पटना शहर में स्थित प्रतिष्ठित कलेक्टरेट बिल्डिंग/अफीम का भंडार इमारत को गिराने के खिलाफ चलाये गये अभियान को उस समय धक्का लगा जब पटना उच्च न्यायालय ने नगर निगम को इसके गिराने के कार्यक्रम को हरी झंडी दे दी। (इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज बनाम बिहार राज्य और अन्य)।
मुख्य न्यायाधीश संजय करोल और न्यायमूर्ति एस कुमार की पीठ ने पाया कि जिस संरचना को सरकार ने गिराकर नयी इमारत बनाने की योजना तैयार की है उसका कोई कलात्मक, ऐतिहासिक या सांस्कृतिक महत्व नहीं है।
"हां, इतिहास में इस परिसर को लेकर कुछ महत्व जुड़े हो सकते हैं लेकिन इसका इस्तेमाल व्यावसायिक मकसद से अफीम और शोरा के भंडारण के लिये होता था। लेकिन इससे ज्यादा यह कुछ नहीं है। इमारत का कला, संस्कृति या धरोहर या आजादी के आन्दोलन से जुड़े होने जैसा कोई महत्व नहीं है। इसी तरह किसी प्रख्यात व्यक्ति का भी इससे कोई संबंध नहीं है।’’पटना उच्च न्यायालय
पटना उच्च न्यायालय ने कहा कि साथ ही न्यायालय की राय थी कि विकास परियोजनायें, जैसी की यह है जिसके लिये इमारत गिराई जा रही है, अनंत काल के लिये रोकी नहीं जा सकती हैं, विशेषकर, जब इसमें वास्तव में जनहित समाहित हो।
हालांकि,न्यायालय ने कहा कि इस इमारत को एक एक ईंट करके हटाया जाये ताकि पास ही इसकी अनुकृति बनायी जा सके। न्यायालय ने अपनेआदेश में कहा कि वैसे भी सरकार ऐसी योजना बना रही है।
न्यायालय ने कहा, ‘‘हालाकि, हम सिर्फ सरकार से यही कहना चाहेंगे कि बुल्डोजर का इस्तेमार करके इमारत को गिराने की बजाये इस संरचना के कम से कम स्तंभों को नियोजित और तरीके से हटाने का प्रयास होना चाहि। शायद वह इसी सामग्री अर्थात् ईंटों को संरक्षित करके और मौजूदा इमारत की अनुकृति बनाने में इसका उपयोग सुनिश्चित करेगी।’’
बिहार सरकार ने 2019 में नये सरकारी परिसर के निर्माण के लिये इस इमारत को गिराने की अपनी मंशा की घोषणा की थी। सरकार के इस निर्णय को लोगों ने अस्वीकार किया और इस प्राचीन इमारत को गिराने की योजना के खिलाफ अभियान चलाया था।
इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज ने सरकार के इस निर्णय को चुनौती देते हुये दो जनहित याचिकायें दायर की थीं। दूसरी जनहित याचिका में आंशिक राहत मिली थी जब न्यायालय ने इस इमारत को गिराने की कार्यवाही शुरू करने से सरकार को रोक दिया था।
न्यायालय ने बिहार शहरी कला और विरासत समिति को यह फैसला लेने का निर्देश दिया था कि क्या इस इमारत के संरक्षण की आवश्यकता है। इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि इस इमारत का ऐतिहासिक महत्व ज्यादा नही है।
मौजूदा मामले में सरकार की कार्रवाई के साथ इस समिति के गठन को चुनौती देते हुये इसे मनमानी और स्वेच्छाचारी बताया गया था।
पटना उच्च न्यायालय ने पाया कि समिति कानूनी तरीके से गठित की गयी थी और इसमें कला, संस्कृति, युवा, पर्यटन और पुरातत्व विभागों के सचिव आदि हैं।
बिहार शहरी नियोजन कानून, जिसके अंतर्गत यह समिति बनी थी, में कहा गया है कि इस आयोग में शहरी नियोजन, कला, वास्तुशिल्प, भारतीय इतिहास या पुरातत्व, पर्यटन और पर्यावरण विज्ञान का प्रतिनिधित्व होगा।
जहांं तक इस इमारत के ऐतिहासिक महत्व का सवाल है तो इस पर विचार नहीं किया गया और न्यायालय ने टिप्पणी की कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने इस संरचना को गिराने के सरकार के फैसले को चुनौती नहीं दी है।
समिति के निष्कर्ष का संज्ञान लेते हुये न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी। समिति ने कहा था कि यह इमारत जर्जर अवस्था में है और इसकी मरम्मत नहीं हो सकती है और इसका कोई ऐतिहासिक महत्व नहीं है।
याचिकाकर्ता संगठन की ओर से अधिवक्ता संकेत और राज्य की ओर से महाधिवक्ता ललित किशोर तथा अतिरिक्त महाधिवक्ता प्रभात कुमार वर्मा पेश हुये।
इस इमारत का निर्माण 18वीं सदी में डच ईस्ट इंडिया कंपनी ने अफीम और शोरा भंडार करने के लिये कराया था। बाद में ब्रिटिश हुकूमत ने प्रशासनिक कार्यो के लिये इसका इस्तेमाल किया था।
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Patna High Court dismisses plea against demolition of iconic collectorate building [Read Order]