इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने सोमवार को सीबीआई को हाथरस बलात्कार मामले की जांच की प्रगति रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया और यह जानना चाहा कि इस जांच को पूरा करने में कितना वक्त लगने की उम्मीद है।
न्यायमूर्ति रंजन रॉय और न्यायमूर्ति पंकज मिट्ठल की पीठ ने यह आदेश उच्चतम न्यायालय के उस आदेश के बाद पारित किया जिसमे कहा गया था कि हाथरस सामूहिक बलात्कार मामले में पीड़ित का कथित गैरकानूनी अंतिम संस्कार करने सहित सभी पहलुओं पर इलाहाबाद उच्च न्यायालय विचार करेगा।
पीड़ित परिवार के सदस्यों और गवाहों को सीआरपीएफ की सुरक्षा प्रदान करने की आवश्यकता के बारे में उच्चतम न्यायालय के आदेश के मद्देनजर रजिस्ट्री को निर्देश दिया गया है कि स्वत: शुरू की गयी कार्यवाही में केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल, नयी दिल्ली के महानिदेशक को इसमें प्रतिवादी बनाया जाये।
‘‘केन्द्रीय रिजर्व पुलिस बल के एक जिम्मेदार अधिकारी इस मामले की अगली तारीख से पहले हलफनामा दाखिल कर पीड़ित परिवार के सदस्यों को प्रदान की गयी सुरक्षा और इसके ’’लिये उठाये गये कदमों की जानकारी दें। ’’न्यायालय ने कहा
न्यायालय ने रजिस्ट्री को लखनऊ में सहायक सालिसीटर जनरल को भी इस कार्यवाही के मामले में नोटिस देने का निर्देश दिया है।
उच्चतम न्यायालय के 27 अक्टूबर, 2020 के आदेश के अनुसार उच्च न्यायालय के 12 अक्टूबर के आदेश में उल्लिखित पीड़ित के परिवार के सदस्यों के नामों को हटाने के लिये उच्च न्यायालय के संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिये जा चुके हैं। हटाये गये अंश के स्थान पर ‘पीड़ित के परिवार के सदस्यों’ शब्द का इस्तेमाल किया जाये।
उच्च न्यायालय ने सोमवार को टिप्पणी की कि उच्च न्यायालय के समक्ष कार्यवाही दो स्तरीय है:
पहली, कथित अपराध में सीबीआई की जांच की निगरानी और
दूसरा, मृतक पीड़ित के गैरकानूनी अंतिम संस्कार तथा अन्य सभी संबंधित मामले
इसलिए, न्यायालय ने आरोपियों द्वारा प्रतिवादी बनाने के आवेदन का इस टिप्पणी के साथ निस्तारण कर दिया कि अगर न्यायालय के समक्ष कार्यवाही में आरोपी/आवेदकों के किसी भी अधिकार पर प्रतिकूल असर पड़ रहा हैया प्रभावित होने की संभावना है तो उन्हें अपना पक्ष रखने का अधिकार होगा।
‘जहां तक आरोपियों का संबंध है, अभी जांच के इस चरण में उनका बहुत ज्यादा कोई अधिकार नहीं है क्योंकि यह जांच की निगरानी और कथित गैरकानूनी अंतिम संस्कार से संबंधित है।’’इलाहाबाद उच्च न्यायालय
इस मामले की मीडिया कवरेज रोकने के लिये दाखिल आवेदन के बारे में न्यायालय ने कहा कि यह उम्मीद है कि मीडिया उच्चतम न्यायालय द्वारा सिद्धार्थ वशिष्ठ उर्फ मनु शर्मा बनाम राज्य (एनसीटी दिल्ली) , एम पी लोहिया बनाम पश्चिम बंगाल और अन्य तथा इसी तरह के दूसरे मामलों में सुनाये गये फैसलों से निर्देशित होगी।
पीड़ित परिवार की ओर से अधिवक्ता सीमा कुशवाहा ने कहा कि परिवार अपनी सुरक्षा की खातिर उत्तर प्रदेश से बाहर दिल्ली स्थानांतरित होना चाहता है। उन्होंने कहा कि न्यायालय की कार्यवाही पूरी होने के बाद परिवार अपनी सुरक्षा को लेकर आशंकित है।
उन्होंने पीड़ित परिवार के एक सदस्य को रोजगार मुहैया कराने के राज्य सरकार के आश्वासन के बारे में भी न्यायालय को अवगत कराया और कहा कि यह अभी तक पूरा नहीं किया गया है।
अधिवक्ता कुशवाहा ने कहा कि यद्यति सरकार द्वारा घोषित मुआवजे की राशि का एक हिस्सा परिवार को मिल गया है, लेकिन परिवार के कुछ सदस्यों के इस कथित बयान पर कि परिवार इसे नहीं चाहता, अब यह धन लौटाने के लिये उन पर दबाव डाला जा रहा है।
इस संबंध में उन्होंने जिलाधिकारी के पत्र का हवाला दिया लेकिन वह इसे न्यायालय में पेश नहीं कर सकीं। राज्य ने इस दलील का खंडन किया और कहा कि ऐसा कोई प्रयास नहीं है।
हाथरस के पूर्व पुलिस अधीक्षक विक्रांत वीर उच्च न्यायालय में पेश हुये और उन्होंने बयान दिया कि उन्होंने और जिलाधिकारी ने रात में पीड़ित के शव का अंतिम संस्कार करने का निर्णय लिया था।
बहस के दौरान न्यायालय ने राज्य की ओर से पेश हुये वरिष्ठ अधिवक्ता एसवी राजू से जानना चाहा कि क्या यह उचित और तर्क संगत है कि जांच लंबित होने के दौरान जिलाधिकारी को हाथरस मे अपने पद पर बने रहने दिया जाये।
इस संबंध में न्यायालय ने कहा कि इस सारे मामले मजिस्ट्रेट भी शामिल है। इसलिए पीठ ने सवाल किया कि क्या मामले की निष्पक्षता और पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये जिलाधिकारी को , बगैर किसी लांछन के, यह कार्यवाही लंबित होने के दौरान अन्यत्र भेजना उचित नहीं होगा।
राजू ने कहा कि वह राज्य सरकार को इससे अवगत करायें और सुनवाई की अगली तारीख पर न्यायालय को इसकी जानकारी देंगे।
हाथरस के जिलाधिकारी, तत्कालीन पुलिस अधीक्षक और राज्य सरकार की ओर से दाखिल हलफनामे रिकार्ड पर लिये गये।
इसके साथ मामले को 25 नवंबर को अपराह्न 3.15 बजे के लिये सूचीबद्ध कर दिया गया।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने पिछले महीने 19 वर्षीय दलित युवती, जिसके साथ कहा जाता है कि सामूहिक बलात्कार हुआ और उसे बुरी तरह जख्मी कर दिया गया था, का भोर होने से पहले अंतिम संस्कार किये जाने की घटना का स्वत: संज्ञान लिया था।
इस वारदात में बुरी तरह जख्मी पीड़ित की बाद में दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। पीड़ित का पार्थिक शरीर जब उसके पैतृक गांव ले जाया जा रहा था तो उप्र पुलिस और प्रशासन ने कथित रूप से परिवार की सहमति या उपस्थिति के बगैर ही पौ फटने से पहले उसका जबर्दस्ती अंतिम संस्कार कर दिया था।
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