मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी) ने भारतीय स्टेट बैंक की चार मेट्रो शाखाओं के बैंक खातों से चुनावी बांड लेने और देने वालों का विवरण उपलब्ध कराने के लिये सूचना के अधिकार कानून के तहत दायर अर्जी सोमवार को खारिज कर दी। सीआईसी ने कहा कि दानकर्ता और इसे स्वीकार करने वाले की निजता के अधिकार पर जनहित की कोई प्राथमिकता नहीं है।
मुख्य सूचना आयुक्त सुरेश चंद्र ने कहा कि खातों से चुनावी बांड के दानकर्ताओं और इसे प्राप्त करने वालों के नाम सार्वजनिक करना सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1) (ई) और (जे) के प्रावधानों के खिलाफ हो सकता है।
सीआईसी के आदेश में कहा गया, ‘‘ आयोग प्रतिवादी की इस दलील को सही ठहराता है कि खातों से चुनावी बांड के दानकर्ताओं और उसे प्राप्त करने वालों के नाम उजागर करना सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1) (ई) और (जे) के प्रावधानों का उल्लंघन होगा। ऐसा लगता है कि संबंधित दानकर्ताओं और दान प्राप्त करने वालों के निजता के अधिकार पर कोई व्यापक जनहित नहीं है।’’
सूचना के अधिकार कानून की धारा 8 (1)(ई) के तहत जब तक व्यापक जनहित के लिये आवश्यक नहीं हो, किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत संबंधों की जानकारी उपलब्ध कराने से छूट है।
इसी तरह धारा 8 (1)(जे) व्यक्ति की निजता से संबंधित जानकारी को संरक्षण प्रदान करती है बशर्ते इसकी जानकारी देना व्यापक जनहित में हो।
सीआईसी ने आरटीआई आवेदक विहार दुर्वे के आवेदन पर यह आदेश दिया। दुर्वे ने अपने आवेदन में निम्नलिखित जानकारी उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था:
‘‘मुझे एसबीआई, मुंबई की मेन ब्रांच कोड 00300, एसबीआई चेन्नै मेन ब्रांच कोड 00800, एसबीआई कोलकाता, मेन ब्रांच कोड 0001 और एसबीआई, नयी दिल्ली मेन ब्रांच कोड 00691 के खातों से चुनावी बांड के दानकर्ताओं और उन्हें स्वीकार करने वालों का विवरण उपलब्ध कराया जाये।’’
भारतीय स्टेट बैंक, मुंबई के केन्द्रीय लोक सूचना अधिकारी ने धारा 8 (1)(ई)(जे) का हवाला देते हुये दुर्वे का आवेदन अस्वीकार कर दिया था।
दुर्वे ने इस आदेश को प्रथम अपीली प्राधिकारी के समक्ष चुनौती दी जिसने अपनी व्यवस्था में कहा कि विभिन्न राजनीतिक दलों को चुनावी बांड जारी करने से संबंधित जानकारी बैंक के पास विश्वसनीय व्यक्ति की हैसियत से है।
अपीली प्राधिकारी ने दुर्वे की अपील खारिज कर दी। इसके बाद, दुर्वे ने सीआईसी में दूसरी अपील दायर की।
सीआईसी ने प्रथम अपीली प्राधिकारी के फैसले को बरकरार रखते हुये दुर्वे की अपील खारिज करते हुये कहा कि यह जानकारी धाराा 8 (1)(ई)(जे) के तहत संरक्षित है।
चुनावी बांड की वैधानिकता को चुनौती देने वाली एक याचिका उच्चतम न्यायालय में लंबित है।
आयकर कानून, भारतीय रिजर्व बैंक कानून ओर जन प्रतिनिधित्व कानून में संशोधन करके 2017 में चुनावी बांड लाये गये थे। इन तीनों कानूनों में वित्त कानून, 2017 के माध्यम से संशोधन किये गये थे।
दो गैर सरकारी संगठनों – डेमोक्रेटिक रिफार्म्स और कॉमन कॉज ने इन संशोधनों को उच्चतम न्यायालय में चुनौती दे रखी है। इन संगठनों की दलील है कि ये संशोधन राजनीतिक दलों के लिये असीमित और अनियंत्रित धन प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं।
केन्द्र ने इस योजना का पुरजोर समर्थन किया है। अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने शीर्ष अदालत से कहा है कि मतदाताओं को राजनीतिक दलों को मिलने वाले धन के स्रोत की जानकारी प्राप्त करने का अधिकार नहीं है।
वेणुगोपाल ने एक सुनवाई के दौरान कहा था, ‘‘उनकी दलील है कि मतदाताओं को जानकारी प्राप्त करने का अधिकार है। मतदाताओं को क्या जानकारी होने का अधिकार है? मतदाताओं को यह जानने की जरूरत नहीं है कि राजनीतिक दलों के पास धन कहां से आ रहा है।’’
उच्चतम न्यायालयय ने इस योजना पर रोक लगाने से बार बार इंकार किया है और इसकी वैधता के सवाल पर अभी फैसला होना बाकी है।
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