दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति को अग्रिम जमानत प्रदान कर दी है जिसका दावा है कि उसके खिलाफ बलात्कार के आरोप में दर्ज एफआईआर धन वसूलनें वाले एक गिरोह का बुने जाल का नतीजा है। न्यायालय ने कहा कि धन ऐंठने के लिये किसी को आकर्षित करना स्वीकार्य नहीं है।
न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत की एकल पीठ ने यह आदेश दिया।
भारतीय दंड संहिता की धारा 376 के तहत प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने पर याचिकाकर्ता ने दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 438 के तहत जमानत का अनुरोध किया है।
पीड़ित महिला के मामले के अनुसार याचिकाकर्ता ने उसका उस वक्त बलात्त्कार किया जब वह उसे निजी सहायक के पद पर नौकरी की पेशकश के बारे में बातचीत करने उसके घर आया था।
पीड़िता का दावा हैकि याचिकाकर्ता ने उसे मदिरायुक्त पेय दिया और फिर उससे बलात्कार किया। इस घटना की पुष्टि उसकी पड़ोसी जासमिन ने की जिसने उसे भागते हुये देखा था।
अभियोजन ने आरोपी को जमानत दिये जाने का विरोध करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता के उस स्थान पर होने के बारे में कोई विवाद नहीं है। यह भी दलील दी गयी कि याचिकाकर्ता का इस मामले के घर जाने की कोई वजह नहीं थी क्योंकि वह उसके लिये अजनबी थी।
याचिकाकर्ता ने स्वीकार किया कि वह और पीड़िता घटना वाले दिन तक एक दूसरे के लिये पूरी तरह अजनबी थे और फिर उसने इस घटना के बारे में अपना पक्ष रखा।
उसने बताया कि वह एक निजी सहायक की तलाश में था और पीड़िता ने ऑनलाइन जाब पोर्टल से उसका मोबाइल नंबर प्राप्त करके घटना वाले दिन अपराह्न में उसे संदेश भेजा।
याचिकाकर्ता ने कहा कि बातचीत के तीन मिनट के भीतर ही पीड़िता ने सलवार सूट में अपनी तस्वीर भेजने की बजाये उसे अपनी बेहद उत्तेजक तस्वीरें भेजीं। उसी दिन पीड़िता ने याचिकाकर्ता को अपने घर बुलाया और साथ में वाइन लाने के लिये भी कहा।
याचिकाकर्ता के अनुसार पीड़िता ने संकेत दिया कि वह लंबे समय के संबंध के लिये उपलब्ध है और शारीरिक अंतरंगता में उसे आपत्ति नहीं है।
याचिकाकर्ता के अनुसार जब उसने पीड़िता की पांच लाख रूपए की मांग ठुकरा दी तो उसने उसके खिलाफ बलात्कार के आरोप में पूरी तरह मनगढ़ंत और झूठी प्राथमिकी दर्ज करा दी।
याचिकाकर्ता के वकील ने दलील दी कि उसके मुवक्किल को धन ऐंठने वाले गिरोह ने बहुत ही सुनियोजित तरीके से बुने गये जाल में फंसाया है।
यह भी दलील दी गयी कि पीड़िता ने जानबूझ कर अपनी उत्तेजक तस्वीरें भेजीं ताकि याचिकाकर्ता कुछ खुले और उसे पहले से तैयार किये गये जाल में फंसा कर उसका दोहन किया जा सके।
न्यायालय को यह भी बताया कि पीड़िता की पड़ोसन का नाम जासमिन नहीं था और वास्तव में वह भावना ठाकुर है जो इस अपराध में पीड़िता से मिली हुयी थी।
अभियोजन के मामले के गुण दोष पर टिप्पणी किये बगैर ही न्यायालय ने कहा कि इस मामले में याचिकाकर्ता गिरफ्तारी से संरक्षण का हकदार है।
यद्यपि लुभाने को स्वीकारना न्यायोचित नहीं है लेकिन धन ऐंठने के लिये मोहपाश में फंसाना भी स्वीकार्य नहीं है।न्यायालय ने कहा
आरोपों की गंभीरता को देखते हुये न्यायालय ने दिल्ली के पुलिस आयुक्त को निर्देश दिया कि वह इस मामले को व्यक्तिगत रूप से देंखें और पता लगायें कि क्या पीड़िता और उसकी पड़ोसन इसी तरह के दूसरे मामलों में भी संलिप्त रही हैं।
न्यायालय ने पुलिस आयुक्त से कहा कि वह सभी थानों से इस तरह के मामलों के बारे में रिपोर्ट मंगाये और चार सप्ताह के भीतर अपनी रिर्पोट पेश करें।
अगर पुलिस आयुक्त को लगता है कि दिल्ली में 2020 में इस तरह की घटना हुयी थी तो वह सभी थानों को यह निर्देश दें कि इनमें ऐसे व्यक्ति या आरोपी को परेशान किये बगैर ही कानून के अनुसार कार्रवाई की जाये।न्यायालय ने कहा
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास पाहवा और अधिवक्ता सिमरन ज्योत सिंह खांडपुर, वरूण सिंह, कमलेश आनंद, सुमेर बोपाराय,रूचिका वाधवा और रावी शर्मा उपस्थित हुये।
राज्य की ओर से एपीपी पीएल शर्मा उपस्थित हुये।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें