Calcutta High Court 
वादकरण

कलकत्ता HC ने अदालत के हस्तक्षेप पर ही काम करने के बैंक अधिकारियो के रवैये की निन्दा की, इंडियन बैंक पर 25000 का जुर्माना

न्यायालय ने संवैधानिक अदालत द्वारा ही मामले के निबटारे के बाद काम करने के बैंक के रवैये की आलोचना की और कहा, इससे मुकदकमे बढ़ते हैं, बकाया पारिश्रमिक की राशि के अलावा जुर्माना भी लगाया

Bar & Bench

कलकत्ता उच्च न्यायालय ने एक कर्मचारी का पारिश्रमिक पांच साल से ज्यादा समय तक रोके रहने और उसका उत्पीड़न करने के लिये अपने स्थिति का लाभ उठाने पर इंडियन बैंक को आड़े हाथ लिया और उस पर 25,000 रूपए का जुर्माना लगाया।

न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ की एकल पीठ ने कहा कि यह जुर्माना लगाना जरूरी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके अनावश्यक मुकदमेबाजी से बचा जाये और राज्य के प्राधिकारी पूरी ईमानदारी से कानून का पालन करें।

न्यायालय ने कहा, ‘‘ पेश मामला ऐसी श्रेणी में आता है जिसमे याचिकाकर्ता को अपने न्यायोचित पारिश्रमिक के लिये पांच साल से ज्यादा समय तक इंतजार करना पड़ा, प्रतिवादी बैंक लगातार याचिकाकर्ता के मूल बकाया राश के लिये उसे परेशान करने के लिये अपनी स्थिति का लाभ उठाती रही है।’’

न्यायालय ने बैंक अधिकारियों के इस रवैये की भी निन्दा की कि वे संवैधानिक अदालतों द्वारा मामले का समाधान करने के बाद ही काम करते हैं जिसकी वजह से वाद बढ़ते हैं।

न्यायालय ने अपने फैसले में कहा,‘‘बैंक अधिकारियों का यह टालू रवैया है और वे संवैधानिक अदालत द्वारा मामला निबटाये जाने पर ही वे काम करते हैं, इससे मुकदमे बढ़ते हैं और इस तरह की कार्रवाई के लिये जुर्माने के साथ दंडित किये बगैर इस तरह की मानसिकता से ग्रस्त अधिकारियों की बीमारी का इलाज नहीं हो सकता।’’

न्यायालय ने कहा कि इसलिए जुर्माना लगाना जरूरी है ताकि मुकदमों को बढ़ाने वाली इस तरह की कार्रवाई की घटनाओं को कम किया जा सके।

न्यायालय ने कहा, ‘‘बैंक ने मामले में ईमानदारी के साथ कानून का पालन करने से इंकार कर दिया जिसकी वजह से गंगोपाध्याय को न्याय के लिये अदालतों का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।‘‘

न्यायालय ने सौदीप्त गंगोपाध्याय की याचिका पर यह फैसला सुनाया। गंगोपाध्याय को बैंक ने सेवा से निलंबन की अवधि का वेतन देने से इंकार कर दिया था।

बैंक अधिकारियों का यह टालू रवैया है और वे संवैधानिक अदालत द्वारा मामला निबटाये जाने पर ही कार्रवाई करते हैं जिससे वाद की संख्या बढ़ती है।

गंगोपाध्याय को एक ग्राहक की भ्रष्टाचार की शिकायत के आधार पर पुलिस ने गंगोपाध्याय को 2014 में हिरासत को निलंबन मान लिया गया था।

गंगोपाध्यायन ने बैंक के इस निलंबन आदेश को उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी। एकल न्यायाधीश ने 2015 में गंगोपाध्याय के पक्ष में फैसला दिया लेकिन बैंक की अपील पर दो सदस्यीय खंडपीठ ने खंडित फैसला सुनाया। इस तरह से यह मामला तीसरे न्यायाधीश के पास भेजा गया जिन्होंने अगस्त 2019 में गंगोपाध्याय के पक्ष में फैसला सुनाया। उसे इसी आधार पर सेवा में बहाल कर दिया गया।

लेकिन बैंक ने उसे निलंबन की अवधि का बकाया वेतन देने से इंकार कर दिया जिस वजह से गंगोपाध्याय ने एक बार फिर उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था।

गंगोपाध्याय की ओर से अधिवक्ता एसपी लाहिड़ी ने कहा कि 2015 और 2019 के आदेशों को एक साथ पढ़ने के आधार पर उसे 2014 से 2019 की अवधि का पिछला वेतन दिया जाचिए।

उन्होंने इलाहाबाद बैंक अधिकारी कर्मचारी (अनुशासन और अपील) विनियमन, 1976 के नियम 15 का सहारा लिया जिसमें कहा गया था कि अगर कर्मचारी आरोप मुक्त हो जाता है या निलंबन अनुचित था तो उसे पूरा वेतन दिया जाना चाहिए।

बैंक की ओर से अधिवक्ता ओएन राय ने इस दलील का विरोध करते हुये कहा कि 2015 और 2019 के आदेशों में स्पष्ट रूप से यह नहीं कहा गया है कि गंगोपाध्याय को निलंबन की अवधि का भुगतान किया जाये।

न्यायालय ने गंगोपाध्याय की दलीलों को इस आधार पर तर्कसंगत पाया कि, ‘‘पांच साल से भी ज्यादा समय हो गया और याचिकाकर्ता के खिलाफ कोई विभागीय कार्यवाही शुरू नहीं की गयी है और इस न्यायालय ने कहा था कि 21 अप्रैल 2015 के आदेश के अनुरूप याचिकाकता्र ‘सारे लाभ’ प्राप्त करने का हकदार है।’’

न्यायालय बैंक और उसके प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि गंगोपाध्याय के वेतन के अंतर की राशि का भुगतान 8 प्रतिशत ब्याज के साथ 2 मई, 2015 की तारीख से उसके सेवा में आने की अवधि तक चार सप्ताह के भीतर किया जाये।

न्यायालय ने कहा था कि अगर बैंक यह भुगतान नहीं करता है तो वेतन के अंतर की राशि का भुगतान होने तक इस पर चार प्रतिशत का दंडनीय ब्याज देना होगा।

हालांकि उन्हें अपील का अधिकार है लेकिन हो सकता है कि यह अधिकार हमेशा ही कार्रवाई करते समय सही नहीं हो।

न्यायालय ने उम्मीद व्यक्त की कि बैक अब इस अपील के मामले में आगे नहीं बढ़ेगी।

फैसले में कहा गया, ‘‘यह न्यायालय पूरी संजीदगी के साथ उम्मीद करती है कि निर्णय लेने की प्रक्रिया में बैंक में सद्बुद्धि आयेगी और बैंक इन आदेशों का अनुपालन करेगी और इसके आगे वाद को नहीं बढ़ायेगी।

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Calcutta High Court deprecates attitude of bank officials to act only after intervention of courts, imposes Rs. 25,000 costs on Indian Bank