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वादकरण

मद्रास हाईकोर्ट ने NDPS केस में झूठे सबूत देने के लिए 3 पुलिसवालों पर ₹10 लाख का जुर्माना लगाया

कोर्ट ने यह आदेश एक ऐसे आदमी को बरी करते हुए दिया, जिसे एक स्पेशल कोर्ट ने कथित तौर पर 24 किलोग्राम गांजा रखने के आरोप में दोषी ठहराया था।

Bar & Bench

मद्रास हाईकोर्ट की मदुरै बेंच ने हाल ही में तीन पुलिस अधिकारियों पर नारकोटिक्स केस में सबूत गढ़ने और झूठी गवाही देने के लिए ₹10 लाख का जुर्माना लगाया है।

जस्टिस केके रामकृष्णन ने पाया कि अधिकारियों ने नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटेंस (NDPS) एक्ट के तहत गलत सज़ा दिलवाने की साज़िश रची थी।

Justice KK Ramakrishnan

कोर्ट ने एक ऐसे आदमी को बरी करते हुए यह आदेश दिया, जिसे एक स्पेशल कोर्ट ने कथित तौर पर 24 किलोग्राम गांजा रखने के आरोप में दोषी ठहराया था। उसे दस साल की कड़ी कैद और ₹1 लाख का जुर्माना लगाया गया था।

हाईकोर्ट ने कहा कि प्रॉसिक्यूशन की कहानी झूठी थी और भरोसेमंद सबूतों से साबित नहीं होती थी।

जस्टिस रामकृष्णन ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने "ट्रायल कोर्ट के सामने झूठे सबूत देकर किसी भी तरह से सज़ा दिलवाने के लिए मिलकर साज़िश रची थी।" कोर्ट ने कहा कि पूरा मामला मनगढ़ंत दस्तावेज़ों और जांच अधिकारियों की गवाही में विरोधाभासों पर आधारित था।

फैसले के अनुसार, जिस सब-इंस्पेक्टर को गुप्त सूचना मिली थी, उसने दावा किया कि उसने इसे हाथ से लिखा था। हालांकि, कोर्ट में पेश की गई रिपोर्ट टाइप्ड थी। एक और अधिकारी ने कहा कि उसने दस्तावेज़ पर साइन किए थे, जबकि सबूतों से पता चला कि असल में किसी दूसरे अधिकारी ने साइन किए थे।

जज ने कहा, "यह दिखाता है कि ट्रायल कोर्ट के सामने झूठे सबूत दिए गए थे।"

कोर्ट ने कहा कि ऐसा बर्ताव आरोपी के निष्पक्ष जांच और ट्रायल के मौलिक अधिकार का गंभीर उल्लंघन है।

फैसले में कहा गया है, "प्रॉसिक्यूशन न केवल सेक्शन 42 का पालन साबित करने में नाकाम रहा, बल्कि झूठे सबूत पेश करके सज़ा दिलवाने की भी कोशिश की।"

जस्टिस रामकृष्णन ने कहा कि विरोधाभास "झूठे सबूतों के आधार पर सज़ा दिलवाने के लिए गवाहों के बीच एक नापाक गठबंधन" दिखाते हैं। उन्होंने तीनों अधिकारियों को एक महीने के अंदर आरोपी को संयुक्त रूप से ₹10 लाख का मुआवज़ा देने का निर्देश दिया।

कोर्ट ने चेन्नई के पुलिस महानिदेशक को भी अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई शुरू करने का आदेश दिया।

इसमें कहा गया है, "अथॉरिटी इस फैसले में दिए गए नतीजों से प्रभावित हुए बिना स्वतंत्र रूप से जांच करेगी।"

DGP को एक महीने के अंदर जांच पूरी करने का निर्देश दिया गया।

वकील जी करुपसामी पांडियन ने अपीलकर्ता का प्रतिनिधित्व किया।

[फैसला पढ़ें]

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Madras High Court slaps ₹10 lakh fine on 3 cops for false evidence in NDPS case