Supreme Court and electoral bonds
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वादकरण

[इलेक्टोरल बांड] केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट से कहा: दान की पद्धति सबसे पारदर्शी, काला धन प्राप्त करना असंभव

Bar & Bench

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि राजनीतिक दलों को फंडिंग के लिए इलेक्टोरल बॉन्ड योजना सबसे पारदर्शी है [एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया और अन्य]।

केंद्र सरकार की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल (एसजी) तुषार मेहता ने जस्टिस बीआर गवई और बीवी नागरत्ना की पीठ को बताया कि चुनावी बांड योजना में काले धन की कोई गुंजाइश नहीं है।

एसजी ने कहा, "दान की पद्धति इतनी पारदर्शी है, काला धन प्राप्त करना असंभव है..यह सबसे पारदर्शी है और यह कहना गलत है कि यह लोकतंत्र पर हमला करता है।"

वह अधिवक्ता प्रशांत भूषण द्वारा दिए गए एक तर्क का जवाब दे रहे थे कि इस मामले में ऐसे मुद्दे शामिल हैं जो लोकतंत्र की जड़ पर प्रहार करते हैं।

भूषण ने कहा, "ये मुद्दे हमारे लोकतंत्र की जड़ पर प्रहार करते हैं। हमने चुनावी बांड, अनुषंगियों द्वारा असीमित चंदा और विदेशी अंशदान नियमन अधिनियम में पूर्वव्यापी बदलाव की अनुमति देने वाले संशोधनों को चुनौती दी है।"

याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने भी तर्क दिया कि उठाए गए मुद्दों के महत्व को देखते हुए मामले को बड़े पैमाने पर सुनना पड़ सकता है।

कोर्ट ने कहा कि वह पहले बड़ी बेंच के संदर्भ में सुनवाई करेगी।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, "पहले हम उस पर सुनवाई करेंगे।"

पीठ ने तब पक्षों से पूछा कि उसे मामले को कब सूचीबद्ध करना चाहिए।

अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणि ने कहा कि कोई दबाव की जरूरत नहीं है और अदालत से जनवरी 2023 में इसे सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया।

भूषण, सिब्बल और वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने बताया कि गुजरात के चुनावों की घोषणा आज की जाएगी और जनवरी में सुनवाई का मतलब बांड की अधिक बिक्री होगी।

एसजी ने बताया कि नवंबर में बैठने के लिए पहले से ही एक संविधान पीठ है।

अदालत ने अंततः 6 दिसंबर को मामले को सूचीबद्ध करने के लिए आगे बढ़े।

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