संघ लोक सेवा आयोग ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि उसके लिये यूपीएससी की प्रारंभिक परीक्षा अक्टूबर से आगे स्थगित करना संभव नही होगा
यूपीएससी की ओर से अधिवक्ता नरेश कौशिक ने न्यायमूर्ति एएम खानविलकर, न्यायमूर्ति बीआर गवई और न्यायमूति कृष्ण मुरारी की पीठ को सूचित किया कि प्रारंभिक परीक्षा को चार अक्टूबर से आगे स्थगित करना संभव नही होगा क्योकि ‘‘इससे सरकार के चार विभागों की जरूरतों को पूरा करने के लिये परीक्षा का उद्देश्य प्रभावित होगा।"
‘‘याचिकाकर्ताओं से सहमत होना असंभव है। इसका आयोजन 30 सितबर को होना था। इसे चार अक्टूबर के लिये स्थगित किया गया। इसे और टालने से सरकार के चार विभागों के लिये परीक्षायें आयोजित करने के उद्देश्य निरर्थक हो जायेगा।’’यूपीएससी के वकील ने कहा
तीन न्यायाधीशों की पीठ ने अब यूपीएसएस से कहा है कि वह कल तक याचिका पर जवाब में अपना हलफनामा दाखिल करे ताकि इस पर 30 सितंबर को फिर सुनवाई की जा सके
अधिवक्ता अलख आलोक श्रीवास्तव के माध्यम से दायर याचिका में न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि यूपीएससी द्वारा जारी परिवर्तित कार्यक्रम रद्द किया जाये। याचिका में कोविड-19 महामारी का प्रकोप कम होने तक दो या तीन महीने के लिये ये परीक्षा स्थगित करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।
इससे पहले, न्यायमूर्ति एएम खानविलकर और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने याचिकाकर्ताओं को इस याचिका की अग्रिम प्रति यूपीएससी और केन्द्र सरकार को देने की स्वतंत्रता प्रदान की थी।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ये परीक्षायें आयोजित करने के यूपीएससी के निर्णय से संविधान के अनुच्छेद 19 (1)(जी) में प्रदत्त जन सेवा के लिये पेशा चुनने के अधिकारों का हनन होता है।
याचिका में बीमारी और मृत्यु का जिक्र करते हुये याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि वे चार अक्टूबर को होने वाली परीक्षाओं में शामिल नहीं हो सकते।
इनका यह भी कहना है कि यूपीएससी का निर्णय आवश्यकता की परख के मामले में खरा नहीं उतरता है।
याचिका में यह भी कहा गया है कि यह भर्ती के लिये परीक्षा है, और इस मामले में यूपीएससी की परीक्षा शैक्षणिक परीक्षा से पूरी तरह भिन्न है। अत: इस परीक्षा को स्थगित करने की स्थिति में शैक्षणिक सत्र में विलंब होने जैसा सवाल पैदा नहीं होगा।
याचिका के अनुसार, ‘‘याचिकाकर्ताओं सहित करीब छह लाख अभ्यर्थियों के ‘संघ लोक सेवा आयोग (प्रारंभिक) परीक्षा’ में शामिल होने की उम्मीद है जो भारत के 72 शहरों के कुछ केन्द्रों में सात घंटे की ऑफलाइन परीक्षा है। इस बीच, भारत में कोविड-19 मामलों में चिंताजनक रफ्तार से वृद्धि हो रही है। इस समय प्रतिदिन 80 हजार से ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं। कोविड-19 महामारी पहले ही भारत की 40 लाख से ज्यादा आबादी को अपनी चपेट में ले चुकी है और हर दिन हालात खराब ही हो रहे है।’’
यही नहीं, याचिका में कहा गया है कि अगर ये परीक्षायें पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार ही आयोजित हुयीं तो वंचित तबके के अभ्यर्थिों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय होगा और वे वंचित हो जायेंगे।
याचिका के अनुसार, ‘‘इस परिवर्तित कार्यक्रम के माध्यम से हो रहा वर्ग आधारित भेदभाव याचिकाकर्ताओं और उन्ही की तरह के अन्य अभ्यर्थियों के संविधान के अनुच्छेद 14 में प्रदत्त मौलिक अधिकारों का हनन है।’’
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश जैसे राज्यों ने पहले ही अपने यहां राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं को कोविड-19 की वजह से अनिश्चित काल के लिये रद्द कर दिया है।
इसके अलावा, भारत सरकार के केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल में सेवारत एक अधिकारी के पिता ने भी न्यायालय में एक आवेदन दायर किया है।
आवेदक ने कहा है कि उसका बेटा सरकारी अधिकारी है और वह भी सिविल सेवा की परीक्षा में शामिल होने के लिये तैयार था लेकिन कोविड-19 की वजह से अतिरिक्त काम के दबाव ने उसकी तैयारियों को प्रभावित किया है।
इस मामले में आवेदन दायर करने आवेदक ने तर्क दिया है कि इस महामारी के दौरान केन्द्रीय सशस्त्र पुलिस बल के समक्ष आयी चुनौतियों और काम के अतिरिक्त दबाव ने यूपीएससी के लिये उसकी तैयारियों पर ही असर नहीं डाला बल्कि उन अभ्यर्थियों की तुलना में उसके लिेये प्रतिकूल परिस्थितियां पैदा कर दीं जो घर पर रह कर ऑनलाइन स्रोतों के माध्यम से तैयारियां कर रहे होंगे।
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