अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने उच्चतम न्यायालय से कहा है कि न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने से यौन हिंसा के मामलों में न्यायाधीशों की गैर सहानुभूति वाले दृष्टिकोण में सुधार लाने में मदद मिले सकती है।
वेणुगोपाल मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय द्वारा यौन हिंसा के मामले में आरोपी को जमानत देते समय पीड़ित महिला से राखी बंधवाने की शर्त को लेकर उठे सवालों का जवाब दे रहे थे।
वेणुगोपाल ने मंगलवार अपने लिखित कथन में कहा, ‘‘न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों का प्रतिनिधित्व बढ़ाये जाने से भी यौन हिंसा के मामलों में अधिक संतुलित और सहानुभूति वाले दृष्टिकोण में दीर्घकालीन मदद मिल सकती है। मसलन, इस न्यायालय में इस समय न्यायाधीशों के स्वीकृत 34 पदों में सिर्फ दो महिला न्यायाधीश ही हैं। देश में कभी भी कोई महिला प्रधान न्यायाधीश नहीं बनी है।
मप्र उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ शीर्ष अदालत की अधिवक्ता अपर्णा भट के नेतृत्व में नौ महिला अधिवक्ताओं ने याचिका दायर कर रखी है। इस याचिका में अन्य उच्च न्यायालयों द्वारा भी यौन हिंसा के मामलों पर विचार करते समय न्यायाधीशों के गैर सहानुभूति वाले नजरिये को उद्धृत किया गया है।
अपर्णा भट की याचिका में दलील दी गयी है कि उच्च न्यायालयों के इस तरह के निर्णय ऐसे जघन्य अपराधों को मखौल बना देंगे और ‘‘इस बार की पूरी संभावना है कि इस तरह की टिप्पणियां और निर्देश एक अपराध , जिसे कानून ने ऐसा माना है, को सामान्य घटना बना देंगे।’’
न्यायमूर्ति एएम खानविलकर की अध्यक्षता वाली पीठ ने इस तथ्य का संज्ञान लिया था कि मप्र उच्च न्यायालय के आदेश पर अमल हो चुका है लेकिन यह सवाल अभी भी है कि इस तरह के आदेशों से किस तरह बचा जा सकता है। इस संबंध में अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल को नोटिस जारी कर उनसे सुझाव मांगे गये थे।
‘‘उदाहरण के लिये, इस न्यायालय में इस समय न्यायाधीशों के स्वीकृत 34 पदों में सिर्फ दो महिला न्यायाधीश ही हैं। देश में कभी भी कोई महिला प्रधान न्यायाधीश नहीं बनी है।’’अटार्नी जनरल केके वेणुगोपाल
अटार्नी जनरल ने न्यायपालिका में महिलाओं की संख्या में वृद्धि के लिये निम्नलिखत सुझाव दिये:
1. निचली न्यायपालिका में महिला न्यायाधीशों की संख्या का पता लगाने के लिये आंकड़े एकत्र करने का निर्देश दिया जाये
2. अधिकरणों में महिला न्यायाधीशों की संख्या का पता लगाने के लिये उनके आंकड़े एकत्र करने का निदेश दिया जाये
3. सभी उच्च न्यायालयों द्वारा हर साल मनोनीत वरिष्ठ अधिवक्ताओं की संख्या का पता लगाने के लिये आंकड़े एकत्र करने का निर्देश दिया जाये
4.उच्चतम न्यायालय सहित न्यायपालिका के सभी स्तरों में महिलाओं का अधिक संख्या में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित किया जाये
उन्होंने यह कहा कि पीड़िता के स्थान पर न्यायाधीशों द्वारा खुद को रखकर पीड़ित के लिये न्यायिक सहानुभूति का भाव पैदा करने के उद्देश्य से बार और बेंच में लैंगिक संवेदनशीलता भी न्यायाधीशों के गैर सहानुभूति वाले दृष्टिकोण से बचने में मददगार होगी।
अटार्नी जनरल के अनुसार दो मुख्य क्षेत्रों में न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है:
1. जमानत और अग्रिम जमानत के लिये दिशा निर्देश बनाकर कानूनों में प्रदत्त प्रावधान के अनुरूप ही अदालत को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ताकि पहले से प्रतिपादित न्यायिक व्यस्थाओं के अनुरूप ही जमानत की शर्ते लगाई जायें
2.बार और बेंच को लैंगिक संवेदनशील बनाना- विशेषकर पीड़ित के प्रति न्यायिक सहानुभूति का भाव पैदा करने के बारे में न्यायाधीश खुद को पीड़िता के स्थान पर रखें और यह भी विचार करें कि अगर उनके अपनेपरिवार के किसी सदस्य के साथ ऐसा अपराध किया गया हो तो उनकी कैसी प्रतिक्रिया होगी।
वेणुगोपाल ने कहा कि उच्चतम न्यायालय महिलाओं के प्रति अपराध के मामलों में निम्नलिखित बिन्दुओं पर विचार कर सकता है:
1. जमानत की शर्तो में आरोपी और पीड़ित के बीच किसी तरह के संपर्क की अनिवार्यता नही करनी चाहिए।
2. जमानत की शर्तो में आरोपी द्वारा शिकायतकर्ता को किसी भी प्रकार के उत्पीड़न से संरक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए।
3. जब आवश्यक समझा जाये तो शिकायतकर्ता को सुना जा सकता है कि क्या किन्हीं विशेष परिस्थितियों में उसकी सुरक्षा के लिये कोई अतिरिक्त शर्त लगाने की जरूरत है।
4. जब भी जमानत दी जाये तो शिकायतकर्ता को तत्काल सूचित किया जा सकता है कि आरोपी को जमानत दे दी गयी है।
5.जमानत की शर्ते समाज में महिला की स्थिति जैसी घिसी पिटी बातों से इतरदंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के अनुरूप होनी चाहिए।
वेणुगोपाल ने सुझाव दिया है कि अदालतों को आरोपी और पीड़ित के बीच समझौता करने के सुझाव देने से बचना चाहिए।
‘‘अदालत को ऐसे मामले की सुनवाई की प्रक्रिया के किसी भी चरण पर पीड़ित और आरोपी को विवाह करके समझौता करने जैसे सुझाव देकर अपराध की गंभीरता को कम नही करना चाहिए क्योंकि यह अदालत के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।’’
वेणुगोपाल ने यह भी सुझाव दिया कि राष्ट्रीय न्यायिक अकादमी और राज्य न्यायिक अकादमी में अनिवार्य रूप से न्यायपालिका में सभी स्तर के न्यायाधीशों को प्रशिक्षित करने के लिये नियमित अंतराल पर लैंगिक संवेदनशीलता प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किये जा सकते हैं।
यही नहीं, अटार्नी जनरल ने कहा कि विधि कालेजों में लैंगिकता के बारे में अनिवार्य रूप से किसी पाठ्यक्रम में पढ़ाया नहीं जाता है और कुछ विधि कालेजों में यह विशेष विषय या वैकल्पिक है।
वेणुगोपाल ने कहा है, ‘‘इसी तरह , अखिल भारतीय बार परीक्षा में भी लैंगिक संवेदनशीलता के बारे में न तो कोई सवाल है और न ही कोई अध्याय। बारकाउन्सिल ऑफ इंडिया को इस संबंध में आवश्यक कदम उठाने चाहिए।’’
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