वादकरण

[ब्रेकिंग] केन्द्र को सेन्ट्रल विस्टा शिलान्यास समारोह कर सकता है लेकिन फिलहाल कोई निर्माण या तोड़फोड़ नहीं होना चाहिए: एससी

सालिसीटर जनरल तुषार मेहता के माध्यम से केन्द्र सरकार द्वारा यह आश्वासन दिये जाने पर कि कोई निर्माण, तोड़फोड़ या वृक्षों की कटाई नहीं की जायेगी, न्यायालय ने यह आदेश पारित किया

Bar & Bench

उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को स्पष्ट किया कि सेन्ट्रल विस्टा पुनर्विकास परियोजना को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर शीर्ष अदालत का फैसला आने तक केन्द्र सरकार किसी प्रकार का निर्माण, भवनों को गिराने जैसी गतिविधियां नहीं चलायेगी।

न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने कहा कि सरकार इस परियोजना के लिये शिलान्यास कार्यक्रम आयोजित करने के लिये स्वतंत्र है।

न्यायालय ने इस बारे में आदेश उस समय पारित किया जब केन्द्र सरकार की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने आवश्वासन दिया कि न्यायालय द्वारा इस मामले में फैसला किये जाने तक वहां किसी प्रकार के निर्माण, ध्वस्तीकरण या वृक्षों की कटाई जैसे कार्रवाई नहीं की जायेगी।

शीर्ष अदालत ने सरकार के निर्माण कार्य शुरू करने की योजना पर आपत्ति उठाते हुये इस मामले को स्वत: ही सुनवाई के लिये सूचीबद्ध करने के बाद यह स्पष्टीकरण दिया।

न्यायालय ने यह मामला सुनवाई के लिये आने पर मेहता से कहा, ‘‘ हमने सोचा की हम एक विवेकपूर्ण वाद पर विचार कर रहे हैं और इसमें अंतर नजर आयेगा। हमने कभी यह नहीं सोचा था कि आप इतनी तेजी से निर्माण शुरू करेंगे। हमें आपके कागजी कार्यवाही करने या शिलान्यास करने पर आपत्ति नहीं है लेकिन कोई निर्माण कार्य नहीं होना चाहिए।’’

दिल्ली के लुटियन में सेन्ट्रल विस्टा क्षेत्र में संसद भवन, राष्ट्रपति भवन, नार्थ और साउथ ब्लाक जैसी भव्य इमारतें और इंडिया गेट स्थित है।

याचिकाकर्ताओं ने पुनर्विकास के लिये भूमि के उपयोग में बदलाव के बारे में दिल्ली विकास प्राधिकरण द्वारा 21 दिसंबर, 2019 को जारी अधिसूचना को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे रखी है।

याचिकाकर्ताओं में से एक राजीव सूरी ने केन्द्र द्वारा परिकल्पित बदलावों को चुनौती देते हुये दलील दी है कि इसके लिये भूमि के उपयोग और आबादी के घनत्व के मानकों में बदलाव करना होगा और डीडीए के पास इस तरह के बदलाव करने का अधिकार नहीं है। उन्होंने यह भी दलील दी है कि इस प्रकार के बदलाव करने , अगर करने हों’ का अधिकार सिर्फ केन्द्र सरकार के पास ही है।

एक अन्य याचिकाकर्ता ले. जनरल (सेवानिवृत्त) अनुज श्रीवास्तव ने इस कवायद पर आपत्तियों के लिये सार्वजनिक सुनवाई को चुनौती देते हुये कहा है कि यह किसी तर्कपूर्ण निष्कर्ष से बचने के लिये महज एक औपचारिकता है।

इस मामले में पर्यावरण और वन मंत्रालय की पूर्व सचिव मीना गुप्ता ने हस्तक्षेप के लिये आवेदन दाखिल किया है और इस पनुर्विकास की वजह से पर्यावरण को लेकर अपनी चिंताओं को रेखांकित किया है।

इस मामले में नवंबर के पहले सप्ताह में सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार ने इस परियोजना का बचाव करते हुये कहा था कि मौजूदा संरचनाओं पर पड़ रहे दबाव की वजह से संसद भवन की नयी इमारत और केन्द्रीय सचिवालय का निर्माण बहुत आवश्यक हो गया है।

केन्द्र की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वर्तमान संसद भवन का निर्माण 1927 में हुआ था और यह अग्निशमन मानकों के अनुरूप नहीं है, इसमें जगह की काफी कमी हो गयी है और यह भूकंप रोधी भी नहीं है।

मेहता ने तीन नवंबर को न्यायालय से कहा था, ‘‘अब नया संसद भवन अत्यावश्यक हो गया है। वर्तमान भवन का निर्माण आजादी मिलने से पहले 1927 में किया गया था और इसका मकसद इसमें विधान परिषद बनाना था न कि द्विसदन की संसद जैसी कि आज है। यह भवन अग्निशमन मानकों के अनुरूप नहीं है और इसमें पानी तथा सीवर की लाइन भी बेतरतीब से बिछी हैं जो इस इमारत के धरोहर स्वरूप को नुकसान पहुंचा रही हैं। लोकसभा और राज्यसभा पूरी तरह से भर चुके हैं। जब संयुक्त सत्र होते हैं तो सदस्यों को प्लास्टिक की कुर्सियों पर बैठना पड़ता है जो सदन की गरिमा कम करता है।’’

मेहता ने कहा था कि अगले साल नयी जनगणना के बाद लोक सभा और राज्य सभा में सीटों की संख्या बढ़ने पर इस भवन पर बहुत अधिक भार आ जायेगा। उन्होंने 2001 के संसद भवन पर हमले की घटना का जिक्र करते हुये इसकी सुरक्षा का मसला भी सामने रखा था।

नये केन्द्रीय सचिवालय के निर्माण के संबंध में केन्द्र ने कहा कि सभी महत्वपूर्ण मंत्रालयों के कार्यालयों को एक ही इमारत में लाने की आवश्यकता है।

मेहता ने दलील दी थी, ‘‘हमें विभिन्न मंत्रालयों में जाने के लिये शहर भर में चक्कर लगाने पड़ते हैं जिससे ट्रैफिक और प्रदूषण बढ़ता है। नीतिगत निर्णय यह है कि सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को एक स्थान पर लाया जाये और यह स्थान ऐसा होना चाहिए जिसका ऐतिहासिक महत्व हो।’’

सरकार ने यह दलील भी दी थी कि इस परियोजना के लिये पर्यावरण मंजूरी सहित सभी आवश्यक कानूनी स्वीकृतियां ली जा चुकी हैं और परियोजना को सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता कि याचिकाकर्ताओं को लगता है कि इसके लिये बेहतर प्रक्रिया और तरीका अपनाया जा सकता था।

मेहता ने कहा था कि अब तक किसी प्रकार के संवैधानिक या कानूनी प्रावधानों का उल्लंघन नहीं हो, न्यायालय को परियोजना को निरस्त करने से गुरेज करना चाहिए और पेश मामले में न्यायिक हस्तक्षेप की कोई आवश्यकता नहीं है।

मेहता की इस दलील का वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने भी समर्थन किया जो परियोजना के परामर्शदाता एचसीपी डिजायन प्लानिंग एंड मैनेजमेन्ट प्रा लि की ओर से पेश हुये थे। साल्वे ने न्यायालय से कहा था कि कार्यपालिका द्वारा लिये गये नीतिगत फैसले में हस्तक्षेप करते समय उसे सतर्क रहना चाहिए।

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