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राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में NRI कोटे पर उड़ीसा HC की तल्ख टिप्पणी: मेधावी छात्रो का निरादर और सम्पन्न छात्रो को आरक्षण

Bar & Bench

उड़ीसा उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण आदेश में टिप्पणी की है कि राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों में अप्रवासी भारतीयों के लिये आरक्षित सीटों का कोटा संदिग्ध और असंवैधानिक आरक्षण है।

न्यायमूर्ति एस पांडा और न्यायमूर्ति एसके पाणिग्रही की पीठ ने एनआरआई प्रायोजित श्रेणी की सीट के लिये आवेदन करने में असमर्थ रहे सीएलएटी अभ्यर्थी की याचिका पर सुनवाई के दौरान यह टिप्पणी की।

इस अभ्यर्थी की याचिका अस्वीकार करने के बाद पीठ ने इस श्रेणी की वैधता के बारे में अपनी टिप्पणियां दर्ज कीं। न्यायालय ने कोटे का मुद्दा इसलिये लिया क्योंकि इसका स्वरूप दूसरे छात्रों की कीमत पर एनएलयूज में कम रैंकिंग वाले छात्रों को प्रवेश की अनुमति देने वाला था।

‘‘एनआरआई श्रेणी मेधावी अभ्यर्थियों का अपमान है जिन्होंने सीएलएटी के माध्यम एनएलयूज में सीट हासिल करने के लिये दिन रात मेहनत की। मेरिट सूची में काफी नीची रैंकिंग वाले एनआरआई श्रेणी के अभ्यर्थियों को अक्सर एनएलयूज में सीट मिल जाती है जबकि बेहतर अंक पाने वाले सामान्य अभ्यर्थी एनआरआई छात्रों से काफी पीछे रह जाते हैं और वे निराश होते हैं।’’
उड़ीसा उच्च न्यायालय

कोटा के आधार पर चयन को अनियंत्रित, अवैध और मनमाना बताते हुये न्यायालय ने कहा,

‘‘यह श्रेष्ठ वर्ग के लिये आरक्षण समान है और कोटा की यह संदिग्ध श्रेणी असंवैधानिक है।’’

पीठ ने सीएलएटी प्रवेश प्रक्रिया में चुनिन्दा समूह के लिये कुलीन दृष्टिकोण की निन्दा की और कहा कि व्यवस्था में परिवर्तन अत्यावश्यक है।

पीठ ने पीए ईनामदार बनाम महाराष्ट्र प्रकरण में उच्चतम न्यायालय के फैसले को उद्धृत किया और कहा कि शीर्ष अदालत ने भी कहा था कि इस श्रेणी के अंतर्गत कम मेधावी छात्रों को सिर्फ इसलिए प्रवेश दिया गया क्योंकि वे विश्वविद्यालय द्वारा मांगी गयी ज्यादा फीस का भुगतान कर सकते हैं।

उच्च न्यायालय ने बार काउन्सिल ऑफ इंडिया, राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालयों की कंसोर्टियम और ‘सभी हितधारकों से कहा कि कोटा और कोटा के माध्यम से प्रवेश को नियंत्रित करने संबंधी प्रतिपादित मानदंडों पर फिर से विचार किया जाये।

याचिकाकर्ता ने तकनीकी गड़बड़ी की वजह से अपना आवेदन फार्म भरते समय एनआरआई प्रायोजित श्रेणी का चयन करने में असमर्थ रहने के बाद उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। इसके बाद उसने ओडीशा के राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय के कुलपति को पत्र लिखा और एनआरआई श्रेणी से प्रवेश की अनुमति चाही लेकिन उसके अनुरोध पर कोई कार्रवाई नहीं की गयी थी।

इसके बाद, उसने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की और उसने मदद का अनुरोध किया। न्यायालय ने उसका आग्रह अस्वीकार करते हुये इतनी देर से प्रवेश के अनुरोध से प्रवेश प्रक्रिया अस्त-व्यस्त होगी। न्यायालय ने यह भी कहा कि उसे तकनीकी गड़बड़ी से बचने के लिये परीक्षा के लिये अग्रिम आवेदन करना चाहिए था। न्यायालय इस तथ्य को भी रिकार्ड पर लाया कि उसने समयावधि बढ़ाये जाने के अवसर का भी लाभ नहीं उठाया।

इसी के साथ उच्च न्यायालय ने उसकी याचिका खारिज कर दी।

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बी राउतरे पेश हुये जबकि एनएलयू, ओडिशा का प्रतिनिधित्स अधिवक्ता पीके रथ ने किया।

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"Affront to meritorious students, reservation for the elite", Orissa High Court on NRI quota at NLUs