वादकरण

सरकार की अपील दायर करने में विलंब आदत बन चुकी है: मद्रास उच्च न्यायालय ने इस टिप्पणी के साथ 1,069 दिन का विलंब माफ किया

न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की कि न्यायालय के आदेशों का सरकार अक्सर अंतिम समय मे अवमानना के चरण में अनुपालन करती है, भले ही इन आदेश पर अपील में पुन: विचार की आवश्यकता हो

Bar & Bench

मद्रास उच्च न्यायालय ने सरकार पर अपील दायर करने में विलंब की वजह से जुर्माना लगाये जाने या प्रतिकूल आदेश के अमल पर खर्च वहने करने के बावजूद अधिकारियों में देर से अपील दायर करने की प्रवृत्ति की निन्दा की है।

न्यायलाय ने एक अपील दायर करने में 1,069 दिन का विलंब माफ करने पर आलोचना करते हुये राज्य के शिक्षा विभाग पर 25,000 हजार रूपए का जुर्माना लगाते हुये ये टिप्पणी की।

न्यायमूर्ति एन किरूबकरन और न्यायमूर्ति बी पुगलेंधी की पीठ ने टिप्पणी की,

‘‘ वास्तव में, आजकल देर से अपील दायर करने की प्रवृत्ति अधिकारियों के स्वभाव का हिस्सा बन गयी है, इसकी वजह वे बेहतर जानते हैं, भले ही इस विलंब को माफ करने पर सरकार पर भारी जुर्माना ही क्यों नहीं लगे या फिर अदालतों के आदेश पर अमल में बड़ी धनराशि खर्च क्यों नहीं करनी पड़े।’’
मद्रास उच्च न्यायालय

पीठ ने कहा कि कुछ मामलों में तो अदालत के आदेश संबंधित प्राधिकारी के संज्ञान में उस समय तक नहीं लाये जाते जब तक उन पर अमल के लिये अवमानना याचिका दायर नहीं होती है। पीठ ने अपने आदेश में कहा,

‘‘अंतिम क्षणों में, उन संबंधित प्राधिकारियों के संज्ञान में आदेश लाया जाता है जिन्हें इस पर अमल करना हो, अवमानना की स्थिति आने पर अंतत: वे अवमानना याचिका के भय से आदेश पर अमल किया जायेगा, भले ही इस आदेश पर अपील के दौरान पुन:विचार की आवश्यकता हो। पता चला है कि विभाग में ही कुछ बेशर्म भ्रष्ट तत्व वादकारियों के साथ मिली भगत करके जानबूझ कर ऐसे आदेशों पर जिनमे अपील की जरूरत होती है, समय रहते अपील दायर किये बगैर ही उन पर अमल कराते हैं और अवमानना याचिकाओं पर आदेश पारित होने की स्थिति में अंतिम क्षेणों में उच्च अधिकारियों के संज्ञान में लाते हैं।’’

पीठ ने सरकारी अधिकारियों को समय रहते अपील दायर करने और न्यायालय के आदेशों के अमल की महत्ता के अलावा अदालतों में मुकदमों की प्रगति पर निगाह रखने के महत्व के प्रति संवेदनशील बनाने पर जोर दिया।

पीठ ने उच्चतम न्यायालय द्वारा हाल ही में अपील दायर करने में 663 दिन के विलंब के लिये मध्य प्रदेश सरकार को आड़े हाथ लिये जाने के मामले का भी जिक्र किया।

उच्च न्यायालय ने इस बात को भी रेखांकित किया कि अब तो ऐसा भी नहीं है कि अधिकारियों को आदेश की प्रति के लिये इंतजार करना पड़ता है। उच्च न्यायालय ने आदेश में कहा,

‘‘हम डिजिटेलाइजेशन की ओर बढ़ रहे हैं। आदेश की दस्ती प्रति प्राप्त करने का चलन अब पुराना हो गया है और अब आदेशों को इस न्यायालय की आधिकारिक वेबसाइट पर तत्काल अपलोड किया जा रहा है।। कुछ दिनों के अंदर ही आदेशों को अपलोड किया जा रहा है और उच्च अधिकारी चाहें तो वेबसाइट पर इसकी पुष्टि कर सकते हैं कि क्या उनके खिलाफ कोई आदेश पारित किया गया है ताकि वे इसका संज्ञान लेकर उसके अनुसार कदम उठा सकें। वैवाहिक मामलों (कुटुम्ब अदालत, किशोर न्याय कानून, शासकीय गोपनीयता कानून, गुप्तचर एजेन्सियों, घरेलू हिंसा, महिलाओं और बच्चों के प्रति यौन अपराध आदि के अलावा सारे दैनिक आदेश और फैसले उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर अपलोड किये जाते हैं। सभी विभाग उच्च न्यायालय की वेबसाइट के जरिये इन मामलों की प्रगति के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।’’

इस संबंध में पीठ ने यह भी रेखांकित किया कि उच्च न्यायालय खुद ही यह आदेश दे चुका है कि उच्च न्यायालय की वेबसाइट पर न्यायालय के फैसले और आदेश तेजी से अपलोड किये जायें। इसके बाद एक परिपत्र जारी करके भी सभी संबंधित विभागों के प्रमुखों को निर्देश दिया गया था कि वे न्यायालय के निर्देशों का अक्षरश: पालन करें।

उच्च न्यायालय ने इस पृष्ठभूमि में निर्देश दिया कि न्यायालय के आदेशों का पालन करने में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए। पीठ ने कहा,

‘‘जब भी आदेश पारित किये जाते हें तो उन्हें उन संबंधित प्राधिकारी के संज्ञान में तत्काल लाया जाये जिन्हें आदेश पर अमल करना है। ऐसे आदेश पर जिस अधिकारी को अमल करना है , ऐसे प्राधिकारी के संज्ञान में लाने में लापरवाही बरतने वाले कर्मचारी के खिलाफ तदनुसार कार्रवाई की जानी चाहिए। ऐसा करके ही स्टाफ के अंदर अनुशासन की भावना पैदा की जा सकती है। अन्यथा, कोई अनुशासन नहीं होगा और अदालतों के पास विलंब की माफी के आवेदनों और अवमानना याचिकाओं का अंबार लग जायेगा। इस तरह के अनुशासन का लक्ष्य हासिल करने के लिये न्यायालय का मत है कि ऐसे अधिकारियों पर जुर्माना लगाना जरूरी है।’’

राज्य के स्कूल शिक्षा विभाग को अब निर्देश दिया जाता है कि वह एक परिपपत्र जारी करके अधिकारियों को सूचित करें कि ऐसे मामलों में लापरवाही करते पाये गये अधिकारियों को विलंब की स्थिति में लगाये गये जुर्माने को वहन करना होगा। आदेश में आगे कहा गया,

‘‘चेन्नई स्थित सचिवालय में स्कूल शिक्षा विभाग में सरकार के सचिव को निर्देश दिया जाता है कि वह अपने अधिकारियों और स्टाफ के लिये एक परिपपत्र जारी करें कि अगर कोई अपील, पुनरीक्षण याचिका या पुनर्विचार याचिका समय से दायर करने में किसी प्रकार के विलंब की वजह से सरकार पर कोई जुर्माना लगा या उसे आर्थिक नुकसान हुआ तो संबंधित अधिकारी उनकी लापरवाही की वजह से सरकार को हुये ऐसे जुर्माने या आर्थिक नुकसान के लिये जिम्मेदार होंगे और इसके अलावा उचित विभागीय कार्यवाही होगी।’’

पेश मामले में उच्च न्यायालय ने राजय सरकार को निर्देश दिया कि अपील दायर करने में 1069 दिन का विलंब माफ करने के लिये जिला शिक्षा अधिकारियों के वेतन से 15,000 रूपए और मुख्य शिक्षा अधिकारियों के वेतन से 10,000 रूपए जुमाने के रूप में वसूल किये जायें।

न्यायालय को सूचित किया गया कि दो अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई शुरू की गयी है क्योंकि इस विलंब के लिये वे ही जिम्मेदार थे। न्यायलाय ने स्पष्ट किया कि इस तरह से मिली जुर्माने की राशि का भुगतान ‘ऐश्वर्यम ट्रस्ट, मदुरै’ का किया जाये। पीठ ने कहा,

‘‘इस न्यायालय द्वारा लगाया गया जुर्माना लापरवाही करने वाले अधिकारियों के खिलाफ दूसरे याचिकाकर्ता द्वारा शुरू की गयी विभागीय कार्यवाही से अलग है।’’

यह मामला सरकारी स्कूल में एक शिक्षक की नियुक्ति से संबंधित है। एकल न्यायाधीश ने 2016 में इस शिक्षक के पक्ष में व्यवस्था दी थी। राज्य ने इस नियुक्ति को चुनोती देते हुये कहा था कि पहले से ही उपलब्ध ज्यादा शिक्षकों की नियुक्तियों में से भर्ती करने की बजाये ऐसा किया गया जबकि सरकार इन शिक्षकों के वेतन पर हर महीने 31.7 करोड़ रूपए खर्च कर रही है।

इस तथ्य के मद्देनजर कि इसमें सरकार का बहुत अधिक आर्थिक नुकसान जुड़ा है, न्यायालय ने अपील दायर करने में विलंब को माफ कर दिया, हालांकि वह इस विलंब के लिये बताये गये कारणों से संतुष्ट नहीं था।

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Delay in filing Government appeals has become a habit: Madras High Court notes while condoning 1,069 days' delay