सर्वोच्च न्यायालय ने गुरुवार को इस बात पर चिंता व्यक्त की कि नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस (एनडीपीएस) अधिनियम के तहत आरोपी एक व्यक्ति के बच्चों को हाल ही में हुए पहलगाम आतंकवादी हमले से गलत तरीके से जोड़कर ताना मारा जा रहा है, जिसमें 26 लोगों की जान चली गई थी [हरप्रीत सिंह तलवार @ कबीर तलवार बनाम गुजरात राज्य]।
आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए जस्टिस सूर्यकांत, दीपांकर दत्ता और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा,
"किसी भी व्यक्ति के परिवार के किसी भी सदस्य को, चाहे उसने कुछ भी किया हो या नहीं किया हो, उसके कारण कोई नुकसान नहीं होना चाहिए।"
आरोपी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता आर्यमा सुंदरम ने दलील दी कि आरोपी के बच्चों को स्कूल में धमकाया जा रहा है और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) द्वारा अदालत में किए गए दावों के बाद उन्हें "आतंकवादियों के बच्चे" करार दिया जा रहा है।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने दावा किया कि मामले में ड्रग्स से प्राप्त कुछ आय आतंकवादी संगठन लश्कर-ए-तैयबा को गई, जिससे इस मामले को हाल ही में हुए पहलगाम आतंकी हमले से जोड़ने की अटकलें लगाई जाने लगीं।
सुंदरम ने तर्क दिया कि इस दावे के कारण आरोपी के नाबालिग बच्चों का सामाजिक बहिष्कार और उत्पीड़न हुआ, जिसके कारण परिवार को उन्हें स्कूल से वापस लाना पड़ा।
सुंदरम ने आग्रह किया, "कल अचानक पहलगाम का उल्लेख किया गया... कृपया स्पष्ट करें कि इसका एनडीपीएस मामले से कोई लेना-देना नहीं है।"
प्रतिवेदनों का जवाब देते हुए मेहता ने कहा कि ऐसे सबूत हैं जो संकेत देते हैं कि कथित ड्रग तस्करी की आय लश्कर-ए-तैयबा को भेजी गई थी।
हालांकि, सुंदरम ने इस पर सवाल उठाते हुए इस तरह के संबंध का दस्तावेजी सबूत मांगा।
सुंदरम ने कहा, "मुझे ऐसा कोई कागज़ दिखाइए जिस पर ऐसा लिखा हो। ऐसा कहीं नहीं है।"
न्यायमूर्ति कांत ने हस्तक्षेप करते हुए कहा कि इस तरह के मुद्दे न्यायालय द्वारा विचार किए जा रहे मामले के लिए प्रासंगिक नहीं हैं। उन्होंने किसी भी पक्ष की ओर से भावनात्मक तर्कों के प्रति आगाह किया।
अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने माना कि परिवार के सदस्यों के खिलाफ कार्यवाही के कारण बच्चों को कष्ट नहीं उठाना चाहिए।
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