उच्चतम न्यायालय ने सीएलएटी 2020 के अभ्यर्थियों के एक समूह को इस साल की परीक्षा से संबंधित मुद्दों पर सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली शिकायत समाधान समिति के समक्ष प्रतिवेदन देने की आज अनुमति प्रदान कर दी।
याचिकाकर्ताओं की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने दलील दी कि 28 सितंबर को संपन्न सीएलएटी 2020 की परीक्षा में शामिल छात्रों ने तकनीकी खामियों और प्रश्नों के गलत उत्तर से संबंधित मुद्दों पर 40,000 से ज्यादा आपत्तियां की थीं। उन्होंने दलील दी,
‘‘बहुत से प्रश्नों के माडल जवाब गलत दिये गये थे। 40,000 आपत्तियों में से 20,000 प्रश्न और उत्तर के बारे में थीं। मैं दूसरे 20,000 की बात कर रहा हूं। इस परीक्षा में कटऑफ 0 नहीं बल्कि -4 है। ऐसा इस परीक्षा में ही नहीं बल्कि किसी भी परीक्षा के इतिहास में नहीं हुआ है। इसमे -4 अंक पाने वाले छात्र भी हैं। इन छात्रों को काउन्सलिंग के लिये बुलाया गया है।’’
न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने जानना चाहा कि -4 अंक पाने वाले छात्रों को काउन्सलिंग के लिये कैसे बुलाया जा सकता है।
इसके जवाब में, एनएलयूज की कंसोर्टियम की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएस नरसिम्हा ने कहा कि पढ़ी गयी सूची एससी-एसटी छात्रों की है और उन छात्रों को काउन्सलिंग के लिये बुलाने का मतलब यह नहीं है कि उन्हें प्रवेश दिया जायेगा। उन्होंने कहा,
‘‘सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश (शिकायत समाधान समिति के मुखिया) इन आपत्तियों को देखतहैं। पढ़ी गयी सूची सिर्फ एससी-एसटी अभ्यर्थियों की है और उन्हें सिर्फ इंटरव्यू के लिये बुलाया गया है और उन्हें बुलाने से कोई फर्क नहीं पड़ता है। देखना यह है कि कई प्रश्न लंबे होने का आरोप है। लेकिन पिछली परीक्षा से इनकी लंबाई कम कर दी गयी है। जहां तक साफ्टवेयर में गड़बड़ी का संबंध है तो यह एक असाधारण परीक्षा थी और छात्रों द्वारा माउस को हिलाये जाना भी रिकार्ड हुआ है।’’
नरसिम्हा ने कहा कि दो प्रश्न- 146 और 150 समिति की सिफारिश के अनुरूप हटा दिये गये थे। उन्होंने कहा,
‘‘2600 सीटों में से 1800 भर चुकी हैं। शेष सीटों के लिये काउन्सलिंग चल रही है। यह परीक्षा शानदार तरीके से संपन्न हुयी है और इसमे सभी कुलपतियों ने हिस्सा लिया था। एक सवाल था कि मानहानि अपराध है या नहीं। आपत्ति यह है कि इसका जवाब वह नहीं था जो गूगल कहता है। ’’
दोनों पक्षों को सुनने के बाद पीठ ने याचिकाकर्ताओं को परीक्षा से संबंधित अपने किसी भी मुद्दे को लेकर दो दिन के भीतर शिकायत समाधान समिति के पास जाने की छूट प्रदान की है। पीठ ने कहा कि इस संबंध में प्रतिवेदनों पर यथाशीघ्र निर्णय लेना होगा।
पीठ ने यह टिप्पणी की कि उसे पूरा भरोसा है कि समिति इन शिकायतों पर गौर करेगी।
हालांकि, पीठ ने स्पष्ट किया कि वह काउन्सलिंग प्रक्रिया रोकने के लिये कोई अंतरिम आदेश नहीं देगी।
यह याचिका सीएलएटी2020 के अभ्यर्थियों के एक समूह ने दायर की थी जिसमें 28 सितंबर को हुयी परीक्षा के दौरान तकनीकी गड़बड़ियों की वजह से कई छात्रों को हुयी दिक्कतों को उजागर किया गया था। याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत से अनुरोध किया कि छात्रों द्वारा की गी शिकायतों पर गोर करने के लिये एक उच्चाधिकारी समिति गठित करने का सीएलएटी कंसोर्टियम को निर्देश दिया जाये।
इसके अलावा, सीएलएटी 2020 की नये सिरे से परीक्षा कराने का अनुरोध करते हुये याचिकाकर्ताओं ने याचिका में कहा कि कंसोर्टियम को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाये कि इस तरह की तकनीकी दिक्कतें दुबारा नहीं हों।
इस साल,सीएलएटी की ऑनलाइन और केन्द्र आधारित पक्षा 28 सितंबर को संपन्न हुयी थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि इस परीक्षा में उत्तर नहीं मिलने की कई मामले थे। अभ्यर्थियों ने यह भी दावा किया कि इससे उन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा और परीक्षा दूषित हुयी।
याचिका में कहा गया था कि इसलिए कंसोर्टियम द्वारा घोषित परिणाम गलत और दुराग्रह पूर्ण थे। याचिकाकर्ताओं ने ऑन लाइन प्रवेश परीक्षा के दौरान अभ्यर्थियों के सामने आये तमाम मुद्दों को सूचीबद्ध किया था।
अभ्यर्थियों ने सही जवाब का चयन किया या उस पर निशान लगाया, हालांकि परिणाम में दिखाया गया कि ‘अस’ गलत और या दूसरे विकल्प का चयन किया गया या उस पर टिक लगाया गया।
परिणाम में उन सवालों को दिखाया जा रहा है और अंकों की गणना की जा रही है जिनका अभ्यर्थियों ने प्रयास ही नहीं किया था।
अभ्यर्थियों ने अलग विकल्प का चयन किया या टिक लाया, हालांकि, परिणाम में चयन किया गया या टिक लगाया गया अलग विकल्प दिखाया गया है।
10 प्रश्न या तो अपने आप में ही गलत थे या वेबसाइट पर अपलोड किये गये उनके जवाब गलत थे।
यही नहीं, परीक्षा की लंबाइ्र को लेकर भी आपत्ति उठाई गयी जिसके बारे में कहा गया कि इसमें 120 मिनट में करीब 18,600 शब्दों का पढ़ना था। याचिकाकर्ताओं ने कहा कि गैर अंग्रेजी माध्यम की पृष्ठभूमि वाले छात्रों के लिये भी यह असुविधाजनक था।
"याचिकाकर्ताओं की दलील थी, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि सीएलएटी कंसोर्टियम ने सीएलएटी 2020 के लिये प्रश्न पत्र इस तरह से बनाया जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि गैर अंग्रेजी भाषी पृष्ठभूमि वाले छात्र सुनियोजित तरीके से बाहर हो जायें।’’
याचिकाकताओं ने उच्चतम न्यायालय द्वारा प्रतिपादित परंपरा का जिक्र करते हुये कहा कि परीक्षाओं का आयोजन बेदाग तरीके से होना चाहिए।
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