NCLAT Chennai 
वादकरण

NCLAT की चेन्नई पीठ शुरू करने के लिये SC मे याचिका: सिर्फ दिल्ली मे NCLAT के काम से न्याय प्राप्त की प्रक्रिया बाधित होती है

याचिका मे कहा गया है चूंकि एनसीएलएटी सिर्फ नयी दिल्ली में ही काम कर रही है, अत्यधिक दूरी न्याय प्राप्त करने में बाधक बन रही है और न्याय प्राप्त करने के लिये वादकारियो को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है

Bar & Bench

उच्चतम न्यायालय में एक याचिका दायर कर नेशनल कंपनी लॉ अपीली अधिकरण (एनसीएलएटी) की चेन्नई पीठ शुरू करने का निर्देश देने का अनुरोध किया गया है।

याचिका में कहा गया है कि इस साल मार्च में एनसीएलएटी की पीठ गठित करने के बारे में आदेश पारित किया गया था लेकिन इसमे अभी तक काम शुरू नहीं किया है।

यह याचिका कार्पोरेट, इंसाल्वेन्सी एंड बैंक्रप्सी लॉज बार एसोसिएशन (सिब्बा) ने सचिव और वरिष्ठ अधिवक्ता आर मुरारी के माध्यम से दायर की है।

याचिकाकर्ता एसोसिएशन ने कहा है कि चूंकि एनसीएलएटी सिर्फ नयी दिल्ली से ही काम कर रहा है, चूंकि एनसीएलएटी सिर्फ नयी दिल्ली में ही काम कर रही है, अत्यधिक दूरी न्याय प्राप्त करने में बाधक बन रही है और न्याय प्राप्त करने के लिये वादकारियों को बहुत ज्यादा खर्च करना पड़ता है।

याचिका में कहा गया है कि दिल्ली स्थित एनसीएलएटी का अधिकार क्षेत्र में (कोच्चि, गुवाहाटी और अहमदाबाद सहित) देश के 15 शहरों स्थित नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल की पीठ आती हैं और इनमें से प्रत्येक पर काम का काफी दबाव है।

इस तथ्य के मद्देनजर याचिका में कहा गया है,

‘‘एनसीएलएटी का सिर्फ नयी दिल्ली से ही काम करन मनमाना और अतार्किक है और यह संविधान के अनुच्छेद 14 के तहत सभी व्यक्तियों को कानून का समान संरक्षण प्रदान करने की गारंटी से वंचित करने जैसा है।’’

याचिका में इस बात पर जोर दिया गया है कि सभी के लिये न्याय की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये इसकी क्षेत्रीय पीठों को शुरू करना और संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 का लगातार उल्लंघन रोकना जरूरी है।

सिब्बा ने याचिका में मद्रास बार एसोसिएशन बनाम भारत संघ फैसले को अपना आधार बनाया है। इस फैसले में उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय कर अधिकरण का गठन निरस्त कर दिया था। इसकी एक वजह यही बताते हुये याचिका में कहा गया है कि सिर्फ नयी दिल्ली में ही अधिकरण स्थित होना न्याय प्राप्त करने के उपाय को निष्प्रभावी बनाता है और इसलिए कानून में यह अस्वीकार्य है।

इसमें यह दावा भी किया गया है कि चेन्नै पीठ के लिये काफी पैसा खर्च करके सारी तैयारियां की गयी हैं।

उच्चतम न्यायालय ने स्विस रिबन्स प्रा लि बनाम भारत संघ प्रकरण में इंसाल्वेन्सी एंड बैंक्रप्सी कोड के प्रावधानों को सही ठहारते हुये अपने आदेश में कहा था,

‘‘अटार्नी जनरल ने हमें भरोसा दिलाया है कि इस फैसले का अनुपालन किया जायेगा और जल्द से जल्द जैसे ही व्यावहारिक होगा सर्किट बेंच गठित की जायेंगी। इसके मद्देनजर हम इस कथन को दर्ज करते हैं और भारत सरकार को निर्देश देते है कि आज से छह महीने के भीतर एनसीएलएटी की सर्किट बेंच स्थापित की जायें।’’

केन्द्र सरकार ने इस साल 13 मार्च को एनसीएलएटी की चेन्नै पीठ के गठन के बारे में अधिसूचना जारी की थी। इस अधिसूचना के अनुसार एनसीएलएटी चेन्नै के अधिकार क्षेत्र में कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, लक्षद्वीप और पुडुचेरी आयेंगे।

इस महीने के प्रारंभ में मद्रास उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर कर यह सुनिश्चित करने का अनुरोध किया गया था कि उच्चतम न्यायालय के 2019 के आदेश और इसके बाद मार्च में केन्द्र की अधिसूचना के अनुरूप एनसीएलएटी की चेन्नै पीठ के यथाशीघ्र काम शुरू करे।

छह महीने के भीतर एनसीएलएटी की सर्किट पीठ गठित करने के लिये संबंधित प्राधिकारियों को निर्देश देने वाले शीर्ष अदालत के आदेश का जिक्र करते हुये उच्च न्यायालय ने इस मामले में 14 दिसंबर को नोटिस जारी किया था।

न्यायालय ने सुनवाई के दौरान टिप्पणी की थी,

‘‘इसकी पुष्टि करनी होगी, अगर समय (सर्किट पीठ स्थापित करने के लिये) नहीं बढ़ाया गया है… तो ऐसा लगता है कि यह अवमानना होगी। निश्चित ही , हम आदेश पारित नही कर सकते (चूंकि यह उच्च न्यायालय का आदेश नही है जिसका पालन नही हुआ है)… किसी न किसी को उच्चतम न्यायालय में मामला दायर करना होगा।’’

यह मामला उच्च न्यायालय में अब 28 जनवरी, 2021 को सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है।

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