कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को राज्य में मुस्लिम छात्राओं द्वारा दायर याचिकाओं के एक बैच को एक बड़ी पीठ के पास भेजा, जिसमें दावा किया गया था कि उन्हें सरकारी आदेश के कारण कॉलेजों में प्रवेश करने की अनुमति नहीं दी जा रही है जो हिजाब (सिर पर स्कार्फ) पहनने पर प्रभावी रूप से प्रतिबंध लगाते हैं।
जस्टिस कृष्णा एस दीक्षित ने मामले को बड़ी बेंच को रेफर करना जरूरी समझा।
अदालत ने कहा, "मुझे लगता है कि इस मामले में बड़ी बेंच के विचार की आवश्यकता है।"
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने अदालत से छात्रों को अंतरिम राहत देने का आग्रह किया, जबकि मामला एक बड़ी पीठ को भेजा गया था।
"उनके पास (शैक्षणिक वर्ष के) केवल दो महीने बचे हैं। उन्हें बाहर न करें ... हमें एक ऐसा रास्ता खोजने की जरूरत है जिससे कोई भी बच्ची शिक्षा से वंचित न रहे ...आज जो बेहद जरूरी है, वह यह है कि शांति आए, कॉलेज में संवैधानिक बिरादरी लौट आए। दो महीने तक कोई आसमान नहीं गिरेगा..."
कॉलेज विकास समिति की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता साजन पूवैया ने हालांकि दलील दी कि रिट याचिकाओं में उठाए गए सवाल पूरी तरह से न्यायमूर्ति दीक्षित के रोस्टर के तहत आते हैं। इसलिए उन्होंने कोर्ट से पक्षकारों को सुनने के बाद मामले का फैसला करने का आग्रह किया।
महाधिवक्ता प्रभुलिंग नवदगी ने अंतरिम राहत दिए जाने का विरोध किया। उन्होंने प्रस्तुत किया,
"मेरा निवेदन यह है कि मेरे विद्वान मित्र (कामत) ने अपनी दलीलें पूरी कर ली हैं। अब, यह राज्य को बहस करने के लिए है और फिर यह न्यायालय को फैसला करना है ... मैं कहना चाहता था कि याचिकाएं गलत हैं। उन्होंने जीओ पर सवाल उठाया है। प्रत्येक संस्थान को स्वायत्तता दी गई है। राज्य कोई निर्णय नहीं लेता है।"
अदालत ने अंततः छात्र समुदाय और जनता से बड़े पैमाने पर सरकारी आदेश के विरोध के मद्देनजर शांति और शांति बनाए रखने की अपील की।
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