दो समलैंगिक जोड़ों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरूस्वामी ने दिल्ली उच्च न्यायालय में दलील दी, ‘‘हम चाहेंगे कि हमे पूर्ण मानव की तरह ही स्वीकार किया जाये।’’ इन समलैंगिक जोड़ों ने समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता के लिये याचिका दायर कर रखी है।
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिकाओं में अनुरोध किया है कि हिन्दू विवाद कानून और विदेशी विवाह कानून की व्याख्या इस तरह की जाये जिससे समलैंगिक जोड़े भी विवाह के लिये आवेदन कर सकें।
न्यायमूर्ति आरएस एंडलॉ और न्यायमूर्ति आशा मेनन की पीठ ने इस मामले में आज नोटिस जारी किया और इसकी सुनवाई आठ जनवरी, 2021 के लिये निर्धारित की है।
केन्द्र सरकार की ओर से पेश अधिवक्ता राज कुमार यादव ने आज सुनवाई के दौरान कहा, ‘‘यह विकट स्थिति है।’’ उन्होंने कहा,
‘‘सनातन धर्म में पिछले 5000 वर्षो में इस तरह की स्थिति का हमने सामना नहीं किया।’’
इस टिप्पणी पर न्यायमूर्ति मेनन ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की और कहा,
‘‘कानून लिंग विहीन हैं। आप कृप्या देश में सनातन धर्म के नागरिकों के लिये कानून की व्याख्या का प्रयास कीजिये। यह विरोधात्मक मुकदमा नहीं है। मैं भारत सरकार के वकील से यह अनुरोध करती हूं (इसे विरोधात्मक रूप में मत लें)। यह देश के प्रत्येक नागरिक के अधिकार के संबंध में है।’’जस्टिस आशा मेनन
केन्द्र सरकार के स्थाई वकील कीर्तिमान सिंह ने इससे सहमति व्यक्त की कि इस मामले को विरोधात्मक नहीं माना जा सकता है। उन्होंने कहा, ‘‘यह मामला नोटिस के लायक है, हम जवाब दाखिल करेंगे।’’
यह मामला दो समलैंगिक जोड़ों द्वारा दायर दो याचिकाओं से संबंधित है।
एक जोड़े ने विशेष विवाह कानून की मौजूदा व्याख्या को चुनौती दी है। वरिष्ठ अधिवक्ता गुरूस्वामी के माध्यम से उन्होंने आज न्यायालय से कहा कि जब उन्होंने विवाह के लिये संबंधित सब डिवीजनल मजिस्ट्रेट से संपर्क किया तो "उन्हें इमारत के भीतर प्रवेश की इजाजत भी नहीं दी गयी।’’
गुरूस्वामी ने न्यायाल ने कहा, ‘‘सिर्फ उनके वकील को बताया गया कि चूंकि वे समलैंगिक जोड़े हैं, उनका विवाह नहीं हो सकता।’’
एक अन्य समलैंगिक जोड़ा, दो पुरूष जिनका विवाह न्यूयार्क में सर्वोच्च रैंक वाले भारतीय न्यायाधीश ने कराया था, जिसके विवाह को न्यूयार्क में भारतीय वाणिज्य दूतावास ने विदेशी विवाह कानून के तहत पंजीकरण करने से इंकार कर दिया।
गुरूस्वामी ने इस जोड़े और वाणिज्य दूतावास के अधिकारियों के बीच हुये पत्राचार से न्यायालय को अवगत कराया और कहा कि वाणिज्य दूतावास ने सार्वजनिक तौर पर स्वीकार किया है कि सिर्फ यौन आकर्षण के आधार पर ही विवाह का पंजीकरण करने से इंकार किया गया है। इस जोड़े को बताया गया कि मौजूदा दिशा निर्देश उनके विवाह के पंजीकरण की इजाजत नहीं देते हैं।
गुरूस्वामी ने कहा कि प्राधिकारियों की इस कार्रवाई से साफ संकेत मिलता है कि उन्हें पुत्तूस्वामी प्रकरण और नवतेज सिंह जोहर प्रकरण में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था की जानकारी नहीं है जिसमें शीर्ष अदालत ने यौन आकर्षण के आधार पर भेदभाव के खिलाफ व्यवस्था दी । इन व्यवस्थाओं में अपनी पसंद के साथी के चयन के अधिकार को भी रेखांकित किया गया था।
उन्होंने दलील दी कि याचिकाकर्ताओं को विवाह की अनुमति देने या उनके विवाह के पंजीकरण की अनुमति देने से इंकार करके संविधान में प्रदत्त उनके गरिमा के अधिकार का उल्लंघन किया गया है।
न्यायमूर्ति मेनन ने यह जानना चाहा कि इस विवाह को मान्यता देने से इंकार करने को चुनौती देते हुये क्या सरकार के समक्ष कोई अपील दायर की गयी थी? गुरूस्वामी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं को इस तरह का अवसर भी नही दिया गया।
गुरूस्वामी ने कहा, ‘‘इसका मतलब ही अधिकार विहीन है।’’
याचिकाकर्ताओं की दलील है कि यह परंपराओं के अधिकार का मामला नहीं है बल्कि यह नागरिक अधिकारों का मसला है जिसे मान्यता देने का अनुरोध किया गया है।
न्यायमूर्ति एंडलॉ ने कहा की भारतीय कानून में ‘विवाह’ की परिभाषा कानूनी रूप से परिभाषित नहीं की गयी है जिसका तात्पर्य है कि प्राधिकारी आमतौर पर इसकी पारंपरिक व्याख्या ही मानते हैं। उन्होंने कहा,
‘‘भारतीय कानून के अंतर्गत, यह परंपरा ही है। क्योंकि यहां अंतर-आस्था विवाह नहीं थे, तो हमने विशेष कानून बनाया। यदि इसमें कोई सुधारात्मक उपाय करने की जरूरत है तो उसे इसी चरण में लिया जाना चाहिए। क्या आपने इस नजरिये से इस पर विचार किया है? अन्यथा हमें इन याचिकाओं की विचारणीयता को लेकर कोई संशय नही है।’’
इस पर गुरूस्वामी ने जवाब दिया,
‘‘विशेष विवाह कानून, विदेशी विवाह कानून परंपरागत कानून पर आधारित नहीं है। यह वैधानिक है। हम परंपरागत या धार्मिक कानून की बात नहीं कर रहे हैं। हम सिविल कानून की बात कर रहे हैं।’’
उन्होंने कहा,
‘‘ इस न्यायालय में संरक्षण के लिये आने वाले जोड़ों को मैं देखती हूं। मैंने देखा है कि उच्च न्यायालय अनेक जोड़ों को संरक्षण प्रदान करता है जो अंतर-जातीय, अंतर-आस्था विवाह के कारण प्रभावित होते हैं। मैं भी वही संरक्षण चाहती हूं। कई न्यायाधीशों ने कहा है कि यौन आकर्षण भेदभाव का आधार नहीं हो सकता है।’’
उन्होंने कहा कि विशेष विवाह कानून सिर्फ ऐसे मामलों के लिये है जो विवाह नहीं कर सकते मसलन विक्षिप्त व्यक्ति, नाबालिग, निषिद्ध श्रेणी की रिश्तेदारी और जिनमे सहमति नहीं हो।
गुरूस्वामी ने दलील दी,
‘‘ हम इस कानून की भाषा की संवैधानिकता को चुनौती दे रहे हैं। मेरा सिर्फ यही कहना है । विशेष विवाह कानून उसे निषेध करता है जो ‘विवाह नहीं कर सकते’। कानून में यही है। इसे ‘विवाह’ को परिभाषित नहीं करना है। यह सिर्फ इस बात को परिभाषित करने के लिये हैं कि कौन विवाह नहीं कर सकता है।’’
गुरूस्वामी ने अपनी दलीलें पेश करते हुये न्यायालय का ध्यान इस ओर आकर्षित किया कि किस तरह से विवाहित जोड़ों को मकान खरीदने, जीवन बीमा की पालिसी लेने, साथी के परिवारकी देखभाल करने, ऋण लेने और बैंक खाता रखने जैसे विशेष अधिकार दिये गये हैं।
अपनी दलील के समर्थन में उन्होंने पुत्तूस्वामी और नवतेज सिंह जौहर प्रकरणों में उच्चतम न्यायालय की व्यवस्था को आधार बनाते हुये कहा कि संविधान के अनुच्छेद 21 की व्याख्या में समलैंगिक जोड़ों के विवाह करने के अधिकार सहित विभिन्न अधिकारों को शामिल किया गया है।
उन्होंने कहा कि बाद वाले मामले में तो उच्चतम न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की है कि विवाह का मकसद प्रजनन से भी आगे का है।
उन्होंने कहा कि इस पृष्ठभूमि में याचिकाकर्ता "सिर्फ पूर्ण नागरिक के रूप में मान्यता चाहते हैं।’’
इस मामले में भारत सरकार और दिल्ली सरकार की ओर से आज नोटिस स्वीकार कर लिया गया। न्यायालय ने उन्हें चार सप्ताह के भीतर अपने हलफनामे और इसके बाद चार सप्ताह के भीतर प्रत्युत्तर दाखिल करने के निर्देश दिये हैं। इस मामले को आगे सुनवाई के लिये 8 जनवरी को सूचीबद्ध किया गया है।
याचिकाकर्ताओं की ओर से अधिवक्ता अरून्धती काटजू भी मौजूद थीं। अधिवक्ता संगीता राय प्रतिवादी प्राधिकारियों की ओर से उपस्थित थीं।
न्यायालय को जब यह बताया गया कि समलैंगिक विवाहों को मान्यता दिये जाने के आधार पर हिन्दू विवाह कानून की व्याख्या को चुनौती देने वाली एक अन्य याचिका भी है, गुरूस्वामी ने कहा कि वह पेश मामले से एकदम भिन्न है।
उन्होंने कहा कि पहली याचिका जनहित में दायर की गयी है और पक्षकार सीधे प्रभावित नहीं है जबकि यह मामला याचिकाकताओं से संबंधित है जो प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित हैं।
इससे पहले की याचिका पर जवाब देते हुये सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने दिल्ली उच्च न्यायालय से कहा था,
‘‘हमारी कानून व्यवस्था और सिद्धांत समलैंगिक जोड़ों के बीच विवाह, जो पवित्र होता है, को मान्यता नहीं देते हैं।’’
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