Reserve Bank of India (RBI) 
वादकरण

एससी से केन्द्र ने कहा: कोविड-19 समाधान पर RBI के 6 अगस्त के परिपत्र के तहत कर्ज चुकाने से राहत की अवधि 2 साल तक बढ़ सकती है

केन्द्र द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है, ‘‘मोरेटोरियम के दौरान ब्याज पर ब्याज की माफ करना वित्तीय प्रबंधन के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ होगा।’’

Bar & Bench

केन्द्र ने उच्चतम न्यायालय को सूचित किया है कि कोविड-19 महामारी के दौरान कर्ज वापसी से राहत और दूसरे विभिन्न उपायों के बारे में भारतीय रिजर्व बैंक के सर्कुलर में ऋण के भुगतान और ऋण पर ब्याज से संबंधित मुद्दों पर समुचित विचार किया गया है।’’

न्यायालय में दाखिल हलफनामे में केन्द्र ने उन तमाम उपायों पर प्रकाश डाला है जो रिजर्व बैंक ने विभिन्न प्रकार के ऋणदाताओं और कर्जदारों के लिये तैयार किये हैं।

रिजर्व बैंक के ये उपाय और संकटग्रस्त विभिन्न क्षेत्रों के लिये केन्द्र के राहत के अनेक उपाय उन समस्याओं के बारे में हैं जो याचिकाकर्ताओं ने मोरेटोरियम अवधि के दौरान कर्ज पर ब्याज वसूलने को न्यायालय में चुनौती देते समय रखे हैं।

न्यायालय ने ब्याज पर ब्याज की माफी के बारे में केन्द्र से पूछे गये सवाल पर उसने अपनी स्थिति स्पष्ट की है। केन्द्र द्वारा दाखिल हलफनामे में कहा गया है, ‘‘ मोरेटोरियम के दौरान ब्याज पर ब्याज की माफी वित्तीय प्रबंधन के बुनियादी सिद्धांत के खिलाफ होगा।’’
उच्चतम न्यायालय मे केंद्र का शपथ प्रस्तुत

केन्द्र ने यह हलफनामा उस समय दाखिल किया जब न्यायालय ने उसे इस मामले में स्पष्ट रवैया अपनाने की बजाये आरबीआई की आड़ लेने के लिये फटकार लगायी थी। सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने उस समय न्यायालय से कहा था कि सरकार का रूख रिजर्व बैंक के दृष्टिकोण से भिन्न नहीं होगा।


केन्द्र ने अपने इसी रूख को आधार बनाते हुये हलफनामे में कहा है कि वित्तीय क्षेत्र के लिये राहत उपायों की निगरानी वित्त मंत्रालय कर रहा है। राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन कानून के तहत प्राधिकारियों ने इसमें यह सोच कर दखल नहीं दिया कि शायद उनके पास नीतिगत फैसलों के जटिल मुद्दे से निबटने में दक्षता नहीं होगी जो ‘‘राष्ट्र और खासकर बैंकिंग सेक्टर की वित्तीय स्थिरता को’’ प्रभावित करते हैं।

हलफनामे में कहा गया है कि कोविड-19 महामारी शुरू होने के बाद से ही वित्त मंत्रालय ने कर्जदारों के सामने आ सकने वाली तमाम समस्याओं के निदान के लिये अनेक कदम उठाये हैं।

सरकार ने कहा कि उसने राष्ट्र की वित्तीय स्थितिरता, राजस्व पर अनपेक्षित वित्तीय बोझ, महामारी का अनिश्चित स्वरूप, अब तक दी गयी तमाम राहतों के निहितार्थो और संसाधनों की सीमा जैसे तमाम पहलुओं को ध्यान में रखते हुये अनेक उपाय किये हैं। हलफनामे में कहा गया है कि ये कदम विभिन्न सेक्टरों के सामने आ रही वित्तीय परेशानियों को कम करने के लिये उठाये गये हैं।

हलफनामे के अनुसार हितधारकों की अलग अलग श्रेणियों के तथ्य के मद्देनजर रिजर्व बैंक के राहत के संभावित कदमों के बारे में वित्त मंत्रालय निरंतर उसके संपर्क में था क्योंकि इस समस्या के समाधान को कोई एक तरीका नहीं हो सकता है।

केन्द्र ने स्पष्ट किया है कि मोरेटोरियम की अनुमति देने संबंधी रिजर्व बैंक का सर्कुलर एक अस्थाई व्यवस्था है जो कर्जदारों को राहत प्रदान करता है कि इस दौरान उसके खाते गैर निष्पादित संपत्ति (एनपीए) नहीं बनेंगे। अगर कर्जदार मोरेटोरियम का लाभ उठाने का चुनाव करता है तो उसके कर्ज की किस्तों और ब्याज का भुगतान स्थगित कर दिया जायेगा।



हलफनामे में स्पष्ट किया गया है कि इस व्यवस्था के अंतर्गत कर्जदारों को चुनिन्दा लाभ प्रदान करने के साथ ही बैंकों और ऋणदाताओं की जमा राशि पर भी कुछ बोझ डाला गया है।

हलफनामे में कहा गया है कि रिजर्व बैंक के छह अगस्त के सर्कुलर में अनेक मुद्दों पर ध्यान दिया गया है और कर्जदारों को अपेक्षित राहत प्रदान की गयी है। हलफनामें में आगे कहा गया है कि इस महामारी से प्रभावित विभिन्न सेक्टरों के लिये केन्द्र ने भी समय समय पर राहत के अनेक उपायों की घोषणा की है।

इस महामारी से प्रभावित विभिन्न सेक्टरों के लिये केन्द्र ने भी समय समय पर राहत के अनेक उपायों की घोषणा की है।

केन्द्र ने ब्याज पर ब्याज की माफी और इसकी शर्तो को बदलने का विरोध करते हुये कहा है कि यह उचित और न्यायसंगत नहीं होगा।

‘‘पूर्व निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार ही कर्ज का भुगतान करने के प्रयास करने वालों की बजाये मोरेटोरियम का लाभ लेने वालों के लिये बाद में शर्तो में बदलाव करना अनुचित और उन लोगों के प्रति अन्याय होगा जिन्होंने शुरू मे मोरेटोरियम का लाभ नहीं लिया या बाद में छोड़ दिया।’’
हलफनामे में कहा गया

कोविड-19 के असर को कम करने के लिये रिजर्व बैंक के समाधान उपायों का विवरण देते हुये केन्द्र ने कहा है कि राहत के लिये दिया गया कोई भी मोरेटोरियम एक समय पर खत्म होना है। अत: राष्ट्र की अर्थव्यवस्था और वितीय स्थिति बनाये रखने के लिये अधिक स्थाई दीर्घकालीन समाधान की जरूरत है।

हलफनामे के अनुसार कर्जो को नया रूप प्रदान करने संबंधी रिजर्व बैंक के छह अगसत के सर्कुलर ने कर्ज देने वाली संस्थाओं को अपने कर्जदारों को दी जाने वाली राहत के बारे में निर्णय लेने की छूट देते हुये सभी श्रेर्णियों के कर्जदानों और ऋणदाताओं को ध्यान में रखा है।

रिजर्व बैंक का छह अगस्त का सर्कुलर बैंकों को अपने पात्रता रखने वाले कर्जदारो को समाधान योजना प्रदान करने की अनुमति देते है।

हलफनामे में आगे कहा गया है कि जिन कर्जदारों को यह भय है कि उनके खाते एनपीए हो जायेंगे, वे मोरेटोरियम की अवधि का लाभ उठाने का अनुरोध कर सकते है। रिजर्व बैंक के छह अगस्त के परिपत्र के अनुरूप बैंकों को दो साल तक का मोरेटोरियम प्रदान करने अधिकार है

बैक और कर्ज देने वाली संस्थान अपने ग्राहकों को जो लाभ दे सकते हैं उनके सार के बारे में हलफनामे मे कहा गया है:

‘‘रिजर्व बैंक के छह अगस्त के सर्कुलर अब प्रभावी है और बैंकों को कुछ शर्तो के साथ अपने कर्जदारों को कई तरह की राहत के माध्यम कोविड-19 संबंधी समस्याओं का समाधान करने और विशेष राहत देने का अधिकार है।’’ ये शर्ते हैं:

  1. ब्याज दर में बदलाव और ब्याज के रूप में देय राशि में कटौती,

  2. मोरेटोरियम या बगैर मोरेटोरियम के कर्ज की शेष अवधि का दो साल तक विस्तार,

  3. दंड स्वरूप ब्याज और दूसरे शुल्क माफ करना,

  4. ऋण अदायगी का नया कार्यक्रम बनाना

  5. एकत्र हुये ब्याज को भुगतान स्थगन कार्यक्रम के साथ नये कर्ज में परिवर्तित करना

  6. अतिरिक्त कर्ज की मंजूरी

केन्द्र ने हलफनामे में कहा है कि रिजर्व बैंक द्वारा उठाये गये इन कदमों और केन्द्र, विशेषकर वित्त मंत्रालय के विभन्न राहत उपायों के मद्देनजर न्यायालय में दायर याचिकाओं में मांगी गयी राहत दी जा चुकी है और इस समस्या पर समुचित ध्यान दिया गया है।

उच्चतम न्यायालय इस मामले में बुधवार को आगे सुनवाई करेगा।

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Loan moratorium is extendable up to two years under RBI's August 6 circular on COVID-19 resolution framework: Centre tells Supreme Court