सिटीजंस फॉर पीस एंड जस्टिस (सीजेपी) ने उच्चतम न्यायालय में एक आवेदन दायर कर हाथरस मामले में हस्तक्षेप की अनुमति मांगी है। सीजेपी ने अन्य बातों के साथ ही इस आवेदन में हाथरस कांड केन्द्रीय जांच ब्यूरो को हस्तांतरित करने और गवाहों का समुचित संरक्षण सुनिश्चित करने का अनुरोध किया है।
उच्चतम न्यायालय की अधिवक्ता अपर्णा भट के जरिये तीस्ता सीतलवाड के संगठन सीजेपी ने यह आवेदन दायर किया है। इसमें कहा गया है कि वरिष्ठ पुलिस अधिकारी और निर्वाचित प्रतिनिधि इस जघंय अपराध को कमतर करने तथा मुद्दे को प्रभावित कर रहे हैं।
आवेदन में उन खबरों का हवाला दिया गया है जिनमें यह कहा गया है कि जांच से जुड़े एक अधिकारी ने कहा है कि ‘कोई यौन हिंसा नहीं’ हुयी है।
आवेदन में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि इस मामले में गवाहों की सुरक्षा की जिम्मेदारी केन्द्र के अर्द्ध सैनिक बल को सौंपी जाये और इसमें उप्र काडर के किसी भी अधिकारी को जिम्मेदारी नहीं दी जानी चाहिए। आवेदन में कहा गया है कि ‘‘मृतक के परिवार की आर्थिक पृष्ठभूमि’’ देखते हुये और ‘‘उन्हें और अलग थलग होने तथा डराने धमकाने’’ से बचाने के लिये गवाहों के संरक्षण की जरूरत है।
आवेदन के अनुसार, ‘‘हालांकि, 2018 की गवाह संरक्ष योजना पिछले करीब एक साल से अस्तित्व में है लेकिन हकीकत में भारतीय अपराध न्याय प्रणाली इसके अमल के बगैर ही काम कर रही है।’’
इस आवेदन में वाल्मीकी और हाशिये पर जीवन गुजारने वाले समुदायों के अधिकारों को केन्द्रित करते हुये मृतक के अधिकारों की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है। आवेदन में शीर्ष अदालत के 2002 के आश्रय अधिकार अभियान प्रकरण , जिसमे न्यायालय ने कहा था कि बेघर मृतक को भी उसकी धार्मिक आस्था के अनुसार अंतिम संस्कार का अधिकार है, सहित अनेक फैसलों को उद्धतृ किया गया है।
इस आवेदन में उत्तर प्रदेश सरकार के दो अक्टूबर के बयान की ओर ध्यान आकर्षित किया गया है जिसमे यह कहा गया है कि पीड़ित के परिवार का पालीग्राफ और नार्को परीक्षण कराया जायेगा।
आवेदन में कहा गया है कि इस तरह का कोइ भी परीक्षण सेल्वी बनाम कर्नाटक मामले में न्यायालय की व्यवस्था का उल्लंघन होगा जिसमें यह कहा गया था कि ‘‘किसी भी व्यक्ति पर जबरन इनमे से किसी भी तकनीक का इस्तेमाल नहीं किया जायेगा चाहे यह आपराधिक मामले की जांच के संदर्भ में हो या किसी अन्य वजह से। ऐसा करना व्यक्तिगत स्वतंत्रता में अनावश्यक अतिक्रमण माना जायेगा।
इस मामले की उच्चतम न्यायालय की निगरानी में सीबीआई जांच के अनुरोध के पक्ष में दलील देते हुये आवेदन में कहा गया है कि पीड़ित की मां ने साफ साफ कहा है कि यौन हिंसा हुयी थी और पीड़ित ने भी वीडियो में दिये बयानों में ऊंची जाति के व्यक्तियों , जिनहोंने यौन हिंसा की और उसका बलात्कार किया, का विवरण दिया है। हालांकि, ‘दुर्भावाना पूर्ण मंशा’ से कुछ ऐसे वीडियो भी सर्कुलेशन में है जिनमें कहा गया है कि लड़की ने कभी नहीं कहा कि उससे बलात्कार हुआ।
आवेदन में उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश को उन परिस्थितियों का पता लगाने के लिये नियुक्त करने का अनुरोध किया गया है जिनकी वजह से परिवार के बगैर ही रात में लड़की का अंतिम संस्कार किया गया।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासुब्रमणियन की पीठ ने सात अक्टूबर को उत्तर प्रदेश सरकार को एक हलफनामा दाखिल करने का निर्देश दिया था जिसमे गवाहों को दिये गये संरक्षण का विवरण हो और यह भी बताया जाये कि क्या पीड़ित के परिवार ने अपना प्रतिनिधित्व करने के किसी वकील का चुनाव किया है।
न्यायालय ने सुझाव मांगे हैं कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के समक्ष लंबित कार्यवाही का दायरा किस तरह बढ़ाया जा सकता है।
हाथरस की इस लोमहर्षक घटना के बाद एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी ने भी उच्चतम न्यायलाय में याचिका दायर कर दलित पीड़ित का जबरन अंतिम संस्कार करने के लिेये जिम्मेदार पुलिस अधिकारियों और जिलाधिकारी के खिलाफ जांच का अनुरोध किया है।
याचिकाकर्ता, चंद्र भान सिंह, एक सेवानिवृत्त न्यायिक अधिकारी हैं और उन्होंने 25 साल से भी अधिक समय तक न्यायिक व्यवस्था की सेवा की है।
याचिका में राज्य पुलिस से इतर किसी अन्य एजेन्सी से इस मामले की जांच कराने का अनुरोध किया गया है। इसमे यह अनुरोध भी किया गया है अगर पीड़ित की मृत देह के साथ कथित रूप से अमर्यादित और अमानवीय व्यवहार के आरोप सही पाये जाते हैं तो संबंधित अधिकारियों के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज की जानी चाहिए।
इसके बाद, उत्तर प्रदेश सरकार ने भी इस मामले में एक हलफनामा दाखिल किया और इसकी जांच सीबीआई को सौंपने का समर्थन किया। राज्य सरकार ने अपने हलफनामे में इस मामले में उसका आचरण अनवरत रहा है कि पीड़ित के परिवार ने शव के अंतिम संस्कार की सहमति दी थी और राज्य सरकार को बदनाम करने के लिये राजनीतिक और मीडिया का अभियान चल रहा है।
हाथरस के गांव में 14 सितंबर को 19 वर्षीय दलित लड़की से कथित रूप से सामूहिक बलात्कार और बर्बरता की गयी थी। इस लड़की की 29 सितंबर को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में मृत्यु हो गयी थी। पीड़ित का पार्थिव शरीर जब उसके पैतृक गांव ले जाया जा रहा था तो उप्र पुलिस और प्रशासन ने परिवार की सहमति या उनकी उपस्थिति के बगैर ही रात के अंधरे में उसके शव की कथित रूप से जबरन अंत्येष्टि कर दी।
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इस घटना का स्वत: संज्ञान लिया है और यहां पर यह मामला 12 अक्टूबर को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है।
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