बंबई उच्च न्यायालय की औरंगाबाद पीठ ने महाराष्ट्र के जलगांवमें किसानों को ठगने वाले दो व्यक्तियों के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने से इंकार करते हुये कहा कि देश में किसान हर तरह की परेशानियों का सामना कर रहे हैं लेकिन कोई भी व्यवस्था उनके प्रति संवेदना नहीं दिखा रहा है।
न्यायमूर्ति टीवी नलवडे और न्यायमूर्ति एमजी सेवलिकर की खंडपीठ ने इस तथ्य पर कड़ी नाराजगी व्यक्त की कि आरोपियों को सत्र अदालत से मिली अग्रिम जमानत के खिलाफ शासन ने कोई अपील नहीं की।
न्यायालय ने कहा, ‘‘इस तरह की घटनायें दिन प्रति दिन बढ़ रही हैं। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन यह भी हकीकत है कि समूची व्यवस्था ही किसानों के सामने आ रही समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता नहीं दिखा रही है। किसानों के पास कोई संसाधन नहीं है और मुकदमे लड़ना उनके बस का नहीं है।’’
न्यायालय इसलिए खण्डेलवाल ट्रांसपोर्टर्स के मालिक आवेदक एमके खण्डेलवाल और उसके पिता केडी खण्डेलवाल के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही निरस्त करने से इंकार कर दिया । पिता पुत्र पर आरोप है कि उन्होंने किसानों की उपज बेचने के लिये ली और इसके बाद बिक्री में से उनका हिस्सा उन्हें नहीं सौंपा।
न्यायालय ने अपने आदेश में कहा, ‘‘ किसानों की इस असहाय स्थिति का आवेदक जैसे व्यापारी इस्तेमाल करते हैं और वे किसानों द्वारा कड़ी मेहनत से पैदा की गयी कृषि उपज से पैसा बनाते हैं। किसानों की आत्महता की घटनायें दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही हैं क्योंकि किसान हर तरह की परेशानियों से जूझ रहा है और उनके साथ ठगी करने की यह अतिरिक्त परिस्थिति है जो किसानों को आत्महत्या करने के लिये बाध्य कर रही है। इन सभी परिस्थितियों की वजह से यह न्यायालय कहती है कि आवेदकों को किसी प्रकार की राहत नही दी जा सकती।’’
यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन हकीकत यही है कि समूची व्यवस्था ही किसानों के सामने पेश आ रही दिक्कतों के प्रति संवेदना नहीं दिखा रही है।जस्टिस टीवी नलवाडे और एमजी सेवलिकर
खण्डेलवाल ट्रांसपोर्टर्स ने कृषि उपज के दलाल सानिया कादरी से संपर्क किया था कि वह किसानों से एकत्र की गयी केले की उपज उसे सौंप दे ताकि वे ऐसे किसी उचित व्यापारी को तलाश कर सके जो उसके बेहतर दाम दे और जिससे उसे अधिक लाभ हो जाये।
चूंकि इसमें ज्यादा मूल्य का वायदा किया गया था, कादरी ने खण्डेलवाड ट्रांसपोर्टर्स के साथ एक समझौता किया।
कादरी ने अदालत ने कहा कि उसने किसानों को उनकी उपज की बिक्री का हिस्सा कुछ दिनों में ही दे दीगी। हालाकि, ट्रांसपोर्टर्स से पैसा नहीं मिलने की वजह से वह किसानों को धन नहीं दे सकी।
किसानों ने जब कादरी पर अपने पैसे के लिये दबाव डाला तो उसने ट्रांसपोर्टर्स से उपज की बिक्री का भुगतान मांगा लेकिन उन्होंने कादरी से कहा कि वह सारी रकम की एवज से 50 फीसदी स्वीकार कर ले।
कादरी का कहना था कि अब उसने महसूस किया कि उसके साथ छल हुआ है और इसलिए वह पुलिस के पास गयी जिसने भारतीय दंड संहिता की धारा 406 (विश्वासघात) धारा 420 (छल) और धारा 120-बी (आपराधिक साजिश्) के आरोप में आरोपियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की।
खण्डेलवाल ट्रांसपोर्टर्स ने समझौते को स्वीकार नहीं किया न ही यह स्वीकार किया कि उन्हें कोई उपज सौंपी गयी थी। उनका दावा था कि वे ट्रांसपोर्ट के कारोबार में है और कादरी को ट्रक की आपूर्ति करते थे जो व्यापारियों को सीधे केले की उपज बेचती थी।
हालांकि, अदालत ने कहा कि उसके समक्ष पेश रिकार्ड से पता चलता है कि ट्रांसपोर्टर्स के खिलाफ गबन और छल करने का अपराध बनता है।
अदालत ने कहा कि हकीकत तो यह है कि ट्रांसपोर्टर्स ने किसानों की उपज की बिक्री का पैसा एकत्र किया था लेकिन वह रकम कादरी को नहीं दी।
न्यायालय ने टिप्पणी की, ‘‘ ऊंची कीमत देने और उन्हें तत्काल भुगतान के लिये ज्ञापन दिये गये थे और इसी वजह से किसान आकर्षित हुये और उन्होंने केले की उपज शिकायतकर्ता को सौंपी और शिकायतकर्ता ने केलों को आवेदकों को सौंपा। ऐसे मामलों में इन परिस्थितियों के आधार पर साजिश का निष्कर्ष भी निकाला जा सकता है। ’’
इसलिए न्यायालय इस निष्कर्ष पर पहुंचा कि खण्डेलवाड ट्रांसपोर्टर्स ने इस सौदे से पैसा कमाया और किसानों को ठग लिया। इस वजह से न्यायालय ने खण्डेलवाड ट्रांसपोर्टर्स के खिलाफ मामला रद्द करने से इंकार कर दिया।
इससे पहले, उच्च न्यायालय की कोआर्डिनेट पीठ ने कादरी, जिसे किसानों के गुस्से का भी सामना करना पड़ा था क्योंकि वह उनसे केले की पैदावार लेती थी और उससे यह उम्मीद की जाती थी कि वह बिक्री का पैसा किसानों को लौटायेगी, को राहत देने से इंकार कर दिया था। कादरी के व्यापार में साझेदा शेख मोहिनुद्दीन की रिपोर्ट पर उसके खिलाफ भी प्राथमिकी दर्ज की गयी थी।
उच्च न्यायालय की एक कोआर्डिनेट पीठ ने कादरी के खिलाफ प्राथमिकी निरस्त करने से इंकार करते हुये कहा था कि मोहिनुद्दीन नहीं बल्कि किसान ही असली पीड़ित हैं। लेकिन कादरी और खण्डेलवाड ट्रांसपोर्टर्स को सत्र अदालत ने उनके खिलाफ अपराधों में गिरफ्तारी से संरक्षण प्रदान कर दिया था।
उच्च न्यायालय ने इन तथ्यों पर आश्चर्य व्यक्त किया कि शासन ने इस संरक्षण को चुनौती नहीं दी जबकि किसानों को देय रकम अभी तक बरामद नहीं हुयी थी
न्यायालय ने आवेदन निरस्त करते हुये कहा, ‘‘यद्यपि यह दर्शाया गया है कि पुलिस ने कुछ रकम बरामद की है लेकिन यह कार्रवाई किसानों के लिये मददगार नहीं होगी। यह आरोपियों को अग्रिम जमानत की राहत मिलने पर ही हुआ है। इसलिए, आवेदकों और सूचना देने वालों ने धनकमाया है और किसानो को ठगा है। यह आश्चर्यजनक है कि सत्र अदालत द्वारा अग्रिम जमानत देने के इस आदेश को शासन ने चुनौती नहीं दी।’’
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