श्रेणी में रखने का फैसला एक तर्कपूर्ण आदेश होना चाहिए और इस तरह का आदेश कर्ज लेने वाले को सुनवाई का मौका देने के बाद ही पारित किया जाना चाहिए। [एसबीआई बनाम राजेश अग्रवाल]।
भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति हिमा कोहली की पीठ ने इस संबंध में तेलंगाना उच्च न्यायालय के एक आदेश को बरकरार रखा।
अदालत ने कहा, "उधारकर्ता के खाते को धोखाधड़ी के रूप में वर्गीकृत करने का निर्णय तर्कपूर्ण आदेश के साथ होना चाहिए। आदि परिवर्तनम पार्टेम के नियम को इसमें पढ़ा जाना चाहिए और उधारकर्ता के खातों पर रोक लगाने से पहले सुनवाई की आवश्यकता है।"
न्यायालय ने कहा कि उधारकर्ताओं को संस्थागत वित्त तक पहुँचने से रोकना उन पर गंभीर प्रभाव डालता है और यह ब्लैकलिस्टिंग के समान है जो क्रेडिट स्कोर को प्रभावित करता है।
अदालत ने इसलिए कहा, "धोखाधड़ी वाले खातों पर आरबीआई के मास्टर सर्कुलर में 'ऑडी अल्टरम पार्टेम' के सिद्धांत को पढ़ा जाना चाहिए।"
पीठ ने, हालांकि, कहा कि प्रथम सूचना रिपोर्ट (एफआईआर) के पंजीकरण से पहले सुनवाई का कोई अवसर आवश्यक नहीं था।
गुजरात उच्च न्यायालय का एक अलग दृष्टिकोण रखने वाला एक आदेश रद्द कर दिया गया था।
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