उच्चतम न्यायालय ने पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश राज्यों में पराली जलाने की घटनाओं की निगरानी करने और इनकी रोकथाम के लिये पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति मदन लोकूर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति गठित की।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी रामासु्ब्रमणियन की पीठ ने याचिकाकर्ता का यह अनुरोध स्वीकार कर लिया कि वायु प्रदूषण और पराली जलाने के मुद्दे से भली भांति अवगत उच्चतम न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश इस स्थिति की निगरानी करें।
उच्चतम न्यायालय में न्यायाधीश के रूप में कार्यकाल के दौरान न्यायमूर्ति मदन लोकूर की अध्यक्षता वाली पीठ ने पर्यावरण के मामलों पर लंबे समय तक विचार किया था। याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह ने उनके नाम का सुझाव दिया था।
सिंह ने पीठ से कहा कि पराली जलाने से संबंधित इसी तरह का मामला नवंबर में सुनवाई के लिये सूचीबद्ध है और अगर इस पर अंकुश लगाने के लिये अभी कोई कदम नही उठाये गये तो उस समय वायु प्रदूषण की स्थिति बहुत खराब हो जायेगी । इसे ध्यान में रखते हुये इस मामले में तत्काल ही अंतरिम आदेश आवश्यक है क्योंकि सुप्रीम कोर्ट में कल से दशहरा अवकाश शुरू हो रहा है।
पंजाब की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता पीएए नरसिम्हा और हरियाणा के अतिरिक्त महाधिवक्ता अनिल ग्रोवर ने इस मामले में राज्यों द्वारा किये गये उपायों के बारे में न्यायालय को जानकारी देनी चाही।
इस पर, अतिरिक्त सालिसीटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने न्यायालय से कहा कि यह मामला पर्यावरण प्रदूषण (नियंत्रण और रोकथाम) प्राधिकरण के विचाराधीन है और केन्द्र संबंधित राज्यों के संपर्क में है। इन दलीलों के आधार पर भाटी ने न्यायालय से अनुरोध किया कि इस समिति की नियुक्त का आदेश नहीं दिया जाये। उन्होंने यह भी कहा कि शीर्ष अदालत को दशहरे के बाद खुलने पर इस मामले में कोई आदेश देने से पहले केन्द्र और ईसीपीए को सुनना चाहिए।
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश बोबडे ने स्पष्ट किया कि इस समिति की नियुक्ति किसी तरह से ईपीसीए पर आक्षेप नहीं होगा और उसकी चिंता इस समय दिल्ली-एनसीआर में वायु गुणवत्ता को लेकर है।
‘‘हमारा सरोकार सिर्फ यह है कि दिल्ली-एनसीआर के नागरिकों को स्वच्छ सांस और ताजी हवा मिले। यह आदेश ईपीसीए या किसी अन्य संस्था पर किसी तरह का आक्षेप नहीं होगा।’’सीजेआई एसए बोबडे
न्यायालय ने इसके साथ ही पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में पराली जलाने की रोकथाम के उपायों पर गौर करने के लिये न्यायमूर्ति मदन लोकूर की अध्यक्षता में एक सदस्यीय समिति गठित करने का निर्देश दिया।
न्यायालय ने राज्यों से कहा है कि वे इस समिति को हर तरह की सहायता उपलब्ध कराये। यह भी सुझाव दिया गया कि एनसीसी, एनएसएस या भारत स्काउट्स और गाईड्स जैसे समूहों को पराली जलाने की घटनाओं की पहचान के लिये मोबाइल दस्ते के रूप में तैनात किया जा सकता है।
इस समिति को हर पक्षवाडे या जब आवश्यक हो, तब अपनी रिपोर्ट न्यायालय को सौंपनी है। ये निर्देश देने के बार न्यायालय ने इस मामले को 26 अक्टूबर को आगे सुनवाई के लिये सूचीबद्ध कर दिया।
यह पीठ जब उठने ही वाली थी तो सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय से अनुरोध किया कि समिति की नियुक्ति के आदेश पर हस्ताक्षर नहीं किये जाये।
यह अनुरोध करने की वजह पूछे जाने पर मेहता ने कहा कि इस बारे में कुछ आपत्तियां हैं ओर समिति गठित करने से पहले न्यायालय अगली तारीख पर उनको सुन सकता है।
इस पर न्यायालय ने कहा कि आधे घंटे तक इस मामले पर सुनवाई हुयी है और इस नियुक्ति के लिये सिफारिश की गयी। संबंधित न्यायाधीश की सहमति ली जा चुकी है। अत: वह अपने आदेश से पीछे नही हट सकता है।
‘‘हमने आधे घंटे तक विस्तार से इस मामले को सुना है। हमने सभी को सुना। न्यायाधीश की सहमति ली गयी। हमने सबके सामने आदेश पारित किया। आप हमने मौखिक ही अपनी आपत्तियां बतायें।’’मुख्य न्यायाधीश बोबडे
मेहता ने कहा,
‘‘याचिकाकर्ता ने सिफारिश की, उन्होंने ही सहमति ली। हमे इसका नोटिस तक नहीं दिया गया।’’
हालांकि, मुख्य न्यायाधीश ने कहा कि यह मामला केन्द्र से नहीं राज्यों से संबंधित है। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि न्यायमूर्ति लोकूर को कोई अतिरिक्त अधिकार क्षेत्र या अधिकार नहीं दिये जा रहे हैं। बहरहाल, मेहता ने फिर न्यायालय से आग्रह किया कि इस आदेश को अंतिम रूप नहीं देने पर विचार करे। अंतत: न्यायालय ने एसजी का अनुरोध ठुकरा दिया।
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