इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक ट्रायल कोर्ट और उत्तर प्रदेश राज्य के विधि विभाग से पूछा है कि क्या किसी अभियुक्त की स्वतंत्रता पर रोक लगाई जा सकती है या नहीं, यदि ट्रायल कोर्ट ट्रायल को आगे बढ़ाने में असमर्थ है।
अदालत ने कहा कि एक आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखना तर्कसंगत नहीं हो सकता है जब ट्रायल कोर्ट मे कोविड़-19 स्थिति के कारण ट्रायल संचालन मे असमर्थ हो।
अदालत ने देखा, "यदि ट्रायल कोर्ट मुकदमे को आगे बढ़ाने में असमर्थ है तो आरोपी को न्यायिक हिरासत में रखने के लिए कोई तार्किक कारण नहीं हो सकता है क्योंकि ऐसा प्रतीत होता है कि आने वाले दिनों में COVID-19 स्थिति को नियंत्रित नहीं किया जा रहा है।"
जस्टिस राजेश सिंह चौहान की सिंगल-जज बेंच ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पेश की गई स्टेटस रिपोर्ट को रिकॉर्ड में लेने के बाद उक्त तथ्य सामने आए
22 अक्टूबर, 2020 को उच्च न्यायालय के आदेश के अनुसार गोंडा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायाधीश द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट में कहा गया कि गवाह की साक्ष्य 26 नवंबर, 2020 को होगी।
उच्च न्यायालय ने पाया कि यदि स्थिति रिपोर्ट को उसके अंकित मूल्य पर स्वीकार कर लिया जाता है, तो यह अनुमान लगाया जा सकता है कि ट्रायल कोर्ट COVID-19 स्थिति के कारण आगे बढ़ने में असमर्थ था।
उसी के मद्देनजर अदालत ने सवाल किया कि क्या ट्रायल कोर्ट ट्रायल को आगे बढ़ाने में असमर्थ होने पर अभियुक्तों की स्वतंत्रता पर रोक लगा सकती है।
इस पृष्ठभूमि में, अतिरिक्त सरकारी अधिवक्ता को ट्रायल कोर्ट के साथ-साथ यूपी राज्य के विधि विभाग से विशेष अनुदेश प्राप्त करने का निर्देश दिया गया है।
इस मामले को अब 7 दिसंबर, 2020 को लिया जाएगा।
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