NLSIU, Karnataka HC 
वादकरण

कर्नाटक HC ने NLSIU छात्र & जज के बेटे को राहत दी:विश्वविद्यालय हमारे बच्चो के साथ व्यवहार कर रहा है न कि दूसरो की संपत्ति से

न्यायालय ने स्वीकार किया किसी अन्य के साहित्य की चोरी बहुत ही गंभीर मामला है लेकिन उसने टिप्पणी की कि ऐसी कोई सामग्री रिकार्ड पर नही है जिससे पता चले कि संबंधित विषय के शिक्षक को लेख चोरी का सबूत मिला

Bar & Bench

कर्नाटक उच्च न्यायालय ने बुधवार को एनएलएसआईयू, बेंगलुरू का वह आदेश निरस्त कर दिया जिसमें कानून के एक छात्र को एक विशेष में फेल होने की वजह से अगले शैक्षणिक सत्र में प्रवेश देने से इंकार कर दिया था।

एनएलएसआईयू ने एक प्रोजेक्ट के लिये साहित्य चोरी करने के आधार पर इस छात्र को ‘एफ’ ग्रेड दिया था।

न्यायमूर्ति कृष्ण एस दीक्षित ने विश्वविद्यालय के आदेश निरस्त करते हुये कहा कि याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से अपना पक्ष रखने के लिये एक अवसर दिया जाना चाहिए था।

याचिकाकर्ता कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति पीबी बजंत्री का पुत्र है आर उसे 13 मार्च को बाल अधिकार कानून की परीक्षा में ‘एफ’ ग्रेड दिया गया था क्योंकि उसने अपने प्रोजेक्ट के लिये कथित रूप से साहित्य चोरी किया था।

यही नहीं, चौथे वर्ष में प्रोन्नति के लिये तीसरे त्रैमासिक की स्पेशन रिपीट परीक्षा में शामिल होने की भी अनुमति नही दी गयी थी। विश्वविद्यालय के इन फैसलों को याचिकाकर्ता ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी थी।

एनएलएसआईयू ने इस मामले में 17 अक्ट्रबर को अपनी आपत्तियां दाखिल की और दावा किया कि याचिकाकर्ता ने स्वंय ही ई मेल के माध्यम से साहित्यिक चोरी का मामला स्वीकार किया था।

संबंधित पक्षों को सुनने के बाद न्यायालय ने पहले बीए एलएलबी (आनर्स) के लिये 2009 के शैक्षणिक और परीक्षा नियमन के नियम III के उपबंध 4 का हवाला दिया जिसमे साहित्य या ग्रंथ चोरी के मामले से निबटने की प्रक्रिया दी गयी है। न्यायालय ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि इन नियमों में साहित्य चोरी को परिभाषित नहीं किया गया है, इसलिए उसकी राय थी कि इस शब्द को आम बोलचाल की भाषा में समझने की जरूरत है।

न्यायालय ने यह स्वीकार किया कि साहित्य चोरी करना बहुत ही गंभीर मामला है लेकिन साथ ही यह टिप्पणी की कि ऐसी कोई सामग्री रिकार्ड पर नहीं है जिससे यह पता चले कि संबंधित विषय के शिक्षक को साहित्य चोरी का साक्ष्य मिला था। यही नहीं, शिक्षक ने लिखित में इस मामले की सूचना विश्ववविद्वालय अनुदान आयाेग के अध्यक्ष के पास नही भेजी जो इस परीक्षा के नियमों के अंतर्गत जरूरी था।

न्यायालय ने इस तथ्य का भी जिक्र किया कि याचिकाकर्ता को कथित साहित्य चोरी की जानकारी उस वक्त मिली जब उसने अपनी परीक्षा का नतीजा घोषित नहीं किये जाने के बारे में विश्वविद्यालय की रजिस्ट्री से पूछताछ की। पीठ ने विश्वविद्यालय के इस आचरण का जिक्र करते हुये अपने आदेश मे कहा,

‘‘विश्वविद्यालय का यह कृत्य रिकार्ड पर उपलब्ध तथ्यों के आलोक में बहुत ही गंभीर त्रुटि है। तथाकथित ‘साहित्य चोरी’ नाम का यह सारा घटनाक्रम याचिकाकर्ता को अंधेरे में रखते हुये पाठ्यक्रम के शिक्षक और परीक्षा विभाग के बीच प्रत्यक्ष रूप में कुछ रहस्यमयी मेल के आदान प्रदान के आधार पर रचा हुआ है।’’

याचिकाकर्ता द्वारा विश्वविद्यालय को भेजे गये ईमेल का जिक्र करते हुये न्यायालय ने इस तथ्य का संज्ञान लिया कि ‘यह मेरी पहली साहित्य चोरी का मामला है’ जैसे इक्का दुक्का वाक्य इसमे थे। हालांकि, न्यायालय ने टिप्पणी की कि इस तरह के इक्का दुक्का वाक्यों को छात्र द्वारा साहित्य चोरी की स्वीकरोक्ति का सबूत नहीं माना जा सकता।

‘‘ऐसा इसलिए भी कि जब आप याचिकाकर्ता जैसे युवा के शैक्षणिक जीवन से जुड़े मामले को देख रहे हों तो प्रतिवेदनों में हल्के फुल्के और भारी भरकम शब्दों के बारे में उचित रियायत दी जानी चाहिए, प्रतिवादी विश्वविद्यालय द्वारा छात्र का कमजोर होने जैसी दलील की आड़ लेना न्यायोचित नहीं है।’’

इसके अलावा, न्यायालय ने एक विधि विश्वविद्यालय द्वारा याचिकाकर्ता के साथ किये गये अनुचित व्यवहार की भी आलोचना की। न्यायमूर्ति दीक्षित ने इस तथ्य पर भी खेद व्यक्त किया कि याचिकाकर्ता द्वारा दो मार्च को लिखित अनुरोध किये जाने के बावजूद विश्वविद्यालय ने उसे व्यक्तिगत रूप से अपना पक्ष रखने का अवसर नहीं प्रदान किया।

बाइबिल साहित्य में, कहते हैं कि ईश्वर ने भी ईडन गार्डेन में निषिद्ध फल का सेवन करने पर आदम और हव्वा को दंडित करने से पहले उन्हें अपना पक्ष रखने का अवसर दिया था, अगर याचिकाकर्ता को व्यक्तिगत रूप से अपना पक्ष रखने के लिये उचित अवसर दिया गया होता तो आसमान नही गिर जाता। वैसे भी प्रक्रियात्मक निष्पक्षता प्रतिवादी के लिये संवैधानिक रूप से अनिवार्य है क्योंकि वह संविधान के अनुच्छेद 12 के अंतर्गत राज्य के साधन की तरह है। यह उचित समय है कि राष्ट्रीय स्तर के प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय को यह याद दिलाया जाये कि वह दूसरों की संपत्ति से नही बल्कि हमारे बच्चों को देख रही है।
उच्च न्यायालय ने कहा

इन टिप्पणियों के आधार पर न्यायालय ने एनएलएसआईयू के आदेश निरस्त कर दिये। न्यायालय ने अपने आदेश का समापन करते हुये कहा कि प्रतिवादी विश्वविद्यालय को यह परमादेश जारी किया जाता है कि वह याचिकाकर्ता के प्रोजेक्ट का आकलन कर उसे अंक आबंटित करे, याचिकाकता्र उपस्थिति कम होने, यदि कोई है, के बाद भी आगे ले जाने के आधार पर पढ़ाई जारी रखेगा।

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University is dealing with our children and not others’ chattel: Karnataka High Court grants relief to NLSIU student and sitting judge's son