उच्चतम न्यायालय ने रौशनी भूमि घोटाले से संबंधित 9 अक्टूबर के फैसले पर जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में लंबित पुनर्विचार याचिका पर निर्णय होने तक इस मामले के संबंध में दायर अपीलों पर विचार करने से बृहस्पतिवार को गुरेज किया।
न्यायमूर्ति एनवी रमना, न्यायमूर्ति सूर्य कांत और न्यायमूर्ति अनिरूद्ध बोस की पीठ ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर अपीलों पर यह आदेश पारित किया। उच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कथित रौशनी भूमि घोटाले की सीबीआई जांच का आदेश दे रखा है।
उच्चतम न्यायालय ने कहा कि केन्द्र शासित जम्मू कश्मीर और रौशनी कानून के तहत लाभान्वित अनेक लोगों ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ पुनर्विचार याचिकायें दायर की हैं जो उच्च न्यायालय में लंबित हैं। न्यायालय ने कहा कि ऐसी स्थिति में एक ही विषय पर समानांतर कार्यवाही नहीं हो सकती।
शीर्ष अदालत ने कहा, ‘‘ यह विशेष अनुमति याचिका दायर किये जाने के बाद, केन्द शासित प्रदेश और कई अन्य लाभान्वितों की पुनर्विचार याचिकायें 21 दिसंबर के लिये जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में सूचीबद्ध हैं। इन पुनर्विचार याचिकाओं का फैसला होने तक हम इसमें ज्यादा कुछ नहीं कर सकते। उच्च न्यायालय को 21 दिसंबर को इन पुनर्विचार याचिका पर फैसला करने दीजिये। इस न्यायालय में लंबित याचिकायें इन याचिकाकर्ताओं के जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय में पुनर्विचार याचिका के रूप में जाने में बाधक नहीं होंगी।’’
केन्द्र शासित प्रदेश की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने आश्वासन दिया कि इस दौरान किसी भी अपीलकर्ता के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जायेगी।
महत्वपूर्ण बात यह है कि मेहता ने यह भी कहा कि केन्द्र शासित प्रदेश ने अपनी पुनर्विचार याचिका में अतिक्रमण करने वालों और वैध पट्टाधारको के बीच अंतर किया है।
न्यायालय ने इस पर इन याचिकाओं की सुनवाई जनवरी, 2021 के लिये स्थगित कर दी।
उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करने वाले अपीलकर्ता रौशनी कानून के तहत लाभान्वित हुये वे व्यक्ति हैं जिन्हें यह आशंका है कि इस कानून के तहत आबंटित भूमि वापस लेने के उच्च न्यायालय के आदेश के तहत उनकी जमीन जा सकती है।
रौशनी भूमि कानून जम्मू कश्मीर उच्च न्यायालय के नौ अक्टूबर, 2020 के फैसले के बाद सुर्खियों में आया। इस फैसले में उच्च न्यायालय ने इस कथित घोटाले की सीबीआई जांच के आदेश दिये हैं। यह फैसला उच्च न्यायालय में पहली याचिका 2011 में दायर किेये जाने के नौ साल बाद आया और इस संबंध में उच्च न्यायालय के अनेक आदेशों को सरकारी प्राधिकारियों ने ध्यान नहीं दिया था।
इस घोटाले की उत्पत्ति रौशनी कानून के नाम से चर्चित जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि (कब्जाधारकों को स्वामित्व देना), कानून 2001 में निहित है।
इस कानून में प्रावधान था कि अतिक्रमणकारियों के कब्जे वाली सरकारी भूमि उन्हें मिल जायेगी अगर वे सरकार द्वारा निर्धारित कीमत का भुगतान करेंगे।
इस कानून के उद्देश्य में कहा गया था कि विधि के तहत निर्धारित प्रक्रिया की वजह से सरकारी जमीन पर कब्जा करने वालों को बेदखल करना, नामुमकिन नहीं लेकिन बहुत ही मुश्किल हो गया था क्योंकि इसके अनुसार उन्हें बेदखल करने से पहले अपना पक्ष रखने का अवसर देना होगा। इसमें यह भी कहा गया था कि सामूहिक रूप से अतिक्रमण करने वालों को बेदखल करने की कार्रवाई से अशांति भड़केगी।
इस कानून की वैधता को 2011 में उच्च न्यायालय में चुनौती दी गयी। इसमें आरोप लगाया गया कि इस कानून के तहत पुलिस अधिकारियों, राजनीतिक व्यक्तियों, और नौकरशाहों सहित सरकार में उच्च पदों पर आसीन और दूसरे प्रभावशाली व्यक्तियों द्वारा भूमि पर कब्जा किया जा रहा है।
यही नहीं, जम्मू कश्मीर के प्रधान महालेखा (ऑडिट) एससी पांडे ने 8 मार्च, 2014 को जम्मू में आयोजित प्रेस कांफ्रेंस में आरोप लगाया था कि रौशन कानून के अमल में हजारों करोड़ रूपए का ‘बड़ा घोटाला’ हो रहा है।
उच्च न्यायालय ने अंतत: 9 अक्टूबर को कठोर शब्दों में अपना फैसला सुनाते हुये इस कानून और इसके तहत बनाये गये नियमों को निरस्त कर दिया। न्यायालय ने रौशनी कानून के तहत की गयी अवैधता पर ‘पर्दा डालने’ के प्रयासों के लिये जम्मू कश्मीर विकास प्राधिकरण और राजस्व विकास के अधिकारियों के आचरण पर भी कड़ी नाराजगी व्यक्त की।
उच्च न्यायालय ने इसकी सीबीआई जांच का आदेश देते हुये कहा, ‘‘अधिकारियों और अतिक्रमण करने वालों/कब्जा करने वालों के कृत्य गंभीर किस्म के आपराधिक कृत्य हैं, इनकी जांच, तफतीश और आपराधिक कानूनी कार्यवाही आवश्यक है। सरकार की बहुत ज्यादा भूमि पर रौशनी कानून 2011 के तहत अतिक्रमण करने वालों का कब्जा है जिसे कानून के अनुसार मुक्त कराया जाना चाहिए।’’
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