मद्रास उच्च न्यायालय भ्रष्टाचार पर अंकुश पाने के लिये चीन या उत्तर कोरिया जैसी सजा की आवश्यकता पर जोर देते हुये सोमवार को कहा कि केन्द्र सरकार को रिश्वत मांगने जैसे भ्रष्ट आचरण की सजा मृत्यु दंड देने पर विचार करना चाहिए।
उच्च न्यायालय की मदुरै पीठ ने टिप्पणी की कि भ्रष्टाचार निवारण कानून में संशोधन करके भ्रष्टाचार की समस्या से निबटने के लिये इसमें और कठोर दंड का प्रावधान किया जाना चाहिए।
‘‘केन्द्र सरकार चीन, उत्तर कोरिया, इंडोनेशिया, थाईलैंड और मोरक्को जैसे देशों की तरह भ्रष्ट आचरण या रिश्वत देने और लेने के अपराध में ‘फांसी पर लटकाने’ या ‘मृत्यु दंड’ जैसी सजा पर विचार कर सकती है।’’न्यायालय ने टिप्पणी की
न्यायालय राज्य में धान खरीद केन्द्रों पर सरकारी कर्मचारियों द्वारा किसानों से रिश्वत मांगे जाने पर चिंता व्यक्त करते हुये अधिवक्ता एपी सूर्यकृसम की जनहित याचिका पर सुनवाई कर रहा था।
न्यायमूर्ति एन किरूबाकरण और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की पीठ ने सुनवाई की पिछली तारीख पर पारित आदेश में टिप्पणी की कि भ्रष्टाचार निवारण कानून, 1947 के बावजूद भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ।
न्यायालय ने कहा कि इसकी बजाये,
‘‘जनता भ्रष्टाचार को एक सामान्य बात के रूप में स्वीकार में बाध्य है। भ्रष्टाचार की जड़े बहुत गहरी हो गयी हैं और यह कैंसर की तरह फैल चुका है। अत: इसके लिये दंड में वृद्धि करने की जरूरत है। इसलिए इस न्यायाय का मानना है कि इस कानून पर फिर से विचार किया जाना चाहिए और भ्रष्टाचार की समस्या पर अंकुश पाने के लिये कानून को ज्यादा कठोर बनाने के साथ ही इसमें सख्त सजा का प्रावधान किया जाना चाहिए।’’
इस पहलू पर विचार के इरादे से न्यायालय ने स्वत: ही इस मामले में केन्द्रीय गृह मंत्रालय, केन्द्रीय विधि एवं न्याय मंत्रालय और संसदीय कार्य मंत्रालय को प्रतिवादी बना लिया है।
इस मामले में याचिकाकर्ता ने न्यायालय में दलील दी थी कि धान खरीद केन्द्रों पर अपनी उपज बेचने के लिये आने वाले किसानो को अधिकारी कई कई दिन इंतजार कराते हैं। इसमें यह भी आरोप लगाया गया है कि ये अधिकारी किसानों से फसल खरीदने की बजाये निजी व्यापारियों से खरीद कर रहे हैं।
पीठ को बताया गया कि किसानों को रिश्वत देने के लिये बाध्य किया जा रहा है ताकि उनका उपज इन केन्द्रों पर बेची जा सके। इस स्थिति पर चिंता व्यक्त् करते हुये न्यायालय ने इससे पहले इलेक्ट्रानिक मीडिया के माध्यम से इस तथ्य का न्यायिक संज्ञान लिया था कि समय से धान की खरीद नहीं किये जाने के मुद्दे पर किसान आन्दोलन कर रहे हैं।
यह मामला जब सोमवार को न्यायालय मे सुनवाई के लिये तो उसने फिर टिप्पणी की,
‘‘मीडिया, विशेषकर इलेक्ट्रानिक मीडिया, में यह खबरें हैं कि खरीद केन्द्रों के निरीक्षण के दौरान बड़ी मात्रा में धन जब्त किया गया है। वास्तव मे, हाल ही में यह भी खबर थी कि तिरूवेल्लूर के पुल्लरमबक्कम खरीद केन्द्र पर छापा मारा गया था जहां से दो लाख रूपए अधिकारियों के पास से जब्त किये गये थे। ये छापे और इसमें जब्त की गयी धनराशि याचिका में दी गयी इस दलील का ही समर्थन करते हैं कि ये अधिकारी खरीद केन्द्र पर अपनी उपज लाने वाले किसानों से रिश्वत के रूप में 30 से 40 रूपए की मांग कर रहे हैं।’’
न्यायालय में दाखिल रिपोर्ट में कतिपय विसगितयों का जिक्र करते हुये पीठ ने इस तरह का अनियमित आचरण करने में संलिप्त पाये गये अधिकारियों के खिलाफ की गयी कार्रवाई के बारे में विस्तृत विवरण पेश करने का निर्देश संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश दिया है।
राज्य के कृषि विभाग को स्वत: ही इसमे पक्षकार बनाने के बाद न्यायालय ने एमएस स्वामीनाथन की रिपोर्ट के आधार पर उठाये गये कदमों के बारे में सरकार से जानकारी मांगी है।
पीठ ने इस तथ्य का भी संज्ञान लिया है कि मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश डा न्यायमूर्ति एके राजन ने भ्रष्टाचार मुक्त और पारदर्शी प्रशासन सुनिश्चित करने के लिये एक प्रशासनिक सुधार रिपोर्ट पेश की थी। इस रिपोर्ट के बाद सरकार ने भी अधिकारों को सौंपने और प्रत्येक स्तर पर प्रत्येक सरकारी कर्मचारी की जवाबदेही निर्धारित करने की सिफारिश स्वीकार कर ली थी।
न्यायालय ने कहा कि वह जानना चाहता है कि क्या राज्य सरकार ने इस दिशा में कोइ और कार्रवाई की है। इस मामले में राज्य के मुख्य सचिव, सतर्कता आयुक्त और सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक निदेशक को भी प्रतिवादी बनाया गया है।
इस मामले में अब नौ नवंबर को आगे सुनवाई होगी
इस मामले में राज्य के प्राधिकारियों की ओर से महाधिवक्ता विजय नारायण पेश हुये। सहायक सालिसीटर जनरल विक्टोरिया गौरी ने प्रतिवादी बनायी गयी केन्द्र सरकार की ओर से नोटिस स्वीकार किया।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें