यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (POCSO Act) के तहत एक मामले में जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए, झारखंड उच्च न्यायालय ने इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया कि जांच अधिकारी ने पीड़िता को चार्जशीट गवाह नहीं बनाया। (अनिल कुंवर बनाम झारखंड राज्य)।
न्यायमूर्ति आनंद सेन ने कहा कि निचली अदालत ने झारखंड के पुलिस महानिदेशक समेत मामले में पीड़िता को अदालत में गवाह के रूप में पेश करने के लिए पुलिस अधिकारियों को पत्र लिखा था। ऐसा करने में अधिकारियों की विफलता पर, कोर्ट ने कहा,
"ये तथ्य न्यायालय के मन में संदेह पैदा करते हैं। क्या पुलिस प्राधिकरण पीड़िता को गवाह बॉक्स में नहीं लाकर अभियुक्त व्यक्तियों का पक्ष ले रहा है, प्रथम दृष्टया इस न्यायालय को ऐसा लगता है।"
कोर्ट ने कहा कि इस तरह की निष्क्रियता अदालत की अवमानना है।
आदेश मे कहा कि, “यदि चार्जशीट में मुख्य व्यक्ति को गवाह के रूप में छोड़कर इस प्रकार की जांच की जाती है तो सवाल उठना लाजिमी है। इसके अलावा, जब अदालत ने पीड़िता को पेश करने का निर्देश दिया, तो इन अधिकारियों ने अपने कान बंद कर लिए और अदालत के निर्देशों का भी जवाब नहीं दिया। अदालत का पत्र केवल एक पत्र नहीं है। उक्त पत्र में जो उल्लेख किया गया है, उसे करने के लिए यह प्राधिकारी को एक निर्देश है। पत्र न्यायिक आदेश से पहले है। ऐसा न करके और उन निर्देशों का जवाब न देकर प्रथम दृष्टया इस न्यायालय को लगता है कि अधिकारियों ने न्यायालय की अवमानना की है।“
कोर्ट ने एक आरोपी की भारतीय दंड सहिंता के तहत धारा 341 (गलत तरीके से रोकना), 323 (स्वेच्छा से चोट पहुंचाना), 376 (बलात्कार) और 511 (आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध करने का प्रयास) के साथ POCSO अधिनियम की धारा 8 (यौन उत्पीड़न के लिए सजा) की जमानत अर्जी पर सुनवाई करते हुए ये टिप्पणियां कीं ।
पीड़ित लड़की की उम्र करीब 13 साल है और उसका बयान एक मजिस्ट्रेट के समक्ष दर्ज किया गया था।
हालांकि, याचिकाकर्ता के वकील ने अदालत के ध्यान में लाया कि पीड़िता से मामले में पूछताछ नहीं की गई थी और न ही उसे चार्जशीट गवाह बनाया गया था।
तथ्यों को सुनने के बाद, कोर्ट ने कहा कि अधिकारियों के कृत्यों को वास्तविक नहीं कहा जा सकता है।
इसलिए, कोर्ट ने झारखंड पुलिस के महानिदेशक को मामले की जांच करने और निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर देने का निर्देश दिया:
"1. पीड़िता को चार्जशीट गवाह क्यों नहीं बनाया गया।
2. पीड़ित को चार्जशीट गवाह न बनाने के लिए कौन जिम्मेदार है।
3. यदि डीजीपी को पता चलता है कि अब तक कोई जिम्मेदारी तय नहीं हुई है, तो डीजीपी जिम्मेदारी तय करेंगे और इस कोर्ट को जानकारी देंगे और वह इस कोर्ट को यह भी बताएंगे कि उन लोगों के खिलाफ क्या कदम उठाए गए हैं, जिनकी कमियों के कारण पीड़िता को चार्जशीट गवाह के तौर पर नहीं दिखाया गया है।
4. पुलिस अधीक्षक, साहेबगंज और डीआईजी, दुमका ने न्यायालय के निर्देशों / पत्रों का जवाब क्यों नहीं दिया है जो अधिकारियों को पीड़ित को अदालत के गवाह के रूप में पेश करने का निर्देश देता है।
5. आदेश दिनांक 16.01.2020 और पत्र दिनांक 27.01.2020 के अनुसरण में पीड़ित को निम्न न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए स्वयं डीजीपी ने क्या कदम उठाए हैं, जिसे नीचे की अदालत ने पीड़ित को पेश करने के लिए संबोधित किया है।
6. डीजीपी दोषी अधिकारियों के खिलाफ क्या कदम उठाने का इरादा रखते हैं जिन्होंने पीड़िता को अदालत में पेश नहीं किया है ताकि उसके साक्ष्य दर्ज किए जा सकें।
7. क्यों न जांच अधिकारी, प्रभारी अधिकारी मिर्जाचौकी पीएस साहिबगंज, पुलिस अधीक्षक, साहेबगंज और डीआईजी, दुमका के खिलाफ जानबूझकर अदालत के आदेशों का उल्लंघन करने के लिए अवमानना कार्यवाही शुरू की जाए, जिसमें निचली अदालत ने उन्हें निर्देश दिया था पीड़िता को गवाह के रूप में पेश करें।"
कोर्ट इस मामले पर चार हफ्ते में फिर सुनवाई करेगी।
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