सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि जाति प्रमाण पत्र की जांच फिर से तभी शुरू की जा सकती है जब कोई धोखाधड़ी हो या जब उन्हें उचित जांच के बिना जारी किया गया हो (जे चित्रा बनाम जिला कलेक्टर और एसडीवीसी तमिलनाडु)।
न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति अनिरुद्ध बोस की खंडपीठ ने कहा कि जांच समितियों द्वारा जाति प्रमाणपत्रों के सत्यापन का उद्देश्य झूठे और फर्जी दावों से बचना है।
निर्णय मे कहा गया है कि, "जाति प्रमाण पत्र के सत्यापन के लिए बार-बार पूछताछ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए हानिकारक होगी। जाति प्रमाण पत्र की जांच फिर से तभी खोली जा सकती है जब वे धोखाधड़ी से दूषित हों या जब उन्हें उचित जांच के बिना जारी किया गया हो।"
निर्णय अनुसूचित जाति सरकारी अधिकारी, जे चित्रा (अपीलकर्ता) द्वारा अपील पर दिया गया था, जिसके खिलाफ डॉ अम्बेडकर सेवा संघ की शिकायत के आधार पर उनके जाति प्रमाण पत्र के संबंध में जांच की गई थी।
जिला स्तरीय सतर्कता समिति ने शुरू में अपीलकर्ता के पक्ष में समुदाय प्रमाण पत्र को बरकरार रखा था, जिससे पता चलता है कि वह अनुसूचित जाति समुदाय से है। वर्ष 1999 में जिला स्तरीय सतर्कता समिति के निर्णय को किसी मंच में चुनौती नहीं दी गई।
बाद में एक और शिकायत दर्ज की गई और उसके आधार पर फिर से पूछताछ की गई। मामले की सुनवाई पहले राज्य स्तरीय जांच समिति ने की जिसने मामले को जिला सतर्कता समिति को भेज दिया। प्रमाण पत्र रद्द करने से पहले जिला सतर्कता समिति ने सुनवाई की।
उसने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष ऐसी अस्वीकृति के खिलाफ अपील की जिसने उसकी अपील को खारिज कर दिया। इसके चलते सुप्रीम कोर्ट के समक्ष वर्तमान याचिका दायर की गई।
शीर्ष अदालत ने नोट किया कि जिला सतर्कता समिति द्वारा अपीलकर्ता के पक्ष में जारी सामुदायिक प्रमाण पत्र की मान्यता अंतिम हो गई थी और राज्य स्तरीय जांच समिति के पास मामले को फिर से खोलने और जिला स्तरीय सतर्कता समिति द्वारा मामले को नए सिरे से विचार के लिए भेजने का अधिकार क्षेत्र नहीं था।
इस संबंध में कोर्ट ने 12 सितंबर 2007 के सरकारी आदेश पर भरोसा जताया।
इसलिए, न्यायालय ने कहा कि इस निष्कर्ष के मद्देनजर कि राज्य स्तरीय जांच समिति के पास जाति प्रमाण पत्र से संबंधित मामले को फिर से खोलने की शक्ति नहीं है, जिसे जिला सतर्कता समिति द्वारा वर्ष 1999 में उसके खिलाफ दायर किसी अपील के बिना अनुमोदित किया गया था। आदेश, 2008 में जिला सतर्कता समिति द्वारा दर्ज किए गए निष्कर्षों की शुद्धता से संबंधित प्रस्तुतियों से निपटने के लिए आवश्यक नहीं है।
इस प्रकार, इसने अपील की अनुमति दी और जिला सतर्कता समिति के 2008 के आदेश को रद्द कर दिया।
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