हाथरस बलात्कार कांड के सिलसिले में उच्चतम न्यायालय में एक नयी जनहित याचिका दायर की गयी है। इसमें इस कांड से जुड़े पुलिस तथा प्रशासनिक अधिकारियों के खिलाफ भारतीय दंड संहिता और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियां (अत्याचारों की रोकथाम)कानून के तहत मामला दर्ज करने का अनुरोध किया गया है।
इस जनहित याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि पुलिस अधिकारियों, अस्पताल के कर्मचारियों और मेडिकल अधिकारियों तथा अन्य सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ‘साक्ष्य नष्ट करने’ और ‘आरोपियों को संरक्षण देने’ में उनकी कथित भूमिका के लिये दंडात्मक अपराधों के लिये मामला दर्ज करने का निर्देश दिया जाये।
सामाजिक कार्यकर्ता चेतन जनार्दन कांबले ने इस याचिका में कहा है, ‘‘हाथरस की घटना बहुत ही हतप्रभ करने वाली है क्योंकि निचली जाति की एक महिला के साथ हुये जघन्य अपराध पर पर्दा डालने में वे लोग ही संलिप्त हैं जिन्हें कानून का शासन बनाये रखने की सांविधानिक जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इस अपराध में बुरी तरह जख्मी हुयी इस महिला की बाद में अस्पताल में मृत्यु हो गयी।
याचिका में कहा गया है कि राज्य के अधिकारियों, पुलिस, जिला प्रशासन या सरकारी अस्पताल के अधिकारियों की भूमिका स्पष्ट है। इसलिए जरूरी है कि ऐसे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाये ताकि कानून के शासन के प्रति लोगों का विश्वास कम नहीं हो।
सामाजिक कार्यकर्ता चेतन जनार्दन कांबले ने इस याचिका में कहा है,
‘‘हाथरस की घटना बहुत ही हतप्रभ करने वाली है क्योंकि निचली जाति की एक महिला के साथ हुये जघन्य अपराध पर पर्दा डालने में वे लोग ही संलिप्त हैं जिन्हें कानून का शासन बनाये रखने की सांविधानिक जिम्मेदारी सौंपी गयी है। इस अपराध में बुरी तरह जख्मी हुयी इस महिला की बाद में अस्पताल में मृत्यु हो गयी।
याचिका में कहा गया है कि राज्य के अधिकारियों, पुलिस, जिला प्रशासन या सरकारी अस्पताल के अधिकारियों की भूमिका स्पष्ट है। इसलिए जरूरी है कि ऐसे लापरवाह अधिकारियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाये ताकि कानून के शासन के प्रति लोगों का विश्वास कम नहीं हो।
याचिका के अनुसार इस सिरे से सामने आयी खबरों से इसमें ‘साक्ष्य नष्ट करने’ में राज्य सरकार के अधिकारियों की कथित भूमिका और संलिप्तता का पता चलता है। याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि ऐसा लगता है कि ये अधिकारी आरोपी व्यक्तियों को बचा रहे थे।
याचिका में इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि कथित सामूहिक बलात्कार की घटना के बाद अलीगढ़ के सरकारी अस्पताल, जहां पीड़ित को ले जाया गया था, ने इस महिला के साथ यौन हिंसा के स्पष्ट संकेत मिलने के बावजूद स्वैब और दूसरे जरूरी नमूने एकत्र नहीं किये। फारेंसिक परीक्षण भी काफी देर से किया गया जिसका नतीजा यह हुआ कि वीर्य के निशान नही मिले।
याचिका के अनुसार, यही नहीं, बलात्कार के मामले की जांच पूरी होने से पहले ही कई उच्च अधिकारियों ने सार्वजनिक बयान देकर बलात्कार होने के अपराध से इंकार कर दिया। याचिका में कहा गया है कि इससे ‘राज्य पुलिस ओर आरोपियों के बीच सांठगांठ के साफ संकेत’ मिलते हैं।
बुरी तरह जख्मी पीड़ित की मृत्यु के बाद पुलिस अधिकारियों द्वारा आधी रात में उसकी अंत्येष्टि करना एक और शर्मनाक कदम था और इससे ‘‘अपराध की जांच करने की बजाये उसे दबाने में उनकी संलिप्ता होने की बू आती है।’’
याचिका में आगे कहा गया है, ‘‘राज्य की पुलिस और दूसरे सरकारी अधिकारियों का यह अक्षम्य अपराध है जिसने पीड़ित के परिवार को उनका अंतिम संस्कार करने के अधिकार से वंचित करना और कुछ नहीं बल्कि आत्मा अनादर है।’’
याचिका के अनुसार उप्र सरकार ने दावा किया था कि कानून व्यवस्था की किसी भी अप्रिय स्थिति को टालने के लिये पीड़ित का अंतिम संस्कार रात में उसके परिवार के सदस्यों की उपस्थिति में किया गया था लेकिन इस कदम से साक्ष्यों के नष्ट होने और निष्पक्ष जांच में बाधा आने का कोई बचाव नहीं है।
याचिका में कहा गया है कि इस लोमहर्षक घटना के मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के दुर्भावना पूर्ण रवैये के संकेतों को देखते हुये ही इलाहाबाद उच्च न्यायालय की लखनऊ बेंच ने स्वत: ही इसका संज्ञान लिया है।
याचिका अनुरोध किया गया है कि लापरवाही करने वाले अधिकारियों और नेताओं, ‘भले ही कितने भी प्रभावशाली क्यों नहीं हों’, के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने और भारतीय दंड संहिता की धारा 166ए, 193, 201, 202, 203, 212, 217, 153ए और 339 तथा अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार की रोकथाम) कानून की धारा 3(2) और 4 के तहत दंडनीय अपराध के मामले दर्ज करने का निर्देश दिया जाये।
इसके अलावा, याचिका में इस घटना की जांच असंदिग्ध निष्ठा वाले स्वतंत्र विशेष कार्यबल से कराने और इस मामले की सुनवाई लंबित होने के दौरान गवाहों को सीआरपीएफ की सुरक्षा प्रदान करने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है।
यह याचिका अधिवक्ता एसबी तेलेकर और कार्तिक जयशंकर ने तैयार की है जिसे अधिवक्ता विपिन नायर के माध्यम से दायर किया गया है।
और अधिक पढ़ने के लिए नीचे दिये गए लिंक पर क्लिक करें