Kunal Kamra and Bombay High Court 
वादकरण

आईटी नियम संशोधन पैरोडी, व्यंग्य को सुरक्षा प्रदान नहीं करता है: कुणाल कामरा की याचिका पर बॉम्बे हाईकोर्ट

जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने यह भी कहा कि चुनौती अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है और इसलिए, याचिकाकर्ता के ठिकाने की जांच नहीं की जाएगी।

Bar & Bench

बॉम्बे हाईकोर्ट ने सोमवार को कहा कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम, 2021 (आईटी नियम 2021) में हालिया संशोधनों को चुनौती देने वाले स्टैंड अप कॉमेडियन कुणाल कामरा द्वारा दायर याचिका सुनवाई योग्य है।

जस्टिस जीएस पटेल और जस्टिस नीला गोखले की खंडपीठ ने कहा कि चुनौती अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर आधारित है और इसलिए, याचिकाकर्ता के ठिकाने की जांच नहीं की जाएगी।

कामरा के अधिकार क्षेत्र को चुनौती देने वाली केंद्र सरकार की दलील के जवाब में पीठ ने कहा, ''लोकस को चुनौती देने में हमारी कोई दिलचस्पी नहीं है।

विशेष रूप से, न्यायालय ने प्रथम दृष्टया राय व्यक्त की कि नियम पैरोडी और व्यंग्य जैसी सरकार की निष्पक्ष आलोचना को संरक्षण प्रदान नहीं करते हैं।

न्यायमूर्ति पटेल ने मौखिक रूप से टिप्पणी की, "आप पैरोडी, व्यंग्य को प्रभावित नहीं कर रहे हैं, यही आपका हलफनामा कहता है। यह वह नहीं है जो आपके नियम कहते हैं। कोई सुरक्षा प्रदान नहीं की गई है। हमें देखना होगा।"

कोर्ट ने यह भी कहा कि यह तर्क कि चुनौती प्री-मेच्योर है, भी गलत है।

केंद्र सरकार ने कहा था कि अधिसूचना अभी प्रकाशित नहीं हुई है।

अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल अनिल सिंह ने कहा, "अधिसूचना को अधिसूचित नहीं किया गया है। एक बार यह हो जाने के बाद, वे किसी भी समय स्थानांतरित हो सकते हैं। वे छुट्टी के दौरान भी किसी भी समय स्थानांतरित हो सकते हैं।"

कोर्ट ने कहा, "प्रश्न अपरिपक्व होना भी गलत है, क्योंकि नियमों को अधिसूचित कर दिया गया है।"

इसके बाद मामले को 27 अप्रैल को सुबह 10 बजे विचार के लिए सूचीबद्ध किया गया था।

दूरसंचार सेवा प्रदाताओं और सोशल मीडिया बिचौलियों को तब ऐसी सामग्री के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी, जिसमें विफल होने पर वे सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 79 के तहत सुरक्षित बंदरगाह सुरक्षा खो देंगे।

इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय (MeitY) के माध्यम से दायर हलफनामे में कहा गया है कि झूठी सूचनाओं का लोकतांत्रिक संस्थानों में जनता के विश्वास को कमजोर करने का भी प्रभाव पड़ता है, जो चुनी हुई सरकार के इरादों पर संदेह पैदा करता है।

केंद्र सरकार ने याचिका का विरोध करते हुए अपने हलफनामे में कहा कि झूठी और भ्रामक जानकारी चुनावी लोकतंत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।

सीरवई ने प्रस्तुत किया कि हलफनामा कामरा द्वारा उनकी याचिका में उठाए गए "जबरदस्त सवालों" का जवाब देने में विफल रहा है।

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IT Rules Amendment doesn’t seem to offer protection to parody, satire: Bombay High Court in Kunal Kamra plea